पंचांग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है। माना जाता है कि भगवान श्रीराम भी पंचांग का श्रवण करते थे। शास्त्र कहते हैं कि तिथि के पठन और श्रवण से मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है। तिथि का क्या महत्व है और किस तिथि में कौन से कार्य करान चाहिए या नहीं यह जानने से लाभ मिलता ह। पंचांग मुख्यतः पाँच भागों से बना है। ये पांच भाग हैं : तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण। यहां दैनिक पंचांग में आपको शुभ समय, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदू माह और पहलू आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
डेमोक्रेटिक फ्रंट, आध्यात्मिक डेस्क – पंचांग, 13 मई 2024
नोटः आज श्री रामानुजाचार्य जयंती वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि यानी 12 मई 2024 को मनाई जाने वाली है। श्री रामानुजाचार्य जयंती दक्षिण भारत में अत्यंत भक्तिभाव से मनाई जाती है।
श्री रामानुजाचार्य आचार्य आलवन्दार यामुनाचार्य महाराज के प्रमुख शिष्य थे। गुरु-शिष्य के समर्पण, सम्मान और त्याग की एक कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार जब गुरु श्रीयामुनाचार्य ब्रह्मलीन होने वाले थे उस वक्त उन्होंने अपने शिष्य के द्वारा श्रीरामानुजाचार्य को अपने पास बुलवाया, लेकिन दुर्भाग्य से उनके पहुंचने से पहले ही श्रीयामुनाचार्यजी का देवलोकगमन हो गया। श्री रामानुजाचार्य ने अपने गुरु की देह को सादर नमन किया और देखा की उनकी तीन अंगुलियां मुड़ी हुई थी। रामानुजाचार्य समझ गए कि उनके गुरु की अंतिम इच्छा ब्रह्मसूत्र, विष्णुसहस्त्रनाम, और दिव्य प्रबंधनम की टीका करवाने की है। श्रीरामानुजाचार्य ने अपने गुरु की अंतिम इच्छा को बाद में पूर्ण किया। श्री रामानुजाचार्य ने वेदांत दर्शन पर आधारित नया दर्शन विशिष्ट द्वैत वेदांत का सृजन किया। इसके साथ ही उन्होंने वेदात के अलावा सातवीं से लेकर दसवीं शताब्दी के रहस्यवादी और भक्तिमार्गी अलवार संतों से भक्ति दर्शन को और दक्षिण के पंचरात्र परम्परा को अपने दर्शन का आधार बनाया। वैष्णव धर्म के प्रचार को उन्होंने देश के अलावा विदेशों तक पहुंचाया। सन 1137 में 120 वर्ष की आयु में श्री रामानुजाचार्य ब्रह्मलीन हुए।
श्रीरामानुजाचार्य ने अपने जीवनकाल में सनातन संस्कृति से संबंधित नौ पुस्तकें लिखी थी। इन पुस्तकों को नवरत्न कहा जाता है। श्रीभाष्य वैकुंठ गद्यम, वेदांत सार, वेदार्थ संग्रह, श्रीरंग गद्यम, गीता भाष्य, निथ्य ग्रंथम, वेदांत दीप, उनकी प्रमुख रचनाएं है।
विक्रमी संवत्ः 2081,
शक संवत्ः 1946,
मासः वैशाख
पक्षः शुक्ल,
तिथिः षष्ठी रात्रि काल 02.51 तक है,
वारः सोमवार।
नोटः आज पूर्व दिशा की यात्रा न करें। अति आवश्यक होने पर सोमवार को दर्पण देखकर, दही,शंख, मोती, चावल, दूध का दान देकर यात्रा करें।
नक्षत्रः पुनर्वसु प्रातः काल 11.24 तक हैं,
योगः शूल प्रातः काल 07.41 तक,
करणः कौलव,
सूर्य राशिः मेष, चन्द्र राशिः कर्क,
राहु कालः प्रातः 7.30 से प्रातः 9.00 बजे तक,
सूर्योदयः 05.49, सूर्यास्तः 07.00 बजे।