Sunday, June 1

डॉ. बी.आर. आंबेडकर: भारत के विभाजन का दूरदर्शी विश्लेषण

सुशील पंडित, डेमोक्रेटिक फ्रंट, यमुनानगर, 01        जनवरी  :

डॉ. बी.आर. आंबेडकर, भारतीय संविधान के प्रमुख शिल्पकार, एक महान न्यायविद, दार्शनिक और समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारतीय समाज की संरचना और राजनीति पर गहरी छाप छोड़ी। उनका दृष्टिकोण न केवल भारतीय समाज के न्याय और समानता की ओर था, बल्कि उन्होंने विभाजन और सांप्रदायिकता के मुद्दे पर भी गहरी समझ और विश्लेषण प्रस्तुत किया। आंबेडकर का मानना था कि भारत का विभाजन एक राजनीतिक और सांप्रदायिक विफलता का परिणाम था, जो लंबे समय तक भारतीय समाज और राजनीति पर असर डालता रहेगा। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक पाकिस्तान और भारत का विभाजन में इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए, जो आज भी प्रासंगिक हैं और विभाजन के मुद्दे पर व्यापक समझ प्रदान करते हैं।

भारत के विभाजन का मुख्य कारण मुस्लिम लीग की अलग राज्य की मांग थी, जो अंततः पाकिस्तान के निर्माण का कारण बनी। 1940 में मुस्लिम लीग ने लाहौर सत्र में यह घोषणा की थी कि कोई भी संवैधानिक योजना भारत के लिए काम नहीं कर सकती जब तक कि उन क्षेत्रों को अलग नहीं किया जाए, जहां मुसलमानों की संख्या बहुमत में हो। रहमत अली, जो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र थे, ने “पाकिस्तान” शब्द को गढ़ा और भारत को दो राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव रखा। उनका पाकिस्तान में पंजाब, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत, कश्मीर, सिंध और बलूचिस्तान को शामिल करने का विचार था। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था, लेकिन यह विचार धीरे-धीरे मुस्लिम समुदाय के बीच मजबूत हुआ और अंततः पाकिस्तान का निर्माण हुआ।

आंबेडकर ने पाकिस्तान के समर्थन में मुस्लिम लीग के तर्कों का विश्लेषण किया। मुस्लिम लीग का मानना था कि हिंदू बहुल भारत में मुसलमानों की स्थिति कमजोर हो जाएगी, और उनका मानना था कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। इसके अलावा, मुसलमानों ने अपने सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक अलग राज्य की आवश्यकता महसूस की। आंबेडकर ने इन तर्कों को तार्किक रूप से विश्लेषित किया और स्वीकार किया कि मुस्लिम समुदाय के बीच यह भावना थी कि उन्हें एक अलग पहचान और स्वायत्तता की आवश्यकता थी।

वहीं, हिंदू समुदाय ने विभाजन का विरोध किया और यह तर्क दिया कि भारत की एकता को बनाए रखना जरूरी है। उनका मानना था कि विभाजन से भारत की सुरक्षा और एकता को खतरा होगा। आंबेडकर ने इस पर भी विचार किया और देखा कि विभाजन के बावजूद हिंदू और मुसलमानों के बीच की सांप्रदायिक तनावपूर्ण स्थिति को सुलझाने के लिए कोई स्थायी समाधान नहीं था। उनका कहना था कि यह समस्या केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी थी।

आंबेडकर ने पाकिस्तान के वैकल्पिक विचारों का भी विश्लेषण किया। उन्होंने हिंदू धर्म के जातिवाद को चुनौती दी और कहा कि जातिवाद हिंदू धर्म को संप्रदायिक रूप से विभाजित करता है। इसके विपरीत, उन्होंने मुस्लिम समुदाय के भीतर भी सुधार की आवश्यकता की बात की। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों से सामाजिक सुधार की अपील की ताकि सांप्रदायिक हिंसा और असहमति को समाप्त किया जा सके।

आंबेडकर ने पाकिस्तान के निर्माण के बाद हिंदू-मुसलमान संबंधों पर गहरी चिंता व्यक्त की और प्रस्तावित किया कि सांप्रदायिक राजनीतिक पार्टियों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। उनका मानना था कि देशों की स्थिरता और एकता तभी संभव है जब सभी नागरिकों को समान अधिकार मिले और वे एकजुट होकर देश की प्रगति में भाग लें।

आंबेडकर का यह विश्लेषण न केवल भारत के विभाजन को समझने में मदद करता है, बल्कि यह आज भी भारत-पाकिस्तान संबंधों और हिंदू-मुसलमान मुद्दों पर गहरी सोच को प्रेरित करता है। उनकी दृष्टि यह बताती है कि केवल राजनीतिक समाधान ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव भी आवश्यक हैं ताकि किसी भी राष्ट्र में सभी समुदायों के अधिकारों की रक्षा की जा सके। आंबेडकर का यह विश्लेषण भारत के विभाजन के कारणों और हिंदू-मुसलमान संबंधों की जटिलताओं को समझने में मदद करता उनकी पुस्तक पाकिस्तान और भारत का विभाजन आज भी विभाजन के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक के रूप में जानी जाती है।