मूलभूत सुविधाओं के लिए पीढ़ियों से तरस रहे गुमथला गाँव ने चुनावों का बहिष्कार किया

नेताओं, अधिकारियों यहाँ तक कि नाड्ढा साहेब गुरुद्वारे को जा रही मुख्य सड़क के भी ध्यान से गुम हो चुके जिंदा गाँव का नाम है ‘गुमथला’

आज जहां राष्ट्र लोकतन्त्र के उत्सव में रंगा हुआ है वहीं हरियाणा प्रांत के अंबाला सांसदिया क्षेत्र के नगर पंचकुला के गाँव गुमथला में लोगों ने इस उत्सव में भाग लेने से मना कर दिया।

आज जब demokraticfront.com ने इस गाँव क दौरा किया तो पाया कि मुख्य सड़क से 3 से 4 किलोमीटर दूर बसे इस गाँव में कोई पक्की सड़क नहीं जाती। वहाँ पहुँचने के लिए एक सूखी नदी भी पार करनी पड़ती है जहां से गाँव मुश्किल से 1 या सवा किलोमीटर दूर है। गाँव पहुँचने पर हमें वहाँ टाइलों से बनी सड़क दिखाई पड़ी। एक प्राइमरी स्कूल, आंगनबाड़ी के दो कमरे बस सरकार ने यही दो चीज़ें मुहैया करवा रखीं हैं। बिजली कि तारें तो पड़ी हुई हैं लेकिन बिजली कभी कभार ही आती है। और ट्रांसफार्मर के नाम पर लकड़ी का फट्टा जिस पर तारें खुले में ही जोड़ रक्खीं हैं।

गाँव वालों से बात करते हुए हमने पाया कि गाँव तो बहुत पुराना है, शायद हरियाणा बनाने से पहले का, कितनी सरकारें आयीं कितने चुनाव भुगत लिए लें गाँव कि दुर्दशा बाद से बदतर होती गयी है।
demokraticfront.com टीम ने जब गाँव वालों से पूछा तो उन्होने अपने सभी ज़ख़म खोल कर रख दिये। महिलाओं कि तो हालत ओर भी बुरी थी। गाँव में कोई भी चिकित्सीय केंद्र नहीं है, यहाँ तक कि आशा वर्कर भी साल में शायद ही कभी आती हो।

गाँव के लोगों ने बताया कि कम आबादी और कम बच्चों का हवाला दे कर सरकार ने तकरीबन 6 साल पहले प्राइमरी स्कूल भी बंद कर दिया जो कि अब चुनावों अथवा कभी कभार आने वाले सरकारी लोगों के लिए खोला जाता है। बच्चे पंचकुला के नामचीन विद्यालयों में पढ़ने जाते हैं लेकिन उन विद्यालयों कि भी मजबूरी है कि सड़क कि सुविधा न होने के कारण वह बच्चों को लेने नहीं आ पाते। बच्चों को स्कूल अपने साधनों से ही जाना पड़ता है। ओर बरसातों में तो बच्चों कि तो क्या बड़ों तक कि छुट्टी हो जाती है। पहले भी इस नदी को पार करने के दौरान दो बच्चों कि मौत हो चुकी है।

स्वत: अर्जित सुविधाओं से लैस गाँव यूं तो सम्पन्न दिखता है परंतु सरकार कि तरफ से पीढ़ियों से कि जा रही अनदेखी से दुखी लोगों ने पहले भी कई बार चुनावों का बाहिष्कार किया है, लेकिन आज तक किसी नेता, अथवा अधिकारी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।

अंत में चुनाव अधिकारी से बातचीत हुई जिसमें वह बेबस से अपने कर्तव्य का निर्वहन करते दिखाई पड़े

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