Wednesday, March 26

मुनि उपेंद्र मुनि महाराज ने कहा कि मूर्ख व्यक्ति आठ दोषों से ग्रस्त होता है: उसे किसी भी चीज़ की चिंता नहीं होती, वह अत्यधिक बोलता है, बड़ों के बीच बिना सोचे-समझे हस्तक्षेप करता है, आलसी रहता है और कार्य-अकार्य का विवेक नहीं रखता, उसे सम्मान और अपमान की परवाह नहीं होती, उसका शरीर स्वस्थ रहता है, लेकिन मस्तिष्क विकसित नहीं होता, वह हठधर्मी और जिद्दी होता है, अपनी मूर्खता को न पहचानते हुए खुद को बुद्धिमान समझता है।

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जगदीश असीजा, डेमोक्रेटिक फ्रंट, उकलाना, 24 मार्च :

 जैन संत उपेंद्र मुनि महाराज ने उकलाना से विहार किया और गांव लितानी में पहुंचे। गांव लितानी में जैन संत उपेंद्र मुनि ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मूर्ख व्यक्ति और पाषाण (पत्थर) में कोई अंतर नहीं होता, क्योंकि मूर्ख न तो अच्छे-बुरे का विचार करता है और न ही किसी हितैषी की बात मानता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य का मुख्य लक्षण मनन (विचार) करके कार्य करना होता है, लेकिन मूर्खता मनुष्य के इस लक्षण के विपरीत होती है।

जैन संत उपेंद्र मुनि ने कहा कि मूर्ख व्यक्ति की सबसे बड़ी पहचान उसकी वाणी का अविवेक (अर्थहीन और अनियंत्रित बोलना) होता है। कई लोग खुद को बुद्धिमान साबित करने के लिए बिना किसी के पूछे भी बोलते रहते हैं और जब उन्हें रोका जाता है, तो वे क्रोधित होकर झगड़ने लगते हैं। अधिक और अप्रासंगिक बोलना मूर्खता का सबसे बड़ा लक्षण है।

मुनि उपेंद्र मुनि महाराज ने कहा कि मूर्ख व्यक्ति आठ दोषों से ग्रस्त होता है: उसे किसी भी चीज़ की चिंता नहीं होती, वह अत्यधिक बोलता है, बड़ों के बीच बिना सोचे-समझे हस्तक्षेप करता है, आलसी रहता है और कार्य-अकार्य का विवेक नहीं रखता, उसे सम्मान और अपमान की परवाह नहीं होती, उसका शरीर स्वस्थ रहता है, लेकिन मस्तिष्क विकसित नहीं होता, वह हठधर्मी और जिद्दी होता है, अपनी मूर्खता को न पहचानते हुए खुद को बुद्धिमान समझता है।

जैन संत उपेंद्र मुनि ने कहा कि मूर्ख व्यक्ति का स्वभाव घमंडी, कटु भाषी और हठी होता है। वह दूसरों की सलाह को नजरअंदाज करता है और अपने निर्णयों पर ही अड़ा रहता है। वह सही-गलत, धर्म-अधर्म और लाभ-हानि का विवेक नहीं रखता। ऐसे व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए अनैतिक कार्य भी कर सकते हैं।

जैन संत उपेंद्र मुनि ने बताया कि कई मूर्ख लोग बिना मेहनत के धन और प्रतिष्ठा प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। वे बिना सोचे-समझे कर्ज लेकर अनावश्यक खर्च करते हैं और बाद में जीवनभर पछताते हैं। इसके अलावा, मूर्ख व्यक्ति दूसरों की नकल तो करता है लेकिन कार्य को सही तरीके से करना नहीं सीखता।

मुनि उपेंद्र मुनि महाराज ने कहा कि भगवान महावीर ने अपनी अंतिम वाणी में मूर्ख व्यक्ति के संग को त्यागने का उपदेश दिया था। उन्होंने कहा कि मूर्ख से तर्क करना पत्थर से टकराने जैसा है, जिसमें नुकसान टकराने वाले का ही होता है। मूर्ख व्यक्ति अच्छी बातों को भी गलत तरीके से ग्रहण करता है, इसलिए उनसे दूर रहना ही श्रेयस्कर है।

प्रवचन मे श्रद्धालुओं से सद्बुद्धि, विवेक और सत्संगति को अपनाने का आह्वान किया ताकि समाज में ज्ञान, सदाचार और नैतिकता की स्थापना हो सके।