प्रदेश के निजी सहायता प्राप्त कॉलेजों ने सरकार द्वारा टीचिंग स्टाफ अधिग्रहण के खिलाफ खोला मोर्चा
- 97 कॉलेजों के लगभग दो लाख से भी अधिक स्टूडेंट्स की शिक्षा होगी प्रभावित, प्रदेश का एजूकेशन ग्राफ भी गिरेगा
- एसोसिएशन की मांग, मुख्यमंत्री कॉलेज प्रबंधकों से वार्ता कर इस कदम को लें वापिस
डेमोक्रेटिक फ्रंट, चण्डीगढ़- 18 नवम्बर :
प्रदेश के सहायता प्राप्त निजी कॉलेजों ने हरियाणा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हरियाणा सरकार का शिक्षा विभाग, टीचिंग और नान टीचिंग स्टाफ के टेकओवर (अधिग्रहण) करने की तैयारी में जुट गया है जिसके चलते निजी कालेजों के प्रबंधकों में खासा व्यापक रोष व्याप्त है। ऐसोसियेशन सदस्य मांग कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर इस संदर्भ में कॉलेज प्रबंधकों से वार्ता कर उन्हें पेश आ रही चुनौतियों से अवगत हो और इस फैसले को वापिस लें। शनिवार को इसी क्रम में प्रदेश में निजी सहायता प्राप्त कॉलेज के सर्वोच्च संघ – वैल्फेयर ऐसोसियेशन ऑफ दी मैनेजमेंट ऑफ प्राईवेट ऐडिड कालेजिस ने सेक्टर 27 स्थित चंडीगढ़ प्रेस कल्ब में प्रेस वार्ता के दौरान ऐसोसियेशन के अध्यक्ष चौधरी तेजवीर सिंह (पूर्व विधायक) ने बताया कि यह सभी कॉलेज हरियाणा शिक्षा प्रणाली की रीढ़ है। कुल 97 सरकारी सहायता प्राप्त कालेज गर्वमेंट ऐडिड कालेजिस में अधिकांश कॉलेज पचास वर्षो से भी अधिक पुराने हैं। उनके अनुसार इन सहायता प्राप्त कालेजों की स्थापना विभिन्न ऐज्यूकेशनल सोसाईटियों और ट्रस्टों के अधीन हुई थी। उनके सिद्धांतों का अनुसरण करते हुये ये कॉलेज, सरकारी कॉलेजों की तुलना बेहतर शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। ऐसोसियेशन ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि वे हरियाणा के 97 सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेजों के परमानेंट टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ को अपने कब्जे में लेने के सरकार के प्रस्ताव के पूरी तरह से खिलाफत करते हैं। वर्तमान में इन 97 कॉलेजों में दो लाख से भी अधिक स्टूडेंट्स शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं जो कि इन उच्च योग्य और अनुभवी टीचर्स के अनुभवों से वंचित हो जाएंगे जिससे की शिक्षा का स्तर नीचे गिर जायेगा।
चौधरी तेजवीर ने कहा कि सरकार का यह प्रस्तावित कदम ‘बेटी पढ़ाओ – बेटी बचाओ, ‘हरियाणा एक- हरियाणवी एक’ और ‘सबका साथ सबका विकास’ की अपनी कर्तव्य नीतियों के खिलाफ है। इसके विपरीत गत पचास वर्षो से अधिक स्थापित अधिकांश ये 97 सहायता प्राप्त कालेज शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिये प्रदेश सरकार की मदद कर रहे हैं क्योंकि इन कालेजों ने स्वयं ही संस्थानों की भूमि, भवन और सभी बुनियादी ढ़ांचे उपलब्ध कराये हैं।
अधिग्रहण के बाद इन कॉलेजों को सिर्फ सेल्फ फाईनेंसिंग कोर्सो पर ही निर्भर रहना पडेगा जिससे फीस में ईजाफा होगा और शिक्षा महंगी हो जायेगी। अनुसूचित और पिछड़े वर्ग के निर्धन स्टूडेंट्स को काफी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
चौधरी तेजवीर ने बताया कि सहायता प्राप्त कॉलेजों के 57 कॉलेजों के प्रबंधकों ने लिखित जबकि 23 कालेजों के प्रबंधकों ने मौखिक रुप से सरकार के इस कदम की आलोचना करते हये ऐसोसियेशन का समर्थन किया है। जबकि 12 कालेजों में प्रदेश सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासकों ने भी ऐसोसियेशन के साथ एकजुटता दिखाई है। परिणास्वरुप 90 से अधिक कॉलेजों ने सरकार के खिलाफ फैसला लेने के लिये मुहिम छेड़ दी है।
ऐसोसियेशन के पास उपलब्ध आंकड़ो के अनुसार सहायता प्राप्त कॉलेजों में टीचिंग स्टाफ की संख्या करीब तीन हजार है और इनमें से 1250 पोस्टें पद खाली हैं। इसी प्रकार 1650 नॉन टीचिंग स्टाफ है और उनमे ंसे 709 पोस्टें पद खाली हैं। वर्तमान में सरकार ने बीस फीसदी स्टाफ लेने का प्रस्ताव रखा है और इस प्रकार कुछ ही स्टाफ कॉलेजों के लिये उपलब्ध होगा।
ऐसोसियेशन सदस्यों का मत था कि सहायता प्राप्त कॉलेज अनुभव स्टाफ की सेवाओं से वंचित हो जायेंगें। बजाय इसके सरकार को अपने ही स्तर पर सरकारी कॉलेजों में स्टाफ की भर्ती करे।
एसोसिएशन के महासचिव प्रोफेसर एएस ओबेरॉय ने कहा कि इस नीति के बाद ये सहायता प्राप्त कॉलेज यूजीसी और सरकारी ग्रांट के लिये मान्य नहीं होंगें। इन कॉलेजों का प्रबंधन टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ को यूजीसी या सरकार द्वारा प्रस्तावित फुल पे स्केल देने की स्थिति में नहीं होगा। एज्युकेशनल सेक्टर में हरियाणा राज्य की वर्तमान रैंकिंग में गिरावट आयेगी। राज्य में विभिन्न पंचायतें भी राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ है और इस संबंध में प्रस्ताव पारित कर पुनर्विचार के लिये माननीय मुख्यमंत्री को भेज दिया हैं ।
ऐसोसिएशन ऑफ सिख माइनॉरिटी एजुकेशनल एंड प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशंस ऑफ हरियाणा के अध्यक्ष एमएस साहनी ने बताया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों को किसी भी सरकार या अन्य निकाय द्वारा अपने कब्जे में नहीं लिया जा सकता है।
इस अवसर पर मौजूद ऐसोसियेशन के वाईस प्रेजिडेंट मेजर एसपी सिंह और कार्यकारिणी सदस्य डॉ देशबंधु ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुये सरकार के इस कदम की आलोचना की।