डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 24 मार्च :
सेक्टर-32 स्थित गोस्वामी गणेश दत्त सनातन धर्म कॉलेज के पोस्ट ग्रेजुएट इंग्लिश विभाग की ओर से “अनुवाद अध्ययन” पर आयोजित सात दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें प्रतिष्ठित वक्ताओं और व्यावहारिक सत्रों ने भाषाई और सांस्कृतिक विभाजन के बीच की दूरी को कम करने में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। कार्यशाला का उद्घाटन मुख्य अतिथि अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु के पूर्व डॉयरेक्टर, ट्रांसलेशन इनिशिएटिव, डॉ. हृदय कांत दीवान द्वारा किया गया। शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. दीवान का 45 वर्ष का करियर कुरिकुलम डेवलपमेंट, टेक्स्ट बुक राइटिंग और अकादमिक स्रोतों को अंग्रेजी से हिंदी और कन्नड़ में अनुवाद करने के व्यापक कार्य तक फैला हुआ है।
डॉ. दीवान ने अनुवाद की परिवर्तनकारी शक्ति पर श्रोताओं को संबोधित किया। तेजी से हो रही तकनीकी प्रगति के बीच एक कुशल अनुवादक के अपूरणीय मूल्य पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि अभी तक एआई एक अच्छे अनुवादक की जगह नहीं ले सका है क्योंकि अनुवाद का मतलब लेखक के प्रति सहानुभूति और सम्मान रखना है। इसके लिए रजिस्टर की बारीकियों की सराहना और यह समझने की आवश्यकता है कि सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तनों के साथ इनमें किस प्रकार विकास हुआ है। अनुवाद महज एक शाब्दिक, यांत्रिक गतिविधि से कहीं अधिक है।
जीजीडीएसडी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. अजय शर्मा ने व्यापक कार्यशाला आयोजित करने के लिए पोस्ट ग्रेजुएट इंग्लिश विभाग की सराहना की, जिसमें छात्रों को अनुवाद का व्यावहारिक अनुभव प्रदान किया गया और सैद्धांतिक ढांचे को व्यावहारिक अनुप्रयोगों के साथ एकीकृत किया गया। उन्होंने इस तथ्य की सराहना की कि कार्यशाला से छात्रों को समकालीन अनुवाद चुनौतियों को समझने और उनसे निपटने में मदद मिली। वहीं, रिसोर्स पर्सन पंजाब यूनिवर्सिटी के दर्शनशास्त्र विभाग के असिसटेंट प्रोफेसर डॉ. लल्लन सिंह बघेल ने कार्यशाला के तीन दिनों तक छात्रों का मार्गदर्शन किया।
उन्होंने कहा कि अनुवाद एक संवाद का कार्य है; यह एक सतत प्रक्रिया है जिसमें हम स्रोत पाठ के वास्तविक सार को यथासंभव करीब से पकड़ने का प्रयास करते हैं। डॉ. बघेल ने अपने सत्र में छात्रों के साथ संवादात्मक अनुवाद अभ्यास कराया। डॉ. बघेल की सहायता से छात्रों ने कृष्ण कुमार द्वारा लिखित “शिक्षण और नव-उदारवादी राज्य” नामक शोध लेख का अनुवाद किया। इस अभ्यास में, जिसमें अंग्रेजी से हिंदी और पंजाबी में पाठ का अनुवाद करना शामिल था, प्रतिभागियों को अनुवाद करते समय मूल संदेश को संरक्षित करने में शामिल बारीकियों की व्यावहारिक समझ प्रदान की गई।
डॉ. बघेल के विशेषज्ञ मार्गदर्शन में, छात्रों ने कुमार पांडा द्वारा लिखित “इन थ्योराइजिंग कॉन्शियसनेस: सेरेल वर्सेज हुसरल” नामक शोध आलेख के अंशों का अनुवाद भी किया। इस सत्र में विद्यार्थियों को जटिल शब्दावली और वैचारिक ढांचे को समझने की चुनौती दी गई, जिससे अंततः हिंदी और पंजाबी दोनों में अनुवाद तैयार हो सके। कार्यशाला को प्रतिभागियों से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली, जिन्होंने न केवल चुनौती को स्वीकार किया, बल्कि असाधारण कार्य भी किया। कार्यशाला के शेष दिनों में पोस्ट ग्रेजुएट इंग्लिश विभाग के शिक्षकों ने विद्यार्थियों के साथ विभिन्न अनुवाद अभ्यास किए।