मुख्यधारा से गुम होता गुमथला
सारिका तिवारी, पंचकुला
लोकसभा चुनावों का बहिष्कार करने के लिए गांव गुमथला भले ही मीडिया और जनता में चर्चा का विषय बना है परन्तु आज दो दिन बाद भी अभी तके भी किसी अधिकारी या राजनेता ने यहाँ का दौरा करने की ज़रूरत नहीं समझी। इसे प्रशासन और राजनेताओं की लापरवाही कहा जाए या निष्ठुरता।
कालका क्षेत्र में पड़ता गाँव गुमथला न केवल मौलिक सुविधाओं से वंचित है बल्कि हालत यह है कि आनेजाने के लिए रास्ता ही नहीं है। गांव की दयनीय स्थिति का सबसे ज़्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है। लगभग 5 वर्ष पहले यहाँ का प्राथमिक स्कूल बंद कर दिया गया । सरकारी नीति के अनुसार जिन स्कूलों में बच्चों की संख्या कम है उन स्कूलों को बंद कर दिया गया और दूसरे स्कूलों के साथ मिला दिया गया। यह गाँव भी इसी स्थिति का शिकार हो गया सुविधा के नाम पर उपलब्ध एक मात्र स्कूल भी इनसे छीन लिया गया।
अब यहाँ से बच्चे पंचकूला या अमरावती पढ़ने जाते हैं। चूंकि स्कूल या सार्वजनिक यातायात की सुविधा के साधन न होने के कारण अभिभावकों को ही बच्चों को स्कूल पहुंचाना और लिवाना पड़ता है। जिस दिन बारिश हो जाये उस दिन तो कहीं भी आना जाना मुश्किल हो जाता है। परीक्षा के दिनों में अगर बारिश हो जाये तो बच्चों की साल भर की मेहनत पर पानी भी फिर सकता है।
गांव निवासी शाम लाल ने बताया कि सड़क तक का रास्ता तय करने के लिए या तो गांववासियो को चार किलोमीटर पथरीली ज़मीन पर से आना जाना पड़ता है या फिर नदी पर बनाये अस्थायी पुल का सहारा लेना पड़ता है। जब demokraticfront.com की टीम ने उस पुल का जायज़ा लिया तो पाया कि यह रास्ता खतरनाक ही नहीं जानलेवा भी साबित हो सकता है खासकर बच्चों के लिए। नदी के बीच से होकर गुजरना किसी भी अनचाही घटना को अंजाम दे सकता है। लेकिन प्रशासन आँखों पर पट्टी बांधे हुए है।
घग्घर नदी के तट पर स्थित 250 के करीब आबादी वाले इस गाँव मे 35 से 40 घर हैं और 135 के करीब मतदाता हैं। गांव वालों के अनुसार विधायिका लतिका शर्मा पांच साल में केवल एक बार आईं लेकिन सांसद रत्न लाल कटारिया ने तो कभी सुध भी नहीं ली। विधायक और सांसद चाहे किसी भी दल का आया यह गांव सबके लिए सौतेला ही है
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