डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 13 मार्च :

पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ के कन्वोकेशन में इस बार छात्रों को जो जैकेट पहनाई गईं, उन्होंने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। इन जैकेट्स पर विश्वविद्यालय का नाम गलत लिखा था—“PANJAB UNIVERSITY” की जगह “PUNJAB UNIVERSITY”। यह केवल एक टाइपिंग एरर है या फिर इसके पीछे कोई गहरी साजिश छिपी है?
नाम की गलती या सोची-समझी चाल?
जाने-माने आरटीआई कार्यकर्ता राजेंद्र के सिंगला ने बताया कि भारत की पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ और पाकिस्तान की यूनिवर्सिटी ऑफ द पंजाब में नाम का अंतर केवल एक अक्षर का है—PAN बनाम PUN। लेकिन इस गलती ने दोनों के बीच का यह महीन फर्क भी मिटा दिया। सवाल यह उठता है कि क्या यह मात्र संयोग था, या फिर विश्वविद्यालय प्रशासन की अनदेखी का नतीजा? अगर यह गलती सिर्फ किसी आम टेक्स्ट में होती, तो इसे टाइपिंग एरर समझा जा सकता था। लेकिन विश्वविद्यालय के आधिकारिक प्रतीक चिन्ह (लोगो) में बदलाव को केवल एक लापरवाही मानना मुश्किल है। इससे यह संदेह पैदा होता है कि क्या यह बदलाव जानबूझकर किया गया?
किसकी जिम्मेदारी?
- क्या यह गलती विश्वविद्यालय प्रशासन की मंजूरी से हुई?
- क्या जैकेट बनाने वाली कंपनी ने इसे बिना जांच-परख के तैयार किया?
- या फिर यह प्रशासन की लापरवाही का एक और उदाहरण है?
विश्वविद्यालय प्रशासन पर पहले भी उठ चुके हैं सवाल
यह पहली बार नहीं है जब पंजाब विश्वविद्यालय प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े हुए हैं। विश्वविद्यालय का संचालन 91-सदस्यीय सीनेट के तहत होना चाहिए, लेकिन 31 अक्टूबर 2024 के बाद से सीनेट के चुनाव कराए बिना ही अधिकारी मनमानी चला रहे हैं। कई प्रशासनिक अधिकारी तो बिना किसी चयन प्रक्रिया के वर्षों से उच्च पदों पर बने हुए हैं। प्रोफेसर वाई.पी. वर्मा वर्षों से बिना नियमित चयन प्रक्रिया के रजिस्ट्रार के पद पर बने हुए हैं। अगर प्रशासन इतनी बारीकी से यह सुनिश्चित कर सकता है कि प्रो. वर्मा के विजिटिंग कार्ड पर “कार्यकारी रजिस्ट्रार” शब्द की जगह रजिस्ट्रार छपे, और Panjab की स्पेलिंग सही हो, तो फिर यूनिवर्सिटी के प्रतीक चिन्ह में ऐसी गलती कैसे हो गई?
अब क्या होगा?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस गलती की जांच होगी, या इसे भी अन्य घोटालों की तरह दबा दिया जाएगा? शुक्र है कि यह गलती खुली आँखों से देखी जा सकती है। आरटीआई कार्यकर्ता डॉ राजिंदर के सिंगला का कहना है कि इसे जानने के लिए अगर सूचना का अधिकार (RTI) का सहारा लेना पड़ता, तो शायद यह कभी सामने नहीं आता। क्योंकि विश्वविद्यालय प्रशासन की जानकारी छिपाने की आदत किसी से छिपी नहीं है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में कोई कार्रवाई होती है या फिर यह भी इतिहास के पन्नों में एक और विवाद बनकर रह जाएगा।