- पं. पूरन चंद्र जोशी ने डाला कार्तिक पूर्णमासी पर प्रकाश
रघुनंदन पराशर, डेमोक्रेटिक फ्रंट, जैतो – 25 नवम्बर :
कार्तिक पूर्णमासी 27 नवंम्बर दिन सोमवार को आ रही है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर पूजा पाठ करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विधान है। उसमें भी वाराणसी में गंगा नदी में स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और दान करने से पुण्य मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। ये जानकारी सनातन धर्म प्रचारक प्रसिद्ध विद्वान ब्रह्मऋषि पं.पूरन चंद्र जोशी ने कार्तिक पूर्णमासी पर प्रकाश डालते हुए दी। पं. जोशी ने बताया कि पंचांग के अनुसार इस बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर रविवार को दोपहर 03ः53 मिनट पर शुरू हो जाएगी। इस तिथि का समापन 27 नवंबर दिन शुक्रवार को दोपहर 02ः45 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर सोमवार को होगी। इस दिन कार्तिक पूर्णिमा का व्रत और स्नान होगा। 27 नवंबर को ब्रह्म मुहूर्त से ही कार्तिक पूर्णिमा का स्नान और दान प्रारंभ हो जाएगा। उस दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रात: 05ः 05 मिनट से सुबह 05ः59 मिनट तक है। ब्रह्म मुहूर्त से दिन भर कार्तिक पूर्णिमा का स्नान-दान चलेगा। कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त या अभिजित मुहूर्त सुबह 11:47 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक है।
कार्तिक पूर्णिमा पर बन रहा शिव, सिद्ध और सर्वार्थ सिद्ध योग
पं.जोशी अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिव योग, सिद्ध योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहे हैं। कार्तिक पूर्णिमा को शिव योग प्रात:काल से लेकर रात 11:39 बजे तक है। उसके बाद से सिद्ध योग अगले दिन तक रहेगा। पूर्णिमा वाले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग दोपहर 01 बजकर 35 मिनट से शुरू होगा और 28 नवंबर को प्रात: 06 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। कार्तिक पूर्णिमा को दोपहर 01 बजकर 35 मिनट तक कृत्तिका नक्षत्र है, उसके बाद से रोहिणी नक्षत्र है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी और देवता कार्तिक पूर्णिमा को शिव की नगरी काशी में गंगा नदी में स्नान करने आते हैं। और शाम के समय में दीपक जलाते हैं। इस वजह से इस दिन को देव दीपावली के नाम से जानते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को प्रदोष काल में देव दीपावली मनाई जाती है। वाराणसी में सभी मंदिरों और गंगा के घाटों को दीपों से सजाया जाता है। देव दीपावली पर वाराणसी की अलौकिक और भव्य छटा देखने को मिलती है। कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शिव ने असुरराज त्रिपुरासुर का वध किया था। इस वजह से कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं। भगवान शिव की कृपा से देवों को त्रिपुरासुर के आतंक से मुक्ति मिली थी। इसलिए देवता कार्तिक पूर्णिमा को काशी नगरी में स्नान करने के बाद देव दीपावली मनाते हैं। हिंदुओं के अलावा सिखों के लिए भी कार्तिक पूर्णिमा का बहुत महत्व है। सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जयंती भी मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा पर इस बार एक अद्भुत संयोग बन रहा है, कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिकी भी कहा जाता है। किंतु इस दिन कृतिका नक्षत्र होने से विशेष संयोग बन रहा है, जिसके चलते इसे महां-कार्तिकी कहा जाएगा और इसके फल भी अद्भुत होते हैं। कृतिका नक्षत्र का साथ दोपहर 1:35 तक मिलेगा उसके बाद रोहिणी नक्षत्र लग जाएंगी। वैसे भरणी होने पर भी विशेष फल मिलता है। जबकि रोहिणी नक्षत्र होने पर इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है. इस बार कार्तिक पूर्णिमा जिसे कुछ लोग कतकी भी कहते हैं। 27 नवंबर सोमवार को मनाई जाएगी। कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि के समय व्रत करके वृषभ का दान करने से शिव जी की कृपा मिलती है। गाय हाथी घोड़ा रथ और घी का दान करने वाले व्यक्ति की संपत्ति बढ़ती है। जो लोग पूर्णिमा का व्रत करना चाहते हैं उन्हें इसका आरंभ कार्तिक पूर्णमासी से ही करना चाहिए। इस दिन से पूर्णिमा व्रत शुरु कर फिर प्रत्येक पूर्णिमा में व्रत और जागरण करते हुए भजन कीर्तन करने से सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं।