नपुंसकता एवं बाँझपन का सबसे बड़ा कारण बनी आधुनिक जीवनशैली : डा. ऋषिकेश पाई
रहन-सहन के आधुनिक तौर-तरीकों ने इंसान की प्रजन्न शक्ति घटाई: डा. ऋषिकेश पाई
आईवीएफ से जुड़ी गलत धारणाओं को दूर करना समय की जरूरत: डा. ऋषिकेश पाई
नवजीवन पैदा करने की सफल प्रक्रिया है आईवीएफ: डा. मेहता
भारत में 30 प्रतिशत पुरुष समस्याएं गर्भपात का कारण: डॉ. शोभना वर्मा
डेमोक्रेटिक फ्रंट, पंचकूला – 24 मार्च :
विश्व प्रसिद्ध गाइनोकोलोजिस्ट तथा आई.वी.एफ. माहिर डाक्टर ऋषिकेश पाई ने आज यहां प्रैस कान्फ्रेंस दौरान बताया कि आधुनिक जीवन शैली ने मर्दों एवं औरतों की बच्चे पैदा करने की समर्था शक्ति पर बड़ा हमला किया है। फैडरेशन आफ ओवेसटेट्रिक्स एंड गाइनोकालोजिकल सोसायटी आफ इंडिया के अध्यक्ष डा. ऋषिकेश पाई के साथ इस अवसर पर फोर्टिस ब्लूम आईवीएफ विभाग की प्रमुख डा. पूजा मेहता एवं सलाहकार डा. शोभना वर्मा भी मौजूद थी।
डॉ. पूजा मेहता ने कहा कि कृत्रिम गर्भधारण (आईवीएफ) के बार-बार असफल होने के बावजूद महिलाएं सामान्य तरीके से गर्भधारण कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि एक बेहतरीन आईवीएफ लैब तक पहुंच से प्रजनन की सफलता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और अंडाणु व शुक्राणुओं की गुणवत्ता में सुधार होता है।
इस अवसर पर डा. पाई ने अपने तजुर्बें तथा दुनिया भर के माहिरों द्वारा किए गए अध्यन्नों के हवाले से बताया कि बड़ी उम्र में किए जाते विवाह, पौष्टिक तथा संतुलित खुराक की कमी, बढ़ता वजन, शारीरिक कसरत न करना, कैफिन सहित चिट्टे जैसी खतरनाक ड्रगज, शराब तथा सिगरेट के सेवन ने मर्दों तथा महिलाओं की प्रजन्न शक्ति पर गहरी चोट पहुंचाई है। डॉ. पाई ने कहा कि सफल आईवीएफ प्रक्रिया के लिए भ्रूण निर्माण के दौरान अच्छी लैब स्थितियों की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि इसकी सफलता दर 35 वर्ष की आयु के दौरान 40 से 50 प्रतिशत तक होती है। उन्होंने एक दंपति का उदाहरण देते हुए बताया कि पति के शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता अत्यधिक कम थी। जब उनका डीएनए फ्रेग्मेंटेशन इंडेक्स (डीएनए) परीक्षण किया गया तो उसकी मात्रा 35 प्रतिशत से अधिक पाई गई। इसके बाद महिला के आवश्यक परीक्षण किए गए। तीन महीने के उपचार के बाद, वे प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने में सक्षम हो गए। उन्होंने बताया कि इस तकनीक की मदद से वे कई दंपतियों को माता-पिता बनने में सफलतापूर्वक सहायता कर चुके हैं।
पत्रकारों से बातचीत करते हुए डॉ. मेहता ने कहा कि महिलाओं में गंभीर पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) और दोनों फेलोपियन ट्यूबों का अवरुद्ध होना, बांझपन के दो प्रमुख कारण हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास नवीनतम तकनीकें और उपचार विधियां हैं, जिनके माध्यम से ऐसी महिलाओं का सफल इलाज किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह धारणा गलत है कि आईवीएफ उपचार सफल नहीं होता। यह एक नई जीवन प्रक्रिया को जन्म देने की तकनीक है, जिसकी सफलता दर उम्र के अनुसार बदलती रहती है। आईवीएफ की असफलता के कारण भ्रूण, अंडाणु और शुक्राणु से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
डॉ. शोभना वर्मा ने कहा कि भारत में 30 प्रतिशत पुरुषों की समस्याएं भी बांझपन का कारण बनती हैं। उन्होंने बताया कि अब तक वे 100 में से 90 दंपतियों का सफल उपचार कर चुके हैं। गर्भपात के कारणों की पहचान कर ही उसका सफल इलाज किया जा सकता है।
श्रीमती X (38) और श्री Y (42), जो 10 वर्षों से विवाहित थे, ने दो असफल आईवीएफ प्रयासों के बाद प्राकृतिक रूप से गर्भधारण किया। डॉ. पूजा ने समस्या की पहचान बंद फैलोपियन ट्यूब और बार-बार आईयूआई विफलताओं के रूप में की, साथ ही श्री Y के शुक्राणु असामान्यताओं का निदान किया। डीएनए फ्रैगमेंटेशन इंडेक्स (DFI) 35% से अधिक पाया गया। तीन महीने के उपचार से शुक्राणु गुणवत्ता और गर्भाशय स्वास्थ्य में सुधार हुआ, जिससे दंपति ने स्वाभाविक रूप से संतान प्राप्त की।
इसी तरह, श्रीमती A (36) और श्री B (38), जो 7 वर्षों से विवाहित थे, को तीन असफल आईवीएफ प्रयासों के बाद IMSI और LAH तकनीकों से सफलता मिली। डॉ. शोभना द्वारा हिस्टेरोस्कोपी के बाद दो भ्रूण स्थानांतरित किए गए, जिससे श्रीमती A सफलतापूर्वक गर्भवती हुईं और स्वस्थ शिशु को जन्म दिया।