अंदरूनी राजनीति और भीतरघात के बावजूद हुड्डा हरियाणा में कॉंग्रेस को एक सही मुकाम दिलवाने में कामयाब होंगे

सोनिया गांधी के अन्तरिम अध्यक्ष बनते ही यह तय माना जा रहा था की अब हरियाणा की चुनावी राजनीति में पड़ा असमंजस छंट जाएगा। सुरजेवाला और तंवर के बीच की राजनैतिक उठापटक बंद हो जाएगी और हुड्डा पिता पुत्र के भी हक में फैसले आएंगे। वही हुआ। आज हुड्डा खेमे में जोश की वह लहर है की शायद यह वोटों की सुनामी ही ले आए।

चंडीगढ़ (सारिका तिवारी) 20 सितंबर:

भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथ में प्रदेश कॉंग्रेस की कमान क्या आई कि क्षेत्रीय राजनीति में उफान आ गया है। जहां दूसरे राजनैतिक दलों के नेता भाजपा में शामिल होने कि होड लगा रहे थे वहीं अब दिग्गज नेताओं को अपना भविष्य कॉंग्रेस में दिखाई पड़ रहा है। भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के हरियाणा की बागडोर हाथ में लेते ही इनेलो के दिग्गज नेताओं ने कॉंग्रेस में शामिल हो अपने विपक्षियों की सिट्टी पिट्टी गुम कर दी है। जहां हल्का काल्का में भाजपा चौधरी के आने से घबराई ही है वहीं झज्जर जिले में बादली विधानसभा क्षेत्र में दीपेंद्र समर्थक कई उम्मीदवार टिकट की गारंटी पर जनसंपर्क में जुट गए हैं। उन सब का ख्याल यह है कि अब यहां पूर्व विधायक वह दो बार विधायक रहे नरेश प्रधान को कांग्रेस की टिकट मिलने वाली नहीं है उनकी जगह नये व्यक्ति को टिकट मिलेगी।

दीपेंद्र सिंह हुड्डा समर्थक कई उम्मीदवारों में ने अपनी अपनी गाड़ियों पर लाउडस्पीकर टीका कर चुनाव प्रचार की ऐसा समां बांधा कि नरेश प्रधान का नाम इन के शोर में दब कर रह गया है। जबकि वे इतने हल्के उम्मीदवार नहीं है जितना यह लोग मान कर चल रहे होंगे। लड़ाकू और हार ना मानने वाले जुझारू नेता हैऔर उनका चुनाव लड़ना तय है। हल्के में यह प्रचार अब भी है कि अंतिम क्षणों में पार्टी दीपेंद्र हुड्डा को बादली से चुनाव में उतार सकती है। यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस रोहतक लोकसभा क्षेत्र के 9 विधानसभा क्षेत्रों में किसी एक पर भी ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट नहीं दे पाएगी और पार्टी को फिर इन क्षेत्रों के अलावा दूसरे जिलों में भी आलोचना का शिकार होना पड़ेगा।

कांग्रेस की टिकट मिलनेेेे की आस में आस जनसंपर्क में जुटे दीपेंद्र समर्थकों में पिछली बार निर्दलीय चुनाव लड़ चुके कुलदीप वत्स दीपक धनखड़ जगबीर गुलिया प्रमुख है। इन तीनों ने चुनावक्षेत्र में धुआंधार प्रचार शुरू कर रखा है।

जानकार यह मानकर चल रहे हैं कि अंत में दीपेंद्र हुड्डा ही मैदान में आएंगे और चुनाव इसलिए भी रोचक हो जाएगा कि फिर पूर्व विधायक नरेश प्रधान निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में आ खड़े होंगे। उन दोनों का 2014 के चुनाव से आपसी तारतम्य अविश्वास के खतरनाक मोड में फंसा हुआ है। नरेश प्रधान जमीन से जुड़े बादली गांव के मूल निवासी इस गांव के सरपंच रहे है और ऐसे उम्मीदवार हैं जिन्हें गुलिया खाप का नैतिक समर्थन प्राप्त होता रहता है। वे जाटों में स्वीकार्य अकेले ब्राह्मण है और जनता से सीधे संपर्क में रहते हैं।

उधर भाजपा के ओम प्रकाश धनकड की तरह जेजेपी का उम्मीदवार भी जाट आ गया तो तीन जाटों में एक गैर जाट ब्राह्मण नरेश प्रधान सिस्टम से चुनाव को चला गए तो हल्के में गुलिया खाप उनके लिए संकटमोचक बनकर आगे आ सकती है ।फिर यहां चुनाव बहुत ही रोचक हो जाएगा।

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