डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 12 सितंबर:
जय माता किन्नर मंदिर सेक्टर 26 में स्थापित गणेश प्रतिमा का विसर्जन वीरवार को किया गया। मंदिर की पुजारिन महंत कमली माता की देखरेख में पूजा अर्चना के साथ गणपति की मिट्टी, गोबर और हल्दी से निर्मित मूर्तियों को मंदिर परिसर का भ्रमण कराया गया तथा एक साफ सुथरे गमले में विसर्जित किया गया। इस मौके पर मंदिर के सेवादारों सहित अन्य लोग भी मौजूद थे।लोगों ने विघ्न विनायक श्री गणेश की पूजा धूमधाम से की।
किन्नर मंदिर की पुजारिन महंत कमली माता ने बताया कि भगवान गणेश जल तत्व के अधिपति हैं और यही कारण है कि अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणपति की पूजा-अर्चना कर गणपति-प्रतिमा का विसर्जन किया जाता हैI उन्होंने बताया कि विसर्जन समारोह से पहले भगवान गणेश की मूर्ति को धूप (अगरबत्ती), गहरा (दीया), पुष्पा (फूल), गंध (इत्र), नैवेद्य और मोदक या लड्डू का प्रसाद चढ़ाया गया। सभी भक्तिभाव से आरती की और बप्पा को उनके घरों में आने और आशीर्वाद देने के लिए धन्यवाद दिया। सभी ने पूजा के दौरान हुई किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा मांगी। इसके बाद गणपति बप्पा की मूर्तियों का मंदिर में एक गमले में जल डाल मिट्टी और गोबर की मूर्ति को विसर्जित कर उसमें एक पौधा लगा दिया गया है। जबकि हल्दी से निर्मित बप्पा की मूर्ति को एक बर्तन में जल में घोल बना कर मंदिर परिसर और भक्तों पर छिड़का गया।
गणपति बप्पा की मूर्ति विसर्जन के बारे में बताते हुए उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वेद व्यास जी ने गणेश जी को गणेश चतुर्थी से 10 दिनों तक महाभारत की कथा सुनाई थी, जिसे गणेश जी ने बिना रुके लिपिबद्ध कर दिया। 10 दिनों के बाद जब वेद व्यास जी ने अपनी आंखें खोली, तो पाया कि अथक परिश्रम के कारण गणेश जी के शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया है। उन्होंने तुरंत गणेश जी को पास के ही एक सरोवर में ले उनके शरीर को शीतल किया। इससे उनके शरीर का तापमान सामान्य हो गया। इस कारण से ही अनंत चतुर्दशी को गणेश जी की मूर्तियों को जल में विसर्जित किया जाता है। वेद व्यास जी ने गणपति बप्पा के शरीर के तापमान को कम करने के लिए उनके शरीर पर सौंधी मिट्टी का लेप लगा दिया। लेप सूखने से गणेश जी का शरीर अकड़ गया। इससे मुक्ति के लिए उन्होंने गणेश जी को एक सरोवर में उतार दिया। फिर उन्होंने गणेश जी की 10 दिनों तक सेवा की, मनपसंद भोजन आदि दिए। इसके बाद से ही गणेश मूर्ति की स्थापना और विसर्जन प्रतीक स्वरूप होने लगा।