डेमोक्रेटिक फ्रंट, चण्डीगढ़ – 14 नवम्बर :
चंडीगढ़ और ट्राईसिटी मे समाजिक कार्यो मे तन मन धन से अपने आप को रत रखने वाले दम्पति संजय चौबे व सरोज चौबे जो शिवानन्द चौबे मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट के संचालक भी है और छठ पूजा करते है और व्रतियो के सेवा मे भी रत रहते है। आज छठ पूजा की चर्चा होते ही भाव विह्वल हो गए और बताये की छठ पूजा से ही प्रेरित हो कर और छठी मईया की कृपा से ही मानवता का श्वेष्ठतम कार्य सम्पन्न कर पाते है उन्होने अपने शब्दो मे छठ पूजा का वर्णन कुछ इस प्रकार किया…….. छठ पर्व शुरु हुआ,आनंद मिले भरपूर। मैया के आशीष से, संकट होंगे दूर।। ग्लोबल होती प्रकृति पूजा *छठ* एक दर्पण है जिसमे अर्पण से समर्पण का दर्शन होता है। “उगs हो सुरुज देव, भइले अरघ के बेर…” छठ पर्व के ये गीत कान से ऊतर कर सीधे दिल मे जगह बनाते है।
छठ डूबते सूर्य व उगते सूर्य की आराधना का पर्व है। जहा डूबता सूर्य इतिहास होता है, वही उगता सूर्य भविष्य होता है, अर्थात हम भूत व भविष्य को सम भाव से पूजते है यही छठ व्रत का मूल भाव है। जब विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता की स्त्रियां अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ सज-धज कर अपने आँचल में फल ले कर निकलती हैं तो लगता है जैसे संस्कृति स्वयं समय को चुनौती देती हुई कह रही हो, “देखो! तुम्हारे असँख्य झंझावातों को सहन करने के बाद भी हमारा वैभव कम नहीं हुआ है, हम सनातन हैं।जब घुटने भर जल में खड़ी व्रती की सिपुलि में सूर्य की किरणें उतरती हैं तो लगता है जैसे स्वयं सूर्य बालक बन कर उसकी गोद में खेलने उतरे हैं। स्त्री का सबसे भव्य, सबसे वैभवशाली स्वरूप वही है। इस धरा को “भारत माता” कहने वाले बुजुर्ग के मन में स्त्री का यही स्वरूप रहा होगा। कभी ध्यान से देखिएगा छठ के दिन जल में खड़े हो कर सूर्य को अर्घ दे रही किसी स्त्री को, आपके मन में मोह नहीं श्रद्धा उपजेगी। छठ वह प्राचीन पर्व है जिसमें राजा और रंक एक घाट पर माथा टेकते हैं, एक देवता को अर्घ देते हैं, और एक बराबर आशीर्वाद पाते हैं। छठ व्रतियो के दऊरा मे प्रसाद भी पूरी प्रकृती का दर्शन देती है। इस पर्व की भव्यता इसकी सरलता मे ही है इसे इतना भव्य न बनाये की और पर्वो के ही भाँति इसकी सुलभता जन सामान्य से बहुत दुर हो जाए ।