दिल्ली के बुराड़ी की तरह एक घटना सन् 1978 में गयाना में घटी जिसमें 909 लोग काल के गाल में समा गए. हैरानी की बात यह रही कि इनमें एक तिहाई बच्चे शामिल थे
दिल्ली के बुराड़ी में एक ही परिवार के 11 लोगों की मौत का मामला अब तक रहस्य बना हुआ है. पुलिस मामले की जांच तो कर रही है लेकिन अब तक किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई है. हालांकि उसका ज्यादा जोर सामूहिक खुदकुशी पर है लेकिन मृतक परिवार से जुड़े लोग इसे इसे सिरे से नकार रहे हैं. कुछ मीडिया रिपोर्टों में इसे तांत्रिक क्रियाओं के झांसे में आकर खुदकुशी कर लेने का नतीजा बताया गया है.
घर से मिली डायरी में जिस प्रकार की बातें लिखी गई हैं, उससे ज्यादा शक किसी तांत्रिक पर गहरा रहा है जिसने पूरे परिवार को खुदकुशी के लिए मजबूर किया. पूरे देश में मौत के इस मामले पर हाय-तौबा मची है क्योंकि ऐसी घटना देश में शायद पहली बार देखने को मिली है. दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर नजर डालें तो तंत्र-मंत्र और अंधविश्वास से जुड़ी कई घटनाएं इतिहास में दर्ज हैं जो लोगों को हैरत में डालती हैं.
एक ही ऐसी ही घटना सन् 1978 में दक्षिण अमेरिका के गयाना में घटी जिसमें 909 लोग काल के गाल में समा गए. हैरानी की बात यह है कि इसमें एक तिहाई बच्चे शामिल थे. हुआ यूं कि गयाना में पीपल्स टेंपल के संस्थापक जिम जोंस ने 18 नवंबर 1978 को अपने सैकड़ों शिष्यों के साथ खुदकुशी करने की योजना बनाई. जोंस के कई अनुयायियों ने अपनी इच्छा से खुदकुशी की तो कई ऐसे भी रहे जिन्हें बंदूक की नोक पर मौत को गले लगवाया गया.
जिम जोंस एक प्रभावशाली पादरी थे जिन्होंने 1950 में पीपल्स टेंपल की स्थापना की. इनके प्रवचनों का इतना प्रभाव था कि कुछेक साल में ही इन्होंने असंख्य अफ्रीकी अमेरिकियों को अपना शिष्य बना डाला. दुर्भाग्यवश 1971 में इनके चर्च पर मीडिया में कई प्रकार के आरोप लगे. आरोपों में वित्तीय धांधली, शारीरिक उत्पीड़न और बच्चों के साथ बुरा बर्ताव शामिल हैं. इन आरोपों से खपा जोंस ने अपने अनुयायियों के साथ कैलिफोर्निया शहर छोड़कर गयाना जाने का फैसला किया.
जोंस अपने शिष्यों के साथ गयाना तो आ गए लेकिन उन्होंने जो वादे किए थे उसे वे पूरा नहीं कर पाए. जोंस ने गयाना में अपने चर्च को ईश्वरीय स्थान में बदल देने की बात कही थी. दिनोंदिन हालत बिगड़ते गए और शिष्यों पर अत्याचार और अनाचार बढ़ने लगे. जोंस की बात न मानने पर शिष्यों को दंडित किया जाने लगा. जोंस की तबतक दिमागी हालत पस्त होने लगी और इस दौरान किसी ने उनके जेहन में यह बात भर दी कि अमेरिकी सरकार उनके खिलाफ पड़ गई है.
इसी दौरान एक घटना यह हुई कि जोंस के शिष्यों में भितरघात हो गया और कुछ लोग जोंस के खिलाफ बगावत में उतरने लगे. ऐसे में जोंस के पास दूसरा कोई चारा न था कि वे अपने शिष्यों से कहें कि अब कोई ‘क्रांतिकारी काम’ करना होगा. ताज्जुब की बात यह थी कि यह क्रांतिकारी कदम और कुछ नहीं बल्कि सामूहिक स्तर पर खुदकुशी थी जिसे जोंस के शिष्यों को सहर्ष गले लगाना था.
खुदकुशी करने वालों में सबसे पहले कम उम्र के शिष्यों की बारी थी. स्पष्ट है कि इनमें ज्यादातर बच्चे थे जिन्हें मां-बाप और नर्सों ने जूस में सायनाइड मिलाकर दे दिया. अगली बारी युवा-अधेड़-बुजुर्ग शिष्यों की थी जिन्हें बंदूक के साये में जहर मिला पेय दिया गया. देखते-देखते सैकड़ों लोग अंधविश्वास की काल कोठरी में समा गए. अमेरिकी इतिहास में 18 नवंबर की यह घटना काले अक्षरों से उकेरी गई है.