सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चण्डीगढ़- 29 दिसम्बर :
हिमालय पर्वत शृंखलाओं की शिवालिक पहाडि़यों में समुद्रतल से लगभग 8000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, उत्तरी भारत का सुप्रसिद्ध सिद्धपीठ मां भंगायनी देवी का मंदिर। यह प्राचीन मंदिर सिरमौर जिला के हरिपुरधार में शिमला की सीमा पर अवस्थित है। सिरमौर की देवी के नाम से विख्यात यह मंदिर विगत कई दशकों से लाखों श्रद्धालुओं की असीम आस्था व श्रद्धा का केंद्र बिंदु बना हुआ है।
यहां पूरा वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है, वहीं विशेषकर नवरात्रों के पावन पर्व, संक्रांति, अमावस्या, पूर्णमासी के अतिरिक्त मास के ज्येष्ठ मंगलवार, शनिवार और रविवार को असंख्य लोग अपनी मनौती पूर्ण होने पर मां के दरबार में पहुंचते है। इस दिव्य शक्ति मां भंगायणी को इन्साफ की देवी भी माना जाता है। कोर्ट-कचहरी में न्याय न मिलने पर पीडि़त व्यक्ति इस माता के मंदिर में आकर इन्साफ की गुहार करते है और लोगों का विश्वास है कि मंदिर में उन्हें निश्चित रूप से न्याय मिल जाएगा।
मंदिर के पुरोहित पंडित हरिंदर भारद्वाज ने जानकारी देते हुए बताया कि जनश्रुति के अनुसार इस सुप्रसिद्ध मंदिर का पौराणिक इतिहास इस क्षेत्र के आराध्य देव शिरगुल महाराज से जुड़ा हुआ है। शिरगुल देव की वीरगाथा के अनुसार जब वह कालांतर में सैकड़ों हाटियों के दल के साथ दिल्ली शहर गए थे, तो उनकी दिव्य शक्ति की लीला के प्रदर्शन से दिल्लीवासी स्तब्ध रह गए थे। जब तत्कालीन तुर्की शासक को शिरगुल महादेव की आलौकिक शक्ति का पता चला, तो उन्होंने शिरगुल महादेव को गाय के कच्चे चमड़े की बेडि़यों में बांधकर कारावास में डाल दिया था। चमड़े के स्पर्श से शिरगुल देव की शक्ति क्षीण हो गई थी। ऐसे में कारावास से मुक्ति दिलाने हेतु सहायतार्थ आए बागड़ देश के राजा गोगापीर ने तुर्की शासक के कारावास में सफाई का कार्य करने वाली माता भंगायणी की मदद से शिरगुल महादेव को कारावास से मुक्त करवाया गया था। तब शिरगुल महादेव व राजा गोगापीर माता भंगायणी को अपनी धर्म बहन बनाकर अपने साथ ले आए तथा हरिपुरधार में एक टीले पर उन्हें स्थान देकर सर्वशक्तिमान होने का वरदान दिया। तभी से यह मंदिर उत्तरी भारत में सिद्धपीठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल पर पहुंचकर श्रद्धालुगण जहां एक और मां भंगायणी की असीम कृपा दृष्टि व आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, तो वहीं यहां के प्राकृतिक सौंदर्य एवं चूड़धार की हिमाच्छादित चोटियों को निहारने का सुअवसर भी प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त मंदिर के उत्तर व पूर्व दिशा की और हिमालय पर्वत की बर्फ की सफेद चादर ओढ़े ऊंची चोटियां मन को ठंडक का एहसास दिलाती हैं, जिससे लगता है कि प्रकृति ने इस स्थल पर सौंदर्य का अनमोल खजाना बिखेर कर स्वर्ग बनाया है। भंगायनी माता का यह मंदिर जहां क्षेत्रवासियों की आस्था का केंद्र है, वहीं यहां का शांत वातावरण, आसपास का अनुपम अलौकिक व मनमोहक दृश्य यहां आने वाले श्रद्धालुओं को तनावपूर्ण जिंदगी से दूर हट कर शांति प्रदान करता है।
यहां पहुंचने के लिए चारों ओर से मार्ग हैं। नाहन से हरिपुरधार के लिए नाहन-रेणुका-संगड़ाह तथा पौंटा साहिब-रेणुका-संगडाह की ओर से पक्की सड़कें हैं वहीं शिमला-चौपाल-कुपवी मार्ग से भी हरिपुरधार तक पहुंचा जा सकता है। चंडीगढ़ की ओर से आने वाले श्रद्धालु सोलन राजगढ़ नौहराधार मार्ग से इस मंदिर तक पहुंच कर माता के आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।