किसान मजदूर आयोग की कॉन्फ्रेंस आयोजित

किसान मजदूर आयोग की कॉन्फ्रेंस आयोजित, राजनीतिक दलों से कृषि घोषणापत्र मांग

कोरल ‘पुरनूर’, डेमोक्रेटिक फ्रंट, पंचकुला – 16     सितंबर :

हरियाणा के कृषि परिदृश्य के एजेंडा को प्रदेश के राजनीतिक पटल पर रखने हेतु किसान मजदूर आयोग, नेशन फॉर फार्मर्स और आल इंडिया बैंक आफिसर्स को-फैडरेशन के बैनर तले किसान-खेत मजदूर संगठनों की कांफ्रेंस किसान भवन, चंडीगढ़ मे आयोजित की गई। शीघ्र होने जा रहे हरियाणा विधानसभा चुनाव के दृष्टिगत प्रदेश के राजनीतिक दलों व जनता के समक्ष हरियाणा के कृषि क्षेत्र से जुड़े महत्वपूर्ण विषय पर विमर्श करने हेतु आयोजित की गई इस कांफ्रेंस में विभिन्न किसान संगठनों, शोधकर्ताओं, ट्रेड यूनियन, कृषि विशेषज्ञ एवं अन्य संगठन के वक्ताओं ने अपने सुझाव रखे। इस कार्यक्रम में पी साईं नाथ, देवेन्द्र शर्मा, दिनेश अब्रोल, हन्नान मोल्ला, जगमोहन सिंह, इंद्रजीत सिंह, बलजीत भ्यान, धर्म सिंह,राजेन्द्र चौधरी, जगमति सांगवान, कृति हन्ना मोल्ला, करनैल सिंह, निखिल डे, दिनेश एब्रॉल, इंद्रजीत सिंह, बलजीत सिंह, जगमति सांगवान, जे एस गिल, बलविंदर टिवाना, गुरबक्श मोंगा, प्रियव्रत, इत्यादि ने अपने विचार रखे।

वक्ताओं ने कहा कि हरियाणा एक कृषि- प्रधान प्रदेश है और आधे से ज्यादा जनसंख्या की आजीविका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर कृषि पर निर्भर है। यह प्रदेश विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है, यहाँ निरंतर शहरीकरण, अत्यधिक दोहन से घटते भू-जल स्तर, सीमित संसाधनों पर बढ़ते जनसंख्या के बोझ और जंगल के 3.6 प्रतिशत भूमि तक सीमत रह जाने के कारण खेती को अत्यधिक नुकसान पहुँच रहा है। मौसम में भयानक परिवर्तन के कारण गर्मियों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है और असंतुलित व बे-मौसमी बारिश कृषि व लोगों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं । प्रदेश के सभी 22 जिले जलवायु परिवर्तन के मामले में अत्यधिक संवेदनशील हैं। 22 में से 16 जिले 100 प्रतिशत से जायदा भूजल का दोहन कर रहे हैं। भारतीय मरुस्थलियाकरण एवं भूमि क्षर्ण एटलस 2021 बताता है की प्रदेश में भूमि का 8.24 प्रतिशत हिस्सा खेती लायक नहीं बचा।
प्रदेश में लगातार गहराता कृषि संकट यहां रहने वाली आबादी के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। खेती लगातार घटे का सौदा बनती जा रही है और किसानों पर कर्जे का बोझ बढ़ता जा रहा है। 70 के दशक के दौरान 34.9 प्रतिशत खेती से जुड़े परिवार कर्जे में थे, जो की 80 के दशक में घट कर 11.61 प्रतिशत हो गया था और 2019 के आंकड़ो में यह 47.5 प्रतिशत हो गया। 2019 के राष्‍ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के आंकड़ों के अनुसार 39.6 प्रतिशत किसानी परिवार कर्जे में डूबे हुए हैं और इस में साफ दिखता है कि 2000 के बाद से लगातार बैंकों से लिए गए कर्जे का हिस्सा घटा है और निजी साहुकारों से लिया गया कर्जा बढ़ रहा है।

2022 के एक सर्वेक्षण में भी यह पाया गया कि औसतन प्रत्येक किसान लगभग 6 लाख 4 हज़ार के कर्जे में है। इस कर्जे में भी बैंकों से लिए गए कर्जे का हिस्सा 66.71 प्रतिशत है और निजी साहुकारों से लिये गये कर्जे का हिस्सा 33.29 प्रतिशत है जिसमे ब्याज की दर 25 से 36 प्रतिशत तक है। कृषि के उत्पादन और उत्पादकता की दर की अस्थिरता के चलते लगातार कृषि से होने वाली आमदनी में कमी आई है। नहरी पानी से सींचित ज़मीन का रकबा घटना, भूजल पर निर्भरता बढ़ना, असंत्युलित रासायनिक खाद व कीटनाशक इत्यादि के अंधाधुंध इस्तेमाल में बढ़ोतरी, मिट्टी की उर्वरकता कम होने से लगातार उत्पादन की लागत बढ़ना आदि किसान की आय को घटा रहा है जो कि खतरे की घंटी है। इस लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हरियाणा में भी किसानी से जुड़े लोग आत्महत्या कर रहे हैं। 2022 में 266 व 2021 में 213 आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं।

