- टांगों की नसें नीली हैं, मुड़ी हुई हैं या फूल रही हैं? तो हल्के में न लें गम्भीर बीमारी का संकेत हो सकता है
- भारत डायबिटीज का कैपिटल- धमनियों पर करता है मार , जानलेवा साबित होता है खून का थक्का
- अब रोहतक में महीने में दो शुक्रवार 11बजे द्वारिका के एंडोवस्कुलर सर्जन डॉ तपिश साहू होंगे डॉ पवन शर्मा के अस्पताल में उपलब्ध रहेंगे
डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 23 मई :
रोहतक में पत्रकारों से रूबरू हो डॉ तपीश साहू , डॉ हर्षित मल्होत्रा व डॉ पवन शर्मा ने बताया कि भारत की लगभग 25 फीसदी आबादी को वैरिकोज वेन्स , डी वी टी आदि धमनियों की समस्या चुपचाप होती है। लंबे समय तक खड़े रहने या बैठे रहने के बाद पैरों की नसें उभरी हुई दिखती हैं। लोग अक्सर इसे नजरंदाज कर देते हैं। लेकिन समय के साथ नसें मुड़ने लगती हैं, उनका रंग गहरा होने लगता है, और वो बाहर की ओर उभर आती हैं। डॉ. तपीश साहू, एचओडी – वैस्कुलर एंड एंडोवास्कुलर सर्जरी, मणिपाल हॉस्पिटल, द्वारका, नई दिल्ली के अनुसार, वैरिकोज वेन्स होने का कारण पैरों की नसों में मौजूद वॉल्व द्वारा सामान्य रूप से काम करने की क्षमता खो देना होता है।चूंकि रोहतक में एंडोवस्कुलर विभाग की सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं , इसलिए अब डॉ तपिश साहू रोहतक में महीने में दो शुक्रवार डॉ पवन शर्मा के अस्पताल में उपलब्ध रहेंगे।
इसकी वजह यह है कि खून वापस हृदय की ओर जाने की बजाय एक हिस्से में एकत्रित होने लगता है, जिससे उस हिस्से में दबाव बढ़ जाता है और नसें मुड़कर फूल जाती हैं तथा त्वचा के ऊपर दिखाई देने लगती हैं।
लंबे समय तक खड़े रहने के बाद पैरों में दर्द होना और उनका भारी महसूस होना, टखनों और निचले पैर में सूजन, जो शाम को बढ़ जाए, पैरों में हल्का दर्द या ऐंठन महसूस होना, प्रभावित नसों के आसपास रुखापन या खुजली महसूस होना, टखने के पास त्वचा फींकी पड़ना और घावों का धीरे-धीरे ठीक होना, यदि ये लक्षण बार-बार वापस आ रहे हैं, तो अपनी नसों के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।
इसके कारणों में बढ़ती उम्र, अनुवांशिकी या हार्मोन में बदलाव शामिल हैं। इसके अलावा जीवनशैली की भी इसमें अहम भूमिका है। जिन लोगों को डेस्क पर लंबे समय तक बैठकर काम करना पड़ता है, घंटों तक खड़े रहना पड़ता है, जो महिलाएं कई बार गर्भधारण करती हैं, या जिनका वजन बहुत ज्यादा होता है, उन सभी को इसके होने का खतरा अधिक होता है।
इसके गंभीर मामलों में डीप वीन थ्रॉम्बोसिस (डीवीटी) भी हो सकता है, जिसके लिए इमरजेंसी केयर आवश्यक हो जाती है, कुछ मरीजों में इन कमजोर नसों के कुछ हिस्सों बार-बार खून भी निकल सकता है।
अगर वैरिकोज वेन्स का इलाज न कराया जाए, तो इससे ज्यादा बड़ी समस्याएं हो सकती हैं। इनमें कुछ आम समस्याएं हैं- नसों में क्रोनिक समस्या, जिसकी वजह से नसें खून का संचार ठीक से नहीं कर पाती हैं, त्वचा पर पीड़ादायक अल्सर, जो कभी ठीक नहीं होते, त्वचा के नजदीक की नसों में खून के थक्के जमना या सूजन.
अगर समस्या हल्की है, तो ज्यादा पैदल चलने, पैरों को ऊपर उठाने या कसे हुए स्टॉकिंग पहनने से लक्षणों में आराम मिल सकता है। लेकिन अगर इनसे आराम न मिले, तो वैस्कुलर सर्जन द्वारा पैरों का डॉप्लर अल्ट्रासाउंड किया जा सकता है और उसी के अनुरूप इलाज का परामर्श दिया जा सकता है।
आज इसके लिए सुरक्षित और प्रभावी इलाज भी उपलब्ध हैं, जिनमें वैरिकोज वेन्स का ग्लू एब्लेशन या लेजर ट्रीटमेंट एवं रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (क्षतिग्रस्त नस की हीट सीलिंग), स्क्लेरोथेरेपी (नसों को बंद करने के लिए सॉल्यूशन इंजेक्ट करना) या गंभीर मामलों में क्षतिगस्त नसों को सर्जरी द्वारा निकालना शामिल है।