नहाय खाय के साथ छठ महापर्व का आगाज कल से

नहाय खाय के साथ छठ महापर्व का आगाज कल से, 6 को होगा खरना

पवन सैनी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, हिसार, 04       नवंबर :

 पूर्वांचल जन कल्याण संगठन समिति के तत्वाधान में जिंदल पार्क, मिल गेट स्थित जिंदल सरोवर में मनाये जाने वाले चार दिवसीय छठ महापर्व की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। लोक आस्था का छठ महापर्व 5 नवम्बर को प्रात: नहाय खाय के साथ शुरु हो जाएगा। अनुष्ठान के दूसरे दिन 6 नवम्बर को खरना करेंगे। 7 नवम्बर को अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को त्रिवेणी के जल से अध्र्य दिया जाएगा। 8 नवम्बर को प्रात: उगते हुए सूर्य को अध्र्य देकर महापर्व सम्पन्न हो जाएगा। समिति के संरक्षक डॉ. राधेश्याम शुक्ल, महासचिव आचार्य मुरलीधर पाण्डेय व कोषाध्यक्ष आचार्य शिवपूजन मिश्र ने बताया कि सरोवर के चारों ओर चार गेट बनाये जाएंगे। चारों वेदों ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद व अर्थववेद के नाम पर गेट के नाम रखे जाएंगे। चारों गेटों पर चार कुण्ड स्थापित किये जाएंगे और इन कुण्डों पर चार-चार-यजमान बैठेंगे। महापर्व पर होने वाले हवन-यज्ञ में मुख्य यजमान के रुप में समाजसेवी कैप्टन प्रेम प्रकाश बिश्रोई होंगे। छठ महापर्व के दिन 7 नवम्बर को सायं 4 बजे हरियाणा की पूर्व मंत्री एवं विधायक सावित्री जिंदल मुख्यातिथि के रूप में भाग लेंगी। अध्यक्षता सूर्य भगवान भास्कर करेंगे। समिति के प्रधान विनोद साहनी ने बताया कि सवा क्विंटल सामग्री से छठी मैय्या का श्रृंगार होगा। पर्व के दिन 11 लाख ज्योतों से छठ मैय्या की आरती होगी।

छठ में नहाय-खाय का विशेष महत्व  

आचार्य शिवपूजन मिश्र ने बताया कि छठ महापर्व में नहाय-खाय का विशेष महत्व है। इस दिन व्रती अपने शरीर, वस्त्र एवं घर की शुद्धता का विशेष ध्यान रखते हैं। प्रात: से ही व्रतियों के गंगातट या सरोवर पर नहाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। सरोवरों में स्नान करने के बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित करेंगे। उसके बाद घरों में व्रतियों के लिए भोजन बनेगा। भोजन में अरवा चावल, चने की दाल एवं कद्दू की सब्जी बनाई जाएगी। व्रतियों के प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही परिवार के अन्य लोग भोजन करेंगे। 6 नवम्बर बुधवार को दिनभर उपवास रहकर सायंकाल सूर्य भगवान को पूजा करके खीर और पूरी का भोग लगाकर अपने घरों में हवन करेंगे। 7 नवम्बर वीरवार को सुबह से लेकर दिन भर अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे और सांयकालीन अस्ताचलगामी सूर्य को तालाब या नदी में अध्र्य देंगे। अध्र्य में प्रशाद के रुप में ठेंकूवा, ईख, गुना, मौसमी फल, सीताफल, मूली, हल्दी, अदरक, सोने-चांदी, पीतल एवं बांस (छाज-सूप) आदि में रखकर अध्र्य देंगे।

6 नवम्बर को व्रती करेंगे खरना

बुधवार को व्रती गंगा एवं अन्य जलाशयों में स्नान करने के बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित करेंगे। सायंकाल के समय घरों में हवन एवं पूजा-पाठ करेंगे। खरना का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से साठी-चावल दूध और गुड़ से तैयार किया जाएगा। प्रसाद को सूर्य देव को भोग लगाकर ग्रहण किया जाएगा। इसके बाद वीरवार को पूरा दिन व रात अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे।

