ब्रह्मा, विष्णु समेत भगवान श्री राम और श्री कृष्ण भी शिव भक्त : महामंडलेश्वर स्वामी श्री कमलानंद गिरि
रघुनंदन पराशर, डेमोक्रेटिक फ्रंट, जैतो – 30 नवम्बर :
श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज ने शिव महिमा सुनाते हुए कहा कि ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं समेतभगवान श्री राम और श्री कृष्ण भी शिव भक्त हैं। पुराणों के अनुसार भगवान कृष्ण ने कैलाश पर्वत पर शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी तो भगवान श्री राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी। देवों के देव महादेव की भक्ति करने वाले भक्त पर कभी कोई संकट नहीं आ सकता।
उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। महामंडलेश्वर स्वामी श्रीकमलानंद गिरि जी महाराज ने ये विचार श्री राम भवन में आय़ोजित श्री महामृत्युंजय पाठों के मौके पर शिव महिमा सुनाते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शिव ही प्रथम है और शिव ही अंतिम है। शिव ही धर्म की जड़ है। शिव से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं। पूरा जगत शिव की ही शरण में है। जो भगवान शिव के प्रति शरणागत नहीं है वो प्राणी दु:ख के गहरे गर्त में डूबा रहता है। ऐसा पुराणों में लिखा है।जाने-अनजाने में भगवान शिव का अपमान करने वाले को प्राकृति कभी क्षमा नहीं करती। स्वामी श्री कमलानंद जी महाराज ने कहा कि भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना विचित्र है, उतना ही आकर्षक भी।
भगवान शिव जो धारण करते हैं, उनके भी बड़े व्यापक अर्थ हैं। शिव की जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं। चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन चांद की तरह भोला, निर्मल, उज्ज्वल और जागृत है। भगवान शिव की तीन आंखें हैं। इसीलिए इन्हें त्रिलोचन भी कहा गया है। शिव की ये आंखें सत्व, रज, तम (तीन गुणों), भूत, वर्तमान, भविष्य (तीन कालों), स्वर्ग, मृत्यु व पाताल (तीनों लोकों) का प्रतीक हैं। सर्प जैसा हिंसक जीव शिव के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक जीव है, जिसे शिव ने अपने वश में कर रखा है। शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है जिसे त्रिशूल कहते हैं। त्रिशूल भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है। शिव के एक हाथ में डमरू है, जिसे वह तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्मा रूप है। शिव के गले में मुंडमाला है, जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है। शिव ने शरीर पर व्याघ्र चर्म यानी बाघ की खाल पहनी हुई है। व्याघ्र हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा और अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है। भगवान शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से किया जाता है। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है। शिव का वाहन वृषभ यानी बैल है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है। वृषभ धर्म का प्रतीक है। महादेव इस चार पैर वाले जानवर की सवारी करते हैं, जो बताता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनकी कृपा से ही मिलते हैं। शिव की महिमा अपरंपार है। उनमें ही सारी सृष्टि समाई हुई है।
श्रद्धा-भक्ति पर चर्चा करते हुए महाराज जी ने कहा कि श्रद्धा वह चमत्कारिक शक्ति है जो भक्त को पाषाण में भी प्रभु के दिव्य रुप का दर्शन कराती है। अगर दिल में सच्ची श्रद्धा है तो कठिन से कठिन कार्य भी सहज व सरलता से ही हो जाते हैं। स्वामी जी बोले कि मन में ही स्वर्ग होता है और मन में ही नरक। व्यक्ति खुद के कर्मों द्वारा ही अपने घर-परिवार को स्वर्ग बनाता है और खुद ही नरक। व्यक्ति के स्वभाव को बदलना बड़ा कठिन है। मनुष्य की भावना पर सब कुछ निर्भर रहता है। इस मौके बड़ी गिनती में श्रद्धालु उपस्थित थे जिन्होंने महाराज जी का तिलक पूजन किया और आशीर्वाद प्राप्त किया। मंदिर प्रांगण शिव भोले एवं सद्गुरु देव महाराज के जयकारों से गूंज उठा।