कल्याणकारी योजनाओं की मद में कटौती तथा राजकोषीय घाटा बढ़ने देने पर ही न्यूनतम आय गारंटी योजना को लागू किया जा सकता है: वाई वी रेड्डी
नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाई वी रेड्डी का मानना है कि दूसरी कल्याणकारी योजनाओं की मद में कटौती तथा राजकोषीय घाटा बढ़ने देने पर ही न्यूनतम आय गारंटी योजना को लागू किया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने पर देश के 20 प्रतिशत अत्यधिक गरीब लोगों को 72,000 रुपये की सालाना न्यूनतम आय की गारंटी देने का वादा किया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों के लिए इस तरह की योजना को क्रियान्वित करना मुश्किल होगा क्योंकि वे वित्त और कर्ज सीमा के लिए काफी हद तक केंद्र पर निर्भर होते हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैं सिर्फ केंद्र-राज्य के राजकोषीय संबंधों के संदर्भ में बात कर रहा हूं. राज्य सरकारों के पास बजट सीमित होता है और वे अधिक पैसा नहीं खर्च कर सकते क्योंकि कर्ज लेने के लिए भारत सरकार की अनुमति की जरूरत होती है. ऐसे में राज्यों के ऋण की सीमा है. यदि वे न्यूनतम आय गारंटी जैसी कोई योजना लागू करते है तो उन्हें इसे अपने बजट की सीमा में ही लागू करना होगा.’ रेड्डी ने हालांकि, कहा कि केंद्र के पास अपना राजकोषीय घाटा बढ़ाने की संभावना होती है और वित्तीय मोर्चे पर कोई अधिक अड़चनें नहीं होतीं.
पूर्व गवर्नर ने कहा, ‘ऐसे में इस तरह के कार्यक्रमों का क्रियान्वयन तभी हो सकता है जब केंद्र इसे अपने हाथ में ले. यदि केंद्र इसे बजट में ही शामिल कर सकता है, राजकोषीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन कानून (एफआरबीएम) के लक्ष्य में रखता है तो आपको कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. यदि भारत सरकार कहती है कि वह अपनी संबंधित प्राथमिकताओं के आधार पर अन्य खर्चे घटाएगी तो वह ऐसा कर सकती है.’
इस योजना के वित्तीय प्रभावों पर अध्ययन किया है- कांग्रेस
राहुल गांधी ने इस योजना को गरीबी पर आखिरी वार बताया है. उन्होंने कहा है कि कांग्रेस ने इस योजना के वित्तीय प्रभावों पर अध्ययन किया है और साथ ही इसमें प्रमुख अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों से विचार विमर्श किया है. यह प़ूछे जाने पर कि क्या केंद्र और राज्य ऐसी योजनाओं के क्रियान्वयन में भागीदारी कर सकते हैं, रेड्डी ने कहा कि इससे जटिलताएं बढ़ेंगी. रेड्डी ने कहा वित्तीय संघवाद के परिप्रेक्ष्य में नीति आयोग को नए सिरे से सुगठित करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि नीति आयोग का अधिकार क्षेत्र ‘व्यापक दायरे’ वाला है और यह किसी एक बिंदु पर केन्द्रित नहीं है. उन्होंने कहा कि नीति आयोग का उन्नयन कर उसे सशक्त करने की जरूरत है जिससे वह केंद्र और राज्य के बीच बेहतर समन्वय के साथ काम कर सके.
पूर्व गवर्नर और जी आर रेड्डी ने संयुक्त रूप से ‘इंडियन फिस्कल फेडरलिज्म’ पुस्तक लिखी है. इसमें लेखकों ने लिखा है कि वित्त आयोग की सिफारिशों से बाहर केंद्र और राज्यों के बीच होने वाले सभी हस्तांतरण पर नीति आयोग के संज्ञान में रखते हुये होने चाहिये.
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!