शंख ध्वनि से शुरु होगा छठ महापर्व

समिति के महासचिव आचार्य मुरलीधर पाण्डेय व कोषाध्यक्ष आचार्य शिवपूजन मिश्र ने बताया कि 7 नवम्बर को प्रात: 6 बजे शंख ध्वनि के साथ महोत्सव का शुभारंभ किया जाएगा। प्रात: 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक घाट पूजन एवं घाट संरक्षण का कार्यक्रम चलेगा। 12 बजे से दोपहर बाद 2 बजे तक सवा क्विंटल गन्ना, फूलमाला एवं छठ माता का श्रृंगार किया जाएगा। 2 बजे से सूर्य षष्ठी महायज्ञ प्रारंभ किया जाएगा। सूर्य संहिता के विशेष मंत्रों द्वारा आचार्य शिवपूजन मिश्र, आचार्य सुरेश प्रसाद मिश्र व डॉ. बलजीत शास्त्री की अध्यक्षता में तथा डॉ. राधेश्याम शुक्ल की देखरेख में सूर्य षष्टी महायज्ञ होगा जिसमें कांशी, अयोध्या, वृंदावन, हरिद्वार से आए हुए विद्वानों द्वारा आदित्य ह्रदय स्तोत्र तथा सूर्य संहिता के विशेष मंत्रों द्वारा हवन एवं पाठ किया जाएगा। इसके लिए चारों दिशा में चार कुंड बनाए जाएंगे और एक विशेष रुप से कुंड बनाया जाएगा। सायं 2 बजे से 4 बजे तक सूर्य सहस्त्र नामों से हवन किया जाएगा। सायं 5:30 बजे से अस्ताचल सूर्य को दूध एवं त्रिवेणी जल से अध्र्य दिया जाएगा। इसके उपरांत 6 बजे सूर्य भगवान की 11 लाख ज्योतों द्वारा महाआरती की जाएगी। छठव्रतियों से प्रार्थना है कि अध्र्य के बाद छठी मैय्या के पांच गीत अवश्य गाएं तथा एक घंटे तक घाट जगाएं। कांशी के विद्वानों के अनुसार सायं 2 बजे उपरांत पूजा का विशेष समय है इसलिये 4 बजे से पूर्व सरोवर पर अवश्य पहुंच जाएं ताकि पूजा का विशेष लाभ मिल सके। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस वर्ष छठ व्रत व पूजा का दिन वीरवार को आया है। मुख्य रुप से विष्णु भगवान का दिन ही वीरवार होता है। पूजा का सामान पीला रंग का होना चाहिये।    

साक्षात देव हैं भगवान सूर्य

छठ महापर्व पर भगवान सूर्य की पूजा होती है। वे साक्षात देव हैं, जो लोगों को दिखाई देते हैं। सूर्य की पूजा आदिकाल से की जा रही है। आचार्य शिवपूजन मिश्र व आचार्य मुरलीधर पाण्डेय का कहना है कि सूर्यदेव की पूजा का उल्लेख सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरकाल से मिलता है। तभी से सूर्य पूजा की परम्परा चली आ रही है। विश्व में सूर्य की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है। आचार्य शिवपूजन मिश्र व आचार्य मुरलीधर पाण्डेय ने बताया कि ज्योतिष शस्त्र के अनुसार सूर्य सभी ग्रहों के राजा है। जिस व्यक्ति के ग्रह कमजोर हैं, वे भगवान सूर्य की पूजा करते हुए छठ व्रत करें, उनके सभी ग्रह अनुकूल हो जाएंगे।

