पवन सैनी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, हिसार, 05 नवंबर :
पूर्वांचल जन कल्याण संगठन समिति के तत्वाधान में आज नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत हो गई। समिति के महासचिव आचार्य मुरलीधर पाण्डेय व कोषाघ्यक्ष आचार्य शिवपूजन शास्त्री ने बताया कि प्रात: बड़ी संख्या में पूर्वांचल समाज के लोगों ने लोक आस्था के महापर्व के उपलक्ष्य में सरोवरों व नदियों में स्नान किया व सूर्य को अर्घ्य दिया। अनुष्ठान के दूसरे दिन 6 नवम्बर को खरना करेंगे। 7 नवम्बर को छठ महापर्व के मुख्य दिन जिंदल पार्क, मिल गेट स्थित जिंदल सरोवर में अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को त्रिवेणी के जल से अर्घ्य दिया जाएगा। 8 नवम्बर को प्रात: उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर महापर्व सम्पन्न हो जाएगा। छठ महापर्व के दिन 7 नवम्बर को सायं 4 बजे हरियाणा की पूर्व मंत्री एवं विधायक सावित्री जिंदल मुख्यातिथि के रूप में भाग लेंगी। समिति के संरक्षक डॉ. राधेश्याम शुक्ल एवं प्रधान विनोद साहनी ने बताया कि सूर्य भगवान की 11 लाख ज्योतों द्वारा महाआरती की जाएगी। छठ पर्व के आयोजन में प्रधान विनोद साहनी, आचार्य मुरलीधर पांडेय, अर्चना पांडेय, आचार्य शिवपूजन मिश्र, रविन्द्र सिंह, हरीश चंद्र तिवारी, अनूप पाण्डेय, तारकेश्वर मिश्र, दिनेश पाण्डेय, अनिल उपाध्याय, मुख्तयार गिरी, मुखलाल, भिखी आदि पिछले एक सप्ताह से तैयारियों में लगे हुए हैं।
आज बनाया अरवा चावल, चने की दाल एवं कद्दू की सब्जी
आचार्य शिवपूजन मिश्र ने बताया कि छठ महापर्व में नहाय-खाय का विशेष महत्व है। इस दिन व्रती अपने शरीर, वस्त्र एवं घर की शुद्धता का विशेष ध्यान रखते हैं। प्रात: से ही व्रतियों के गंगातट या सरोवर पर नहाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। भोजन में अरवा चावल, चने की दाल एवं कद्दू की सब्जी बनाई गई। व्रतियों के प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही परिवार के अन्य लोगों ने भोजन ग्रहण किया। 6 नवम्बर बुधवार को दिनभर उपवास रहकर सायंकाल सूर्य भगवान को पूजा करके खीर और पूरी का भोग लगाकर अपने घरों में हवन करेंगे। 7 नवम्बर वीरवार को सुबह से लेकर दिन भर अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे और सांयकालीन अस्ताचलगामी सूर्य को तालाब या नदी में अध्र्य देंगे। अर्घ्य में प्रसाद के रुप में ठेंकूवा, ईख, गुना, मौसमी फल, सीताफल, मूली, हल्दी, अदरक, सोने-चांदी, पीतल एवं बांस (छाज-सूप) में रखकर अर्घ्य देंगे।
कल व्रती करेंगे खरना
6 नवम्बर बुधवार को व्रती गंगा एवं अन्य जलाशयों में स्नान करने के बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित करेंगे। सायंकाल के समय घरों में हवन एवं पूजा-पाठ करेंगे। खरना का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से साठी-चावल दूध और गुड़ से तैयार किया जाएगा। प्रसाद को सूर्य देव को भोग लगाकर ग्रहण किया जाएगा।