कांग्रेस के इतिहास में इलाहाबाद का बहुत महत्व है इलाहाबाद का नाम बदले जाने के कारण ओर कांग्रेस के कुछ भी न कर पाने के कारण उनका मुस्लिम वोट बैंक ओर छिटकता नज़र आता है
अखिलेश यादव भी आज कल हिन्दू कहलाने में शर्म नहीं महसूस करते, अपने कार्यकाल में तो उन्हें भवनों ओर दूसरी बातों से मुक्ति न मिली अन्यथा इलाहाबाद आज “प्रयाग कुम्भ” होता, आज उन्हे भाजपा द्वारा इल्लाहबाद को पुन: “प्रयाग” कहलवाने में परम्पराओं का ह्रास दीख पड़ता है, परंतु किसकी परम्पराएँ???
इलाहाबाद शहर एक बार फिर सुर्खियों में है। इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया गया है। यानी लगभग 450 साल बाद यह शहर एक बार फिर से अपने पुराने नाम यानी प्रयागराज के नाम से जाना जाएगा।
गौर हो कि 15वीं शताब्दी में इस पौराणिक भूमि पर मुगलों ने कब्जा कर लिया और इसका नाम प्रयागराज से बदलकर अलाहाबाद कर दिया। अलाहाबाद इलाह+आबाद को मिलाकर बनता है जो एक फारसी शब्द है। इलाह का मतलब अल्लाह और आबाद का मतलब बसाया हुआ यानी अल्लाह का बसाया हुआ शहर। मुगल सम्राट अकबर के अलाहाबाद करने से पहले इसका नाम प्रयागराज ही था। बोलचाल की प्रचलन के मुताबिक अलाहाबाद ,इलाहाबाद और एलाहाबाद के नाम से भी पुकारा जाने लगा।
कांग्रेस के इतिहास में इलाहाबाद का बहुत महत्व है,कांग्रेस के ओंकार सिंह ने बताया कि आजादी की लड़ाई के दौरान इलाहाबाद प्रेरणा का एक मुख्य केंद्र रहा था. उन्होंने कहा कि 1888, 1892 और 1910 में कांग्रेस महाधिवेशन यहीं हुआ था. इसी शहर से देश को अपना पहला प्रधानमंत्री मिला. इसके अलावा अगर इलाहाबाद का नाम बदला गया तो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी अपनी पहचान खो देगी. इलाहाबाद का नाम बदले जाने के कारण ओर कांग्रेस के कुछ भी न कर पाने के कारण उनका मुस्लिम वोट बैंक ओर छिटकता नज़र आता है
संगम नगरी इलाहाबाद का नाम बदलकर ‘प्रयागराज‘ किए जाने की तैयारियों के बीच समाजवादी पार्टी अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे परंपरा और आस्था के साथ खिलवाड़ करार दिया. सोमवार को अखिलेश ने ट्वीट करते हुए कहा कि प्रयाग कुंभ का नाम केवल प्रयागराज किया जाना और अर्द्धकुंभ का नाम बदलकर ‘कुंभ‘ किया जाना परंपरा और आस्था के साथ खिलवाड़ है.
देश के धार्मिक, शैक्षिक और राजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण शहर इलाहाबाद को अब प्रयागराज के नाम से जाना जाएगा, लेकिन क्या आपको पता है कि इस शहर का नाम कैसे और क्यों बदला गया? दरअसल ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों ही रूप से प्रयागराज समृद्ध है। इस जिले को ब्रह्मा की यज्ञस्थली के रूप में जाना जाता है। यहां आर्यों ने भी अपनी बस्तियां बसाई थीं। आंकड़ों के मुताबिक 160 साल बाद जिले का नाम इलाहाबाद से प्रयागराज हो रहा है।
जानिए प्रयाग से इलाहाबाद और फिर प्रयागराज तक का सफर-
1- पुराणों में कहा गया है, ”प्रयागस्य पवेशाद्वै पापं नश्यति: तत्क्षणात्।” अर्थात् प्रयाग में प्रवेश मात्र से ही समस्त पाप कर्म का नाश हो जाता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने इसकी रचना से बाद प्रयाग में पहला यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग यानी यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना।
2- कुछ मान्यताओं के मुताबिक ब्रह्मा ने संसार की रचना के बाद पहला बलिदान यहीं दिया था, इस कारण इसका नाम प्रयाग पड़ा। संस्कृत में प्रयाग का एक मतलब ‘बलिदान की जगह’ भी है। इसके अलावा प्रयाग ऋषि भारद्वाज, ऋषि दुर्वासा और ऋषि पन्ना की ज्ञानस्थली भी है।
3- 1575 में संगम के सामरिक महत्व से प्रभावित होकर सम्राट अकबर ने इलाहाबास के नाम से शहर की स्थापना की जिसका अर्थ है- अल्लाह का शहर। उन्होंने यहां इलाहाबाद किले का निर्माण कराया, जिसे उनका सबसे बड़ा किला माना जाता है।
4- इसके बाद 1858 में अंग्रेजों के शासन के दौरान शहर का नाम इलाहाबाद रखा गया तथा इसे आगरा-अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी बना दिया गया।
5- आजादी की लड़ाई का केंद्र इलाहाबाद ही था। वर्धन साम्राज्य के राजा हर्षवर्धन के राज में 644 CE में भारत आए चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने अपने यात्रा विवरण में पो-लो-ये-किया नाम के शहर का जिक्र किया है, जिसे इलाहाबाद माना जाता है।
6- उन्होंने दो नदियों के संगम वाले शहर में राजा शिलादित्य (राजा हर्ष) द्वारा कराए एक स्नान का जिक्र किया है, जिसे प्रयाग के कुंभ मेले का सबसे पुराना और ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाता है।
7-वैसे थो इलाहाबाद नाम मुगल शासक अकबर की देन है लेकिन इसे फिर से प्रयागराज बनाने की मांग समय-समय पर होती रही है।
8- महामना मदनमोहन मालवीय ने अंग्रेजी शासनकाल में सबसे पहले यह आवाज उठाई और फिर अनेक संस्थानों ने समय-समय पर मांग दोहराई।
9- मालवीय ने इलाहाबाद का नाम बदलने की मुहिम भी छेड़ी थी। 1996 के बाद इलाहाबाद का नाम बदलने की मुहिम फिर से शुरू हुई। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेद्र गिरी भी नाम बदलने की मुहिम में आगे बताया।
10- आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के समक्ष भी नाम इलाहाबाद का नाम बदलने की मांग की गई। वर्तमान में साधू संतों ने सरकार के सामने प्रस्ताव दिया था।