और भ्रष्टाचार क्या होता है ?
2019 के अंत में, एक स्वतंत्र सर्वेक्षण में राजस्थान भ्रष्टाचार चार्ट में शीर्ष पर रहा, जिसमें लगभग 1,90,000 प्रतिक्रियाएं मांगी गईं। लोकल सर्कल्स और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, सर्वेक्षण में भाग लेने वाले राजस्थान के 78 प्रतिशत लोगों ने काम करवाने के लिए रिश्वत देने की बात स्वीकार की। उनमें से 22 प्रतिशत ने स्वीकार किया कि उन्होंने कई बार रिश्वत दी है, जबकि बाकी ने कहा कि उन्होंने केवल एक या दो बार अधिकारियों को रिश्वत दी है।
करणीदान सिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ – 28 सितम्बर :
नगरपालिका में कांग्रेस का बोर्ड। परसराम भाटिया अध्यक्ष हैं। सड़क पर सड़क बनाई जा रही है। डामर रोड अच्छी दशा। जहां क्षतिग्रस्त वहां मरम्मत होती और रिकारपेट होता। सड़क की ऊंचाई नहीं बढ़ती। डामर रोड पर इंटरलॉकिंग टाईल्स लगाकर नयी सड़क का निर्माण और वह भी कोई लेवल नहीं। ऊंचाई अधिक होने और कुछ घर हड़क से नीचे होंगे जिनमें बरसात में गंदगी गंदा पानी घरों में घुसेगा। पीड़ा तो उनको जिनका घर नीचे होगा। सड़क पर सड़क बनाई जाए तो फिर और भ्रष्टाचार क्या होता है? नगरपालिका प्रशासन में कौन कौन लिप्त हैं जो डामर रोड पर इंटरलॉकिंग सड़क बना रहे हैं। कांंग्रेस के आका यह करवा रहे हैं। देख चुके। अध्यक्ष को इस घोटाले पर रोका नहीं। आखिर इसकी भी कभी तो जांच होगी, सीवरेज पेमेंट घोटाले की तरह। फिर कौन कौन भागते फिरेंगे। मुकदमा चाहे एसीबी में बने चाहे पुलिस में।चाहे प्रशासनिक जांच में आफत आए।
अध्यक्ष, ईओ जिसने सूचना पर भी रोका नहीं, इंजीनियर, भुगतान करेंगे वो और जो भुगतान लेंगे। यह केवल एक वार्ड नं 32 का ही मामला है। और वार्डों में भी हो रहा है। राजनीतिक दल उनके नेता पदाधिकारी यह भ्रष्टाचार देख रहे हैं। ऐसे काम और भ्रष्टाचार ही तो यहां कांंग्रेस की कब्र खोद रहे हैं। इसमें जाएंगे वे भी देख रहे हैं।
- ऊंचे मकानों वालों के तो सड़कों को ऊंचा उठाने से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन जिनके घर नीचे होते हैं ऊनके फर्क पड़ता है। घरों को ऊंचा उठाना नया निर्माण आसान नहीं होता। 25 -30 लाख रू लगते हैं। वे कहाँ से लाएं इतनी बड़ी रकम। हर बार सड़क ऊंची उठेगी। न्यायालय के आदेश हैं कि नयी बनाने से पहले पुरानी को उखाड़ो ताकि लेवल ऊंचा और ऊंचा नहीं होता जाए।
- वार्ड नं 32 के मामले में शुरू होते ही 1 सितंबर को शनिवार को ईओ जगमोहन हर्ष को वाट्सएप मैसेज किया गया। अगले दिन 2 सितंबर को जिलाकलेक्टर को मेल किया गया। बाद में कलेक्टर के यहां वह कापी पहुंचादी गयी। इनके क्या निर्देश रहे। या निर्देश माने नहीं गये?
नगरपालिका में मील के निर्देश पर काम होते व नहीं होते,अतिक्रमण हटते हैं।नगरपालिका के अधिकारी कर्मचारी अभी तो किसी की भी सुन नहीं रहे।लेकिन बाद में बहुत परेशान होंगे।
इंटरलॉकिंग के भ्रष्टाचार में मील ही बदनाम हो रहे हैं, मील इस सीधे नुकसान को भी देख नहीं रहे हैं। चुनाव भी लड़ने की ऐसी तैयारी नजदीकी लोग करवा रहे हैं। आचार संहिता लगने से पहले का गंभीर काल चल रहा है। लोगों के नुकसान को बचाएंगे तो ही मील का नुकसान बच पाएगा