अमेरिका में भी मनाई जाती है छठ पूजा

उग हे सुरुज देव.. .. गीत, घाटों पर चहल कदमी करती हुई भीड़ और डूबकी लगाते हुए व्रती। छठ पूजा का ये मनोरम दृश्य सात समुंद्र पार अमेरिका में भी देखा जा सकता है। छठ महापर्व की महिमा पूर्वांचल से होते हुए परदेस तक जा पहुंची है। अमेरिका की पोटोमैक नदी पिछले कई सालों से छठ पूजा की साक्षी बन रही है। परदेस में रह रहे पूर्वांचल के लोग अपने इस त्यौहार को उसी देसी उत्साह के साथ मनाते हैं। अमेरिका में बड़ी तादात में उत्तर भारतीय रहते हैं, जो इस पर्व को मनाते हैं। भारतीयों के इस उत्सव में अमेरिका वाले भी शरीक होते हैं। इसके अलावा नेपाली मूल के लोग भी इस पावन उत्सव में अपनी भागीदारी देना नहीं भूलते। अमेरिका में छठ पर्व एक सांस्कृतिक मिलन की तरह भी मनाया जाता है। छठ व्रतियों के लिए नदी किनारे टैंट लगाए जाते हैं और सजावट भी की जाती है।

हठयोग का रहस्य छिपा है छठ व्रत में

आचार्य शिवपूजन मिश्र व आचार्य मुरलीधर पाण्डेय ने बताया कि लोक आस्था का महापर्व छठ कई रहस्यों को भी समेटे हुए है। यह पर्व अध्यात्म और योग का मेल भी है। छठ का एक अर्थ हठयोग भी है। छठव्रती चार दिनों तक लगभग बिना अन्न जल ग्रहण किए रहते हैं। पूजा में काफी सावधानी बरती जाती है। हठयोग में अपने आप को कष्ट देकर ईश्वर को प्रसन्न करने की बात आती है। सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋगवेद में भी छठ महापर्व का जिक्र आता है। वैदिक काल में ऋषि भोजन से दूर रहकर सूर्य से उर्जा प्राप्त करने के लिए यह व्रत करते थे। छठ महापर्व का महात्म रामायण काल एवं महाभारत काल में भी मिलता है। कहा जाता है कि पांडवों के वनवास के समय द्रौपदी ने भी सूर्य की उपासना की थी। इसके बदले में द्रोपदी को एक अक्षय पात्र प्राप्त हुआ था। द्रौपदी के अलावा अंग राज कर्ण भी छठ महापर्व व्रत करते थे। रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम व माता सीता ने भी छठ माता का व्रत किया था।  

मार्कण्डेय  पुराण में भी आता है जिक्र

आचार्य शिवपूजन मिश्र व आचार्य मुरलीधर पाण्डेय ने बताया कि मार्कण्डेय पुराण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आपको छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृदेवी के रूप में माना जाता है जो ब्रह्मा की मानस पुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। शिशु के जन्म के छह दिनों के बाद भी इन्हीं देवी की पूजा करके बच्चे के स्वास्थ्य, सफल और दीर्घायु की प्रार्थना की जाती है। पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी मिलता है, जिनकी नवरात्रों में षष्ठी को पूजा की जाती है।

कांचही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये.. ..

हिसार में रहने वाले पूर्वांचल समाज के परिवारों के आंगन में दीपावली के बाद से ही छठ पर्व के गीत महिमा बा राऊर अपार हे छठी मईया.. .. उ जे कांचही  बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए.. .. छठी मइया आई ना दुअरिया.., कोपी-कोपी बोले ले सूरज देव.., हाजीपुर के केलवा महंग भइले.., उगी-उगी सूरज देव.., डारी-डारी चहके सुगनवा.., की स्वर लहरियां सुनाई दे रही हैं।
2 फोटो कैप्शन : पूर्वांचल समाज के लोग जिंदल सरोवर पर बैठक करते हुए। सामान से सजी स्टॉल।