Saturday, December 21

कोरल ‘पुरनूर’, डेमोक्रेटिक फ्रंट, पंचकुला – 04 मार्च    :

दयानन्द सरस्वती की जन्म जयन्ती के उपलक्ष्य में एक वर्ष से चल रहे सांवत्सरिक  आर्षविद्याप्रभास  के क्रम में संस्कृत विभाग पंजाब विश्वविद्यालय के द्वारा दयानंद चिंतन में मनुर्भव विषय को लेकर के एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें सारस्वत अतिथि के रूप में प्रोफेसर राम सिंह चौहान जयपुर विश्वविद्यालय तथा मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर बलवीर आचार्य महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक उपस्थित रहे। विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर  अलंकार जी ने पुष्पगुच्छ से आए हुए अतिथि महानुभावों का स्वागत किया ,तत्पश्चात् सारस्वत अतिथि प्रोफेसर चौहान ने कहा कि दयानंद सरस्वती प्रमुख शिक्षाविद् ,समाज सुधारक एवं उन्होंने सत्य सनातन वैदिक धर्म की विशुद्ध स्थापना की । उन्होंने अपने वक्तव्य में दयानंद सरस्वती के प्रमुख सिद्धांत जैसे त्रैतवाद, एक ईश्वरवाद, अपौरुषेय , कर्म फल विषयक ,पुनर्जन्म तथा मोक्ष विषयक विशेष सिद्धांतों को संक्षिप्त रूप  में प्रस्तुत किया। इसी क्रम में कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रोफेसर आचार्य  ने आर्ष शब्द की व्याख्या करते हुए योग,ध्यान, शिवसंकल्पसूक्त, सत्यार्थ प्रकाश इत्यादि विषय पर प्रकाश डाला। इस  संगोष्ठी में विभाग के शोध छात्रों ने शोध पत्र प्रस्तुत किए जिनमें संदीप कुमार, अंशुल चौधरी, अपूर्व, शालिनी, रितु  इत्यादि रहे । इस कार्यक्रम का कुशल संचालन विभाग के अध्यापक विजय भारद्वाज जी ने  किया। कार्यक्रम के अंत में प्रो वी. के. अलंकार ने सभी का धन्यवाद देते हुए गायत्री मंत्र का  महत्व तथा ईश्वर की उपासना और योग से व्यक्ति की चेतना जागृत होती है तभी व्यक्ति मनुष्य बनता है । इस  कार्यक्रम में कालिदास प्रोफेसर अशोक  जी ने भी अपने विचार रखें और होशियारपुर से आयी हुई प्रोफेसर ऋतुबाला ने भी दयानन्द  सरस्वती को लेकर  अपने विचारों को प्रकट किया इस अवसर पर विभाग के सभी अध्यापक शोध छात्र तथा  हिन्दी विभाग के भी  छात्र उपस्थित रहे।