कृषि के आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए सरकार द्वारा किये जाने वाले खर्च में लगातार कमी आई है। कृषि के ढांचे को विकशित करने के लिए जो खर्च सरकार को करना था उसके अभाव में सारा बोझ जाहिर है किसान के सर पर आ पड़ा है। सार्वजनिक क्षेत्र से कृषि में निवेश घटा कर, किसानों को कार्पोरेट पर निर्भर बनाया जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही बजट में कृषि के लिए आवंटन में कटौती और निर्धारित हिस्से से भी कम खर्च कर रही हैं।

किसान-मज़दूर आयोग और नेशन फ़ॉर फ़ार्मर्स द्वारा मांग की गई कि यह बहुत ज़रूरी है कि हरियाणा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों और बहसों में कृषि क्षेत्र की महत्वपूर्ण मांगें शामिल की जाएं।

किसान-मज़दूर आयोग और नेशन फ़ॉर फ़ार्मर्स का मानना है कि किसानों और ग्रामीण मजदूरों के के हितों को ध्यान में रखते हुए सभी राजनीतिक दलों को निम्नलिखित बातों के लिए प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए।

1) किसान-मजदूर आयोग की स्थापना सरकार द्वार की जाए। यह आयोग व्यवस्था द्वारा स्थापित निकाय की तरह काम करेगा, जिसमें सरकारी अधिकारियों के अलावा कृषि क्षेत्र के विशिष्ट जानकार शामिल होंगे। नई सरकार को कृषि संकट और उससे जुड़े मुद्दों पर हरियाणा विधानसभा में एक विशेष सत्र बुलाना होगा।

2) अक्टूबर में बनने वाली नई सरकार को हरियाणा में कपास, धान, गेहूं, दलहन, बाजरा, मक्का और गन्ने जैसी सभी फ़सलों के लिए मौजूदा और अपर्याप्त न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता दिखानी होगी। धान के लिए छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की तर्ज पर 3100 रू एमएसपी दिया जाए। तमिलनाडु और केरल राज्य लंबे समय से केंद्र द्वारा तय एमएसपी पर बोनस बढ़ाकर देते रहे हैं। सी2+50 प्रतिशत के फार्मूला के तहत सभी फसलों की गारंटीशुदा खरीद सुनिश्चित करनी होगी। सरकार को तेज़ी से हस्तक्षेप करते हुए लागत में होती बेतहाशा वृद्धि को नियंत्रित करना होगा। पिछले काफी समय से सभी फ़सलों की उत्पादन लागत में बढ़ोतरी होती रही है।

