हकृवि द्वारा गुलाबी सुंडी की रोकथाम को लेकर किए जा रहे हर संभव प्रयास: प्रो.बी.आर. काम्बोज
पवन सैनी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, हिसार, 23 जुलाई :
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में गुलाबी सुंडी, सफेद मक्खी, उखेड़ा तथा जड़ गलन आदि अनेक कीटों और रोगों की समस्या के निवारण हेतु एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में कृषि विभाग के अधिकारियों एवं फील्ड स्टाफ को नवीन एवं स्टीक वैज्ञानिक तरीकों से अवगत करवाया गया। कार्यशाला में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज मुख्यातिथि रहे।
प्रो. काम्बोज ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए बताया कि आने वाले दो महीने कपास की फसल की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि गुलाबी सुंडी के प्रकोप को लेकर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारी सजगता से अपना कार्य कर रहे हैं। इसी कड़ी में विश्वविद्यालय की टीम द्वारा जिले के 40 से अधिक गांवों में सर्वे किया जा चुका है।
किसानों को विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा की जाने वाली सिफारिशों के अनुसार कपास की फसल में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों को प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने बताया कि कपास फसल में आने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारियों की रोकथाम को लेकर पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के कृषि विश्वविद्यालय आपसी तालमेल के साथ सजगता से अपना कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कपास उत्पादन को बढ़ाने और कीट एवं रोग मुक्त करने के लिए विश्वविद्यालय, प्रदेश का कृषि विभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केन्द्रीय कपास शोध संस्थान, (सीआईसीआर, सिरसा) और कपास से जुड़ी कंपनियों को संयुक्त रूप से एकजुट होकर कार्य करना होगा।
कपास अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. करमल सिंह मलिक ने कार्यशाला में आए हुए सभी अधिकारियों का स्वागत किया और कपास फसल में सस्य क्रियाओं की विस्तार से जानकारी दी। संयुक्त निदेशक कृषि (कपास) डॉ. आरपी सिहाग ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा चलाई जा रही कपास से जुड़ी परियोजनाओं के बारे में बताया। कार्यक्रम में अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डॉ. जीएस दहिया, केन्द्रीय कपास शोध संस्थान, सिरसा से प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. एसके वर्मा, डॉ. अनिल कुमार सैनी तथा डॉ. अनिल ने कपास से जुड़े रोगों एवं उनके नियंत्रण के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. शुभम लाम्बा ने किया। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कपास फसल के लिए कीट संबंधी महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं।
कीट प्रबंधन संबंधी सलाह:
नरमा फसल में गुलाबी सुंडी की निगरानी हेतु दो फेरोमॉन ट्रेप प्रति एकड़ लगाएं या साप्ताहिक अंतराल पर कम से कम 150-200 फूलों का निरीक्षण करें। टिण्डे बनने की अवस्था में 20 टिण्डे प्रति एकड़ के हिसाब से तोडक़र, उन्हें फाडक़र गुलाबी सुण्डी हेतु निरीक्षण करें। 12-15 गुलाबी सुण्डी प्रौढ प्रति ट्रेप तीन रातों में या पांच से दस प्रतिशत फूल या टिण्डा ग्रसित मिलने पर कीटनाशकों को प्रयोग करें। कीटनाशकों में प्रोफेनोफॉस 50 ईसी की 3 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी या क्यूनालफॉस 25 ईसी की 3 से 4 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें। सफेद मक्खी एवं हरा तेला का प्रकोप होने पर फलोनिकामिड 50 डब्ल्यूजी 60 ग्राम या एफिडोपायरोप्रेन 50 जी/एल की 400 मिली मात्रा प्रति एकड़ का छिडक़ाव करें।
बीमारी संबंधी परामर्श:
जड़ गलन के प्रबंधन के लिए कार्बन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी को पौधों की जड़ों में डालें। टिण्डा गलन के प्रबंधन के लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से छिडक़ाव करें।
महत्वपूर्ण सस्य क्रियाएं:
बरसात के बाद पानी की निकासी का प्रबंध करें। पहले खाद नहीं डाली है तो अब निराई गुडाई के साथ एक बैग प्रति एकड़ की बीजाई करें। अगर डीएपी पहले डाल चुके हैं तो आधा कट्टा यूरिया प्रति एकड़ डालें।
इस अवसर पर मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डॉ. अतुल ढींगड़ा, डॉ. शिवराज पुंडीर, डॉ. संदीप, डॉ. सोमवीर निम्बल, डॉ. मिनाक्षी जाटाण, डॉ. शिवानी मन्धानिया, डॉ. दीपक कम्बोज उपस्थित रहे।