गणेश जी की मूर्ति विसर्जन की परंपरा शास्त्र विरुद्ध :  पंडित रोशन शास्त्री

डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़,  12 सितंबर:

इन दिनों देश भर में गणेशोत्सव की धूम है। घरों में गणेश जी की मूर्ति की विधिवत स्थापना करने के बाद उनका विसर्जन कर दिया जाता है। इस उत्सव के अंतिम दिन, जो इस बार 17 सितंबर को पड़ रहा है, को तो बड़े पैमाने पर विसर्जन कार्यक्रम होगा। गढ़वाल सभा, चण्डीगढ़ के संगठन सचिव पंडित रोशन शास्त्री ने उत्तर भारत में, खासकर उत्तराखण्ड में इस मूर्ति विसर्जन की परंपरा को शास्त्र विरुद्ध बताया है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार उत्तर भारत में स्थित उत्तराखंड में गणेश जी का निवास स्थान है। उन्होंने यहां जारी एक प्रेस ब्यान में कहा है कि अपने ईष्ट देव का कभी भी विसर्जन नहीं किया जाता, बल्कि उनका तो स्वागत किया जाता है।

उन्होंने बताया कि पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान गणेश जी ने कुछ दिनों के लिए अपने भाई कार्तिकेय के यहां दक्षिण में रहने के बाद अपने धाम के लिए विदाई ली थी। इस दौरान भगवान कार्तिकेय और वहां के सभी लोग भावुक हुए और गणेश जी को अगले साल फिर से आने का न्योता दिया। तभी से उधर गणेश विसर्जन का पर्व मनाया जाने लगा। गणेश जी जल तत्व के अधिपति हैं, इसलिए अनंत चतुर्दशी को उन्हें जल में विसर्जित किया जाता है और यह त्योहार विशेष कर दक्षिण भारतीयों, उनमें भी खासकर महाराष्ट्र का है और वहां पर इस त्यौहार को बड़े उत्सव के साथ मनाया जाता है।

शास्त्री जी ने उत्तर भारतीयों से अपील की है कि गणेश जी की पूजा तो ठीक है, परंतु मूर्ति विसर्जन न करें। उन्होंने कहा कि कहीं देखा-देखी में हम लोग एक दिन अपनी संस्कृति का ही विसर्जन ना कर दें।