बंग भवन 35 में माँ दुर्गा को दी भावातिरेक विदाई
दुर्गा पूजा 2018, सिंदूर खेला:
नवरात्रि में मां दुर्गा की 10 दिनों तक पूजा करने के बाद विजयदशमी के दिन पंडालों में महिलाएं मां दुर्गा की पूजा करने के बाद उन्हें सिंदूर चढ़ाती हैं। इसके बाद वह उन्हें पान और मिठाई का भोग लगा कर एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। इस परंपरा को सिंदूर खेला कहा जाता है, जो सदियों से बंगाली समाज में चली आ रही है।
इस दिन शादीशुदा महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहन कर माथे में सिंदूर भर कर पंडाल पहुंच कर दुर्गा मां को उलू ध्वनी के साथ विदा करती हैं। इसमें विधवा, तलाकशुदा, किन्नर और नगरवधुओं को शामिल नहीं किया जाता।
मान्यता है कि मां दुर्गा की मांग भर कर उन्हें मायके से ससुराल विदा किया जाता है। कहते हैं कि मां दुर्गा पूरे साल में मां दुर्गा एक बार अपने मायके आती हैं और पांच दिन मायके में रुकने के बाद दुर्गा पूजा होती है।
सिंदूर का महत्व
सिंदूर को सदियों से महिलाओं के सुहाग की निशानी मानी जाती है। मां दुर्गा को सिंदूर लगाने का बड़ा महत्व है। सिंदूर को मां दुर्गा के शादी शुदा होने का प्रतीक माना जाता है इसलिए यही कारण है कि दशमी वाले दिन सभी बंगाली महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर लगाती हैं। :
सुहाग की सलामती
शादीशुदा औरतें लाल साड़ी पहनकर माथे में सिंदूर लगाकर पंडालों में पहुंचती है और मां को उलू ध्वनी के साथ विदा देती हैं। मान्यता है कि जो महिलाएं सिंदूर खेला की प्रथा निभाती हैं उनका सुहाग तथा बच्चा सदा सलामत रहते हैं। पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में, विजयदशामी से पहले सिंधुर खेला मनाया जाता है। दुबराजपुर में, सिंदूर खेला महासप्तमी के दिन ही मनाया जाता है।
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