स्वर्गीय सुरजीत पातर जी को संगीतमय श्रद्धांजलि
विक्रमजीत साहनी ने महान कवि स्वर्गीय सुरजीत पातर जी को भावपूर्ण संगीतमय श्रद्धांजलि दी
डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 21 जून :
डॉ. विक्रमजीत सिंह साहनी ने स्वर्गीय पद्मश्री सुरजीत पातर जी की स्थायी विरासत को उनकी कविता कुझ केहा तां के संगीतमय प्रस्तुतीकरण के वर्ल्ड प्रीमियर के माध्यम से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनका 11 मई, 2024 को निधन हो गया।
पद्मश्री विक्रमजीत सिंह साहनी, राज्य सभा के सांसद; सन फाउंडेशन के चेयरमैन; वर्ल्ड पंजाबी आर्गेनाईजेशन के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट व भावुक सूफी गायक हैं जिन्होंने डॉ. सुरजीत पातर जी की कविता के सार को संगीत के माध्यम से खूबसूरती से प्रस्तुत किया।
‘कुझ केहा तां हनेरा जरेगा किवे, चुप रहां ता शमदान की केहनगे!’ (अगर मैं बोलूं और एक शब्द बोलूं, तो अंधेरा कैसे बर्दाश्त करेगा? अगर मैं चुप रहूं तो रोशनी कैसे माफ करेगी?) ये भावपूर्ण पंक्तियां गीत की कथा का मूल आधार हैं। ये शब्द किसी की भावनाओं के साथ प्रतिध्वनित होते हैं, जो किसी की सच्चाई को व्यक्त करने और उसके बाद होने वाले परिणामों के डर के बीच की दुविधा को तलाशते हैं। ये शब्द श्रोताओं को डर और साहस, मौन और भाषण के बीच अपनी खुद की लड़ाई पर विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं।
जैसे-जैसे यह गीत आगे बढ़ता है, यह व्यक्तिगत दृष्टिकोण से व्यापक, मैक्रो-लेवल के दृष्टिकोण में परिवर्तित होता है। ‘कि एह इंसाफ एह हाऊमे दे पुत्त करनगे, कि एह खामोश पत्थर दे बट करनगे, जो सलीबा ते तांगे ने लठने नहीं, राज बदलनगे सूरज चरन लेहनगे!’ (इन अहंकारी लोगों से क्या न्याय की उम्मीद करें, इन मूक मूर्तियों से क्या उम्मीद करें। जो लोग सूली पर चढ़े हैं, उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी, शासन बदल जाएगा और सूरज अस्त होगा और उदय होगा।) सामाजिक उदासीनता, निराशा और स्थायी आशा को उजागर करता है जो उत्पीड़न के खिलाफ मानव संघर्ष को परिभाषित करता है। यह उन लोगों के दिल के दर्द को दर्शाता है जो अपने संघर्ष के फल को देखे बिना पीड़ित और बलिदान करते हैं, यह रेखांकित करते हुए कि सच्चा उद्धार अक्सर अमूर्त होता है।
बदलती हुई व्यवस्थाओं और सूरज के उगने और डूबने के निरंतर चक्र की कल्पना एक शक्तिशाली अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि कठिनाइयों के बावजूद जीवन चलता रहता है।
विक्रम साहनी ने इस मार्मिक श्रद्धांजलि को श्रद्धा और उद्देश्य की गहरी भावना से भर दिया है। पियानो और वायलिन की उत्तेजक रचनाओं की पृष्ठभूमि में, यह एक दृश्य कृति है।
यह श्रद्धांजलि कला और साहित्य की स्थायी शक्ति के प्रमाण के रूप में सामने आती है, जो पातर जी के न्यायपूर्ण समाज के लिए करुणा के संदेश को प्रेरित, शिक्षित और एकजुट करती है, जहाँ व्यक्ति के कार्य व्यापक भलाई के लिए प्रतिध्वनित होते हैं।