सर्वधर्म समभाव का केंद्र हैं गुरुद्वारा मानक टबरा- गुरु गोविंद सिंह के चरण स्पर्श का ऐतिहासिक स्थल है यह गुरुद्वारा रायपुररानी,
कोरल, पंछुला – 19 जुलाई:
गुरु गोबिंद सिंह के चरण स्पर्श स्थल गुरुद्वारा मानक टाबरा न केवल सिक्खों की आस्था का केंद्र है बल्कि यहां पर सभी धर्मों के लोग पूरी श्रद्धा भावना के साथ नतमस्तक होते है। गुरु गोबिंद सिंह जी वर्ष 1689 में पोंटा साहिब से आनंदपुर साहिब जाते समय इस स्थान पर रूके थे।
गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश उत्सव के उपलक्ष्य में जहां 4 अगस्त को सिरसा जिला में राज्य स्तरीय कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है वहीं सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग द्वारा प्रदेश में गुरु नानक देव जी व अन्य गुरुओं के चरण स्पर्श स्थलों की जानकारी एकत्रित कर रहा है। विभाग के महानिदेशक समीर पाल सरो इस जानकारी पर आधारित विभाग के माध्यम से एक पुस्तक प्रकाशित करने योजना की रूपरेखा भी तैयार कर रहे है।
जिला पंचकूला में सिक्ख इतिहास से जुड़े कई महत्वपूर्ण स्थल है। रायपुररानी के नजदीक मानक टबरा का ऐतिहासिक गुरुद्वारा भी गुरु गोविंद सिंह के जीवन से जुड़े इतिहास से संबंधित है। इस क्षेत्र के राजा के मुख्यालय कहे जाने वाले रायपुर की रानी द्वारा गुरु गोविंद सिंह व उनके लावलश्कर की श्रद्धापूर्वक सेवा के कारण ही रायपुर को रायपुररानी का दर्जा हासिल हुआ था।
पंचकूला जिला में पिंजौर में स्थित गुरु नानक देव जी के चरण स्पर्श गुरुद्वारा मंजी सहिब, गुरु गोविंद सिंह के चरण स्पर्श पंचकूला स्थित गुरुद्वारा नाडा साहिब और गुरु गोबिंद सिंह के जीवन से जुड़े मानक टबरा गुरुद्वारों की जानकारी भी जुटाई गई है ताकि इन ऐतिहासिक गुरुद्वारों के इतिहास के बारे में प्रदेश व देश के अधिक से अधिक लोगों को जानकारी मिल सके।
मानक टाबरा गुरुद्वारा के बारे में उपलब्ध इतिहास के मुताबिक रायपुर रिसायत की रानी गुरु गोबिंद सिंह को श्रद्धा और आदर के साथ हमेशा याद करती थी। गुरु गोबिंद सिंह रानी की इस आस्था को देखकर पोंटा साहिब से वापिसी के दौरान रायपुर पंहुचे लेकिन यहां किसी ने उनकी पहचान नहीं की। गुरुजी यहां से मानक टबरा स्थान पर चले गये और जब रानी को इस बात की सूचना मिली तो वह पश्चाताप करने के लिये मानक टबरा में गुरु गोबिंद सिंह से मिलने पंहुची। गुरुजी के दर्शन करने उपरांत इस रियासत की रानी ने गुरु गोबिंद सिंह और उनके साथ उपस्थित सिक्खों व अन्य लश्कर की श्रद्धा सहित सेवा की। गुरु जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि आज के बाद रायपुर का राजा की बजाय रानी के नाम से जाना जायेगा और तब से ही रायपुर का नाम रायपुररानी प्रसिद्ध हुआ और आज तक रायपुररानी के नाम से जाना जाता है।
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