3) नई सरकार को भूमि अधिकार से जुड़े मुद्दों को तत्काल अपने संज्ञान लाना होगा। हरियाणा की नई सरकार को अंधाधुन्द भूमि अधिग्रहण पर रोक लगनी होगी।
4) नई सरकार को काश्तकारों/बटाईदार किसानों के हितों की पहचान करनी होगी, उन्हें मान्यता देनी होगी और उनके अधिकारों की रक्षा करनी होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि कृषि से संबंधित सभी सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचे। किसान मज़दूर आयोग और नेशन फ़ॉर फ़ार्मर्स का मानना है कि ‘किसान’ होने की परिभाषा में, ज़मीन का मालिकाना हक़ रखने वाले किसान, भूमिहीन किसान (खेतिहर मज़दूर), बटाईदार किसान, महिला किसान, दलित किसान और पशुपालक किसान सभी शामिल हैं।
5) प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना में आमूलचूल परिवर्तन लाना होगा। अन्य कई राज्य सरकारों द्वारा पहले से ही स्वतंत्र योजना शुरू की गई है या मूल योजना में बदलाव करते हुए उसे नए रूप में संचालित कर रही है। कृषि क्षेत्र में बीमा योजना की डोर सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों के हाथों में होनी चाहिए, न कि कॉर्पोरेट बीमा कंपनियों के हाथों में, जिन्होंने इस योजना के हज़ारों करोड़ रुपए हड़पे हैं – और किसानों को बहुत मामूली लाभ मिला है। पूरे देश में किसानों के लाखों दावे नियमित तौर पर कॉर्पोरेट बीमा कंपनियों द्वारा ख़ारिज किए जा रहे हैं।
6) नई सरकार को हरियाणा में क़र्ज़ माफ़ी की प्रक्रिया से जुड़ी ख़ामियों को दूर करना होगा।
7) हरियाणा कृषि पर जलवायु परिवर्तन का असर काफ़ी तेज़ी से पड़ने लगा है। नई सरकार को किसानों और खेत मज़दूरों का स्वास्थ्य व सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जल्दी क़दम उठाने होंगे। उदाहरण के लिए, हर खेत में विश्राम करने के लिए आश्रयों के निर्माण की व्यवस्था करनी होगी। पिछली गर्मियों के मौसम में, खेतिहर मज़दूर 50 डिग्री सेल्सियस व उससे भी ज़्यादा तापमान में हाड़तोड़ मेहनत करने को मजबूर थे। सरकार को भंडारण, पशु बचाव और लोगों के आश्रय की साझा व्यवस्था स्थापित करने में मदद करनी होगी।
8) लगातार घटते भूजल की समस्याय के समाधान के लिए भूजल संचय की व्यवस्था करनी होगी। मेरा पानी मेरी विरासत योजना को सभी किसानो के लिए लागू किया जाए। ड्रिप सिंचाई योजना को पूर्ण सब्सिडी दि जाए।
9) असंतुलित रसायनिकी खेती से दूषित होती जलवायु को बचने के लिए मिश्रित संतुलित खेती विशेषकर दलहनी खेती को साथ में बढ़ावा दिया जाए। सभी ब्लोक स्तर पर कृषि विज्ञानं केन्द्रों का होना सुनिश्चित किया जाए तथा ग्राम सत्र पर किसानो को खेती से जुडी सलहा के लिए कृषि विज्ञानिक न्युक्त किये जाए।
10) मनरेगा को प्रदेश में मजबूत किया जाए साथ ही समय पर मजदूरी की अदायगी सुनिश्चित की जाए व 200 दिन का काम एवं 800 रुपये प्रतिदिन मजदूरी दी जाए ।
11) मनरेगा के अलावा भी भूमिहीन मज़दूरों को आजीविका के अन्य स्रोतों और सहायता की सख़्त ज़रूरत है। विशेष रूप से भूमिहीन महिला मज़दूरों को ज़मीन के छोटे टुकड़ों का अधिकार मिलना चाहिए, जिस पर वे पशुपालन, मुर्गी पालन कर सकें और अपना पेट पालने के लिए साग-सब्ज़ियां उगा सकें। सामुदायिक ज़मीनों और संसाधनों में उन्हें प्राथमिकता दी जाए। जल स्रोतों, सामुदायिक कुओं, ट्यूबवेल और ऐसे तमाम अन्य सार्वजनिक संसाधनों पर भूमिहीन किसानों को समान और संपूर्ण अधिकार मिलने चाहिए। उपरोक्त सभी उपायों में दलितों व पीछाड़ो का ख़ास ध्यान रखा जाना चाहिए।
12) छोटे व सीमांत किसानों और खेतिहर मज़दूरों के लिए, नई सरकार को तत्काल एक प्रभावी पेंशन योजना शुरू करनी होगी। बिखरती नज़र आती सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी नई जान फूंकने और उसे मज़बूत बनाने की ज़रूरत है।

13) नए स्थापित किसान- मजदूर आयोग को कृषि क्षेत्र में बिजली आपूर्ति की समस्या और सिंचाई की निराशाजनक स्थिति को तुरंत संज्ञान में लेना होगा और उसका समाधान करना होगा। हरियाणा में इन दोनों क्षेत्रों में जारी लूट को ख़त्म करने से इसकी शुरुआत होनी चाहिए।

14) सहकारी एवं सामूहिक खेती के लिए नई सरकार को निति निर्धारण करना होगा। छोटे किसानो को साझा खेती शुरू करने की लिए सरकारी मदद मिले।

15) डिजिटल कारण के नाम पर किसानों पर बढाती निगरानी को रोका जाए तथा किसानों व खेती से जुड़े डाटा पर किसानो का अधिकार सुनिश्चित किया जाए। जनता को रहत पहुचने वाली सरकारी योजनाओं से लोगो को बहार रखना बंद किया जाए। सरकार द्वारा डाटा संचालन के लिए जरुरी तकनिकी उपकरण व सहयता किसानो उपलब्ध कराये जाए व समाधान केंद्र खोले जाए।

16) उपरोक्त उपायों का लाभ ग्रामीण इलाक़ों को होगा, लेकिन इनसे राज्य में पलायन के संकट और शहरों पर बढ़ते दबाव को भी कम किया जा सकेगा। सरकारी निवेश की इस प्रकृति का पूरे हरियाणा में कई गुना असर दिखेगा। ये उपाय
रोज़गार पैदा करेंगे, प्राकृतिक संसाधनों में नई जान फूंक देंगे, ख़ुशहाली बढ़ाएंगे और कृषि उत्पादकता में वृद्धि करेंगे।