Friday, March 14

तरसेम दीवाना, डेमोक्रेटिक फ्रंट, हुशियारपुर, 13 मार्च :

हमारे देश भारत में इतने उत्सव (त्योहार) आते हैं कि हमारे जीवन में खुशियां हमेशा ही रहती हैं। हर एक त्योहार का सम्बंध किसी पौराणिक कथा से जुड़ा होता है। ठीक उसी तरह से ’’होली’’ का सम्बंध द्वापर युग से राधा-कृष्ण जी से जुड़ा हुआ है। यह रंगो का त्योहार है जिनके माध्यम से हर एक के जीवन में खुशियाँ आती हैं और उनका जीवन रंगों की खुशबू से, फूलों की खुशबू से महक जाता है।ये विचार हिज एक्सीलेंट इंस्टीट्यूट एवं कोचिंग सेंटर के एमडी डॉ. आशीष सरीन ने पत्रकारों के साथ एक प्रेस वार्ता के दौरान व्यक्त किये.उन्होंने कहा कि  द्वापर युग से कलयुग तक आते-आते होली का त्योहार इतना बदल गया कि मैं कभी इतना उदास हो जाता हूँ कि सोचने लगता हूं कि तेरी तरह ही हर इन्सान यह धार्मिक त्योहार क्यों नहीं मनाता ? आज दौलत के पीछे भागता हुआ इन्सान नकली रंगों से, नकली मिठाईयों से दूसरों की ज़िन्दगी बर्बाद कर रहा है। खुशियों को गमों में बदल रहा है। वह क्यों नहीं सोच पाता कि उसकी ज़िन्दगी बर्बाद हो गई, उसकी खुशियाँ गमों में बदल गई तो उसका क्या होगा। युवा वर्ग इस दिन सड़कों पर दौड़कर इन्सानियत को भूलकर दूसरों की सुन्दरता नष्ट करता हुआ, उन्हें उम्र भर के लिए अपाहिज बनाता हुआ, कईयों को मौत के मुँह में भेजता हुआ होली मनाता है। ये युवा वर्ग आजकल कैसे होली मनाने लगा ? उसे सोचना होगा। इन्सान को समझना होगा कि आज फिर से हमें राधा-कृष्ण जी की तरह, ब्रजवासियों की तरह पवित्र भावनाओं के साथ कुदरती रंगों के साथ, दूसरों की खुशियों का ध्यान रखते हुये एक- दूसरे को उपहार देते हुये एक ऐसी होली मनानी चाहिए ताकि यह होली का त्योहार आपके जीवन में हमेशा के लिए अमर हो जाये।