Sunday, December 22

सगा-संबंधी नहीं बचा सकता कर्मों के फल से, इसलिए अच्छे कर्म करें : स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी

सुशील पण्डित, डेमोक्रेटिक फ्रंट, यमुनानगर – दिसम्बर  :

श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद गिरि जी महाराज ने कहा कि श्रद्धा वह चमत्कारिक शक्ति है जो भक्त को पाषाण में भी प्रभु के दिव्य रुप का दर्शन कराती है। अगर दिल में सच्ची श्रद्धा है तो कठिन से कठिन कार्य भी सहज व सरलता से ही हो जाते हैं। मन में ही स्वर्ग होता है और मन में ही नरक। व्यक्ति खुद ही घर-परिवार को स्वर्ग बनाता है और खुद ही नरक। व्यक्ति के स्वभाव को बदलना बड़ा कठिन है। मनुष्य की भावना पर सब कुछ निर्भर रहता है। जिस प्रकार कुरूक्षेत्र की धरती पर कौरवों और पांडवों के दरमियान युद्द हुआ था। उसी प्रकार मनुष्य के मन में हर समय इच्छाओं तथा तृष्णाओं का युद्द हमेशा चलता रहता है। इस जगत में कोई भी सगा-संबंधी जीव को।उसके किए गए कर्मों के फल से बचा नहीं सकते।

स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज ने ये विचार रोज एनक्लेव स्थित श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर में श्री कल्याण कमल सत्संग समिति की ओर से आयोजित दिव्य श्री राम कथा एवं आध्यात्मिक प्रवचन कार्यक्रम के दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए व्यक्त किए। महाराज जी ने कहा कि मनुष्य जैसे कर्म करेगा उसका वैसा ही फल मिलेगा। अर्थात जैसे बीज बोओगे वैसा फल पाओगे। मनुष्य की हर सोच उसके जीवन के खेत में बोया गया एक बीज ही है। यदि मनुष्य अच्छी सोच के बीज बोएगा तो अच्छा फल मिलेगा। अगर बुरी सोच के बीच बोएगा तो बबूल ही मिलेगा। भविष्य को स्वर्णमयी बनाने के लिए उन बीजों का ध्यान देना होगा जो आज बो रहे हैं। प्रेम के बीज बोएंगे तो प्रेम के ही फल अंकुरित होकर आएंगे। क्रोध और गाली-गलौच के बीच बोएंगे तो खुद के लिए विषैले तथा व्यंग भरे वातावरण का निर्माण होगा। मनुष्य की सोच जैसी होगी उसके विचार भी वैसे बन जाएंगे।स्वामी जी महाराज ने सुनाई शिव महिमा भी 

महाराज जी ने शिव महिमा सुनाते हुए कहा कि शिव ही सत्य है, शिव ही सुंदर है। सब कुछ शिव ही है। सारा जगत शिव है। यह जगत शिव से उत्पन्न हुआ है और शिव में ही विलीन हो जाता है। जगत की उत्पत्ति शिव भगवान ही करते हैं। आखिर में सब कुछ खत्म हो जाता है मगर वहीं शेष रह जाते हैं। जिस प्रकार अंधकार में रस्सी सर्प के समान लगती है। उसी प्रकार यह जगत परमात्मा शिव का शुद्ध स्वरूप होने के बावजूद माया के प्रभाव के कारण स्वपनवत दिखाई देता है। माया की भ्रांति के कारण ही भगवान के दर्शन नहीं होते। सत्संग और संतों की शरण में जाने के बाद ही परमात्मा का बोध होता है। इसलिए सत्संग श्रवण करने का मौका मिले तो अवश्य करें। कथा दौरान स्वामी श्री सुशांतानंद जी महाराज ने भी श्रद्धालुओं को प्रवचनों की अमृतवर्षा में स्नान कराया। इस मौके बड़ी गिनती में श्रद्धालु उपस्थित थे। श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर में प्रवचन करते हुए स्वामी श्री कमलानंद जी महाराज, स्वामी श्री सुशांतानंद जी महाराज एवं उपस्थित श्रद्धालु।