महिला आरक्षण बिल पर अगर सरकार की मंशा सही है तो फिर 2029 तक इंतजार क्यों – दीपेंद्र हुड्डा
- सरकार की भावना को लेकर प्रश्नचिन्ह उठ रहे हैं – दीपेंद्र हुड्डा
- इसी साल से लागू हो महिला आरक्षण कानून ताकि आधी आबादी का सशक्तिकरण हो – दीपेंद्र हुड्डा
- प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में कितनी महिलाएं और कितने पुरुष हैं ये आंकड़ा चुनाव आयोग के पास पहले से ही मौजूद है – दीपेंद्र हुड्डा
- अपनी हर घोषणा की तरह तारीख पर तारीख न दे सरकार – दीपेंद्र हुड्डा
डेमोक्रेटिक फ्रंट, चण्डीगढ़ – 20 सितम्बर :
सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने आज महिला आरक्षण बिल को इसी साल से से लागू करने की मांग करते हुए सरकार की मंशा पर सवाल उठाया। एक बयान में उन्होंने कहा कि महिला आरक्षण बिल पर अगर सरकार की मंशा सही है तो फिर 2029 तक इंतजार क्यों? इससे सरकार की भावना को लेकर प्रश्नचिन्ह उठते हैं। सरकार का 2029 उसी तरह का साबित न हो जैसा कि 2019 में बुलेट ट्रेन में बैठकर अहमदाबाद से मुंबई जाने की बात सरकार ने कही थी। इसी सरकार ने कहा था कि 100 दिन में काला धन आ जायेगा, हर साल युवाओं को 2 करोड़ नौकरियां देगे, 100 स्मार्ट सिटी बनकर तैयार हो जायेगी, 2022 तक किसान की आमदनी दोगुनी हो जाएगी। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा उन्हें तो इस बात की चिन्ता है कि अन्य जुमलों की लिस्ट में यह भी एक जुमला बनकर न रह जाए। अपनी हर घोषणा की तरह तारीख पर तारीख न दे सरकार। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं महिला आरक्षण इसी साल से लागू हो और देश की आधी आबादी का सशक्तिकरण हो सके। लेकिन, लोगों को शंका है कि जिस तरह ये सरकार बाकी हर चीज की तारीख भूल गयी है उसी तरह 2029 की तारीख भी न भूल जाए। दीपेंद्र हुड्डा ने विश्वास जताया कि महिला आरक्षण बिल लोकसभा और राज्य सभा से पारित होकर कानून का रूप लेगा।
सांसद दीपेन्द्र ने कहा कि महिलाओं का सशक्तिकरण हो और महिलाओं को आगे आने का अवसर मिले इसके लिये कांग्रेस पार्टी हमेशा प्रयासरत रही है। कांग्रेस पार्टी 2010 में महिला आरक्षण बिल को लेकर आयी थी और राज्यसभा से इसे पारित भी करा दिया था। लेकिन लोकसभा में दो तिहाई बहुमत न होने और बाकी दलों का समर्थन न मिलने के कारण ये बिल लोकसभा से पारित नहीं हो पाया था। अब ऐसा लगता है कि सरकार महिलाओं से वोट हासिल करने और उनके लिये कुछ किये जाने की बात जताने के लिये ही आरक्षण के नाम पर एक और जुमला दे रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार को करीब साढ़े पांच सौ सीट में से एक तिहाई सीटों को आरक्षित करने से किसने रोका है। राज्यों के हिसाब से एक तिहाई सीटों को आरक्षित किया जा सकता है। आज पंचायती राज संगठनों में पंच, सरपंच, जिला पंचायत, शहरी निकायों आदि के ड्रॉ निकलते हैं और इस बात को हर कोई समझता है कि ड्रॉ निकालना कोई 8-9 सालों का काम नहीं है। सरकार आसानी से ड्रॉ निकालकर चुनाव करा सकती है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में कितनी महिलाएं और कितने पुरुष हैं ये आंकड़ा तो पहले से ही चुनाव आयोग के पास मौजूद है। इसलिये महिला आरक्षण बिल इसी साल से लागू किया जाए।