सूरतगढ़ के हाल बेहाल हैं सूरतगढ़ सीट पर कांग्रेस 2013 में उसके बाद 2018 में पराजित हो गई। असल में यहां मील हारे। 2013 में गंगाजल मील हारे और 2018 में हनुमान मील हारे। सश 2008 से 2013 तक गंगाजल मील विधायक रहे थे और 5 साल काम करने का मौका मिला फिर 2013 में हार नहीं होनी चाहिए थी। कांग्रेस के अन्य नेताओं का रवैया बेहद बुरा रहा। उनकी घटिया सोच रही कि मील हारे हैं।
करणीदानसिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ – 06 जुलाई :
सूरतगढ़ सीट पर तीसरी बार कांग्रेस की हार के लक्षण प्रगट हो रहे हैं लेकिन कांग्रेस के नेताओं को कांग्रेस पार्टी को कांग्रेस के टिकटार्थियों को इन लक्षणों की ओर ध्यान नहीं हो रहा है।
कांग्रेसी समझते हैं कि सूरतगढ़ में केवल मील परिवार की ही जिम्मेदारी है। मील परिवार ही यहां कांग्रेस चला रहा है तो हम किसी समस्या में क्यों पड़ें? इस प्रकार की सोचने सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को कमजोर कर दिया है और यह लक्षण राजकीय प्रशासनिक कार्यालयों में स्वायत्तशासी संस्थाओं के कार्यालयों में देखे जा रहे हैं। जहां अधिकारी दफ्तर में समय पर मौजूद नहीं रहते कर्मचारी मौजूद नहीं रहते पत्रावलियां हर दफ्तर में जानबूझकर काम में नहीं ली जा रही है। बस्तों में आलमारियों में बंद पड़ी रखी जाती है। सुविधा शुल्क चाहिए बिना सुविधा शुल्क के काम नहीं हो रहा और यह पीड़ा लगातार जनता को भोगनी पड़ रही है।
एक बड़े अखबार में लिखा कि सूरतगढ़ में कांग्रेस कमजोर है. इसके बावजूद भी कांग्रेस की आंखें नहीं खुली। प्रशासनिक दफ्तरों में अधिकारी मौजूद नहीं रहते दफ्तर का समय खुलने का 9:00 है और बंद होने का समय 6:00 बजे है अधिकारी दफ्तरों में अपनी मनमर्जी से कोई 9:30 बजे पहुंच रहा है कोई 10:00 बजे पहुंच रहा है और कोई 12:00 बजे पहुंच रहा है। जब अधिकारियों की यह हालत है तो कर्मचारी फिर पीछे क्यों रहेंगे? कर्मचारी भी दफ्तरों से गायब रहते हैं। लंच का समय दो-तीन घंटे तक चलता रहता है। दफ्तर बंद होने का समय 6:00 बजे है लेकिन उससे पहले ही दफ्तर बंद हो जाते हैं।
- सूरतगढ़ जिला बनाओ की मांग चल रही है सबसे बड़ा प्रशासनिक कार्यालय अतिरिक्त जिला कलेक्टर का कार्यालय मौजूद है। प्रशासनिक कार्यालयों की हालत बड़ी दयनीय बना दी गई है। प्रशासनिक कार्यालयों के आगे स्त्री पुरुष अपनी पत्रावलियां लिए हुए अपनी तारीखों के लिए पूछताछ करते हुए घूमते फिरते हैं। इस भयानक गर्मी के अंदर पर लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर से यहां पहुंचते हैं और उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही।
- सूरतगढ़ के हाल बेहाल हैं सूरतगढ़ सीट पर कांग्रेस 2013 में उसके बाद 2018 में पराजित हो गई। असल में यहां मील हारे। 2013 में गंगाजल मील हारे और 2018 में हनुमान मील हारे। सश 2008 से 2013 तक गंगाजल मील विधायक रहे थे और 5 साल काम करने का मौका मिला फिर 2013 में हार नहीं होनी चाहिए थी। कांग्रेस के अन्य नेताओं का रवैया बेहद बुरा रहा। उनकी घटिया सोच रही कि मील हारे हैं।
- दो बार की हार के बाद कांग्रेस को विशेष कर मील को अपने कार्य के अंदर सूझबूझ से आगे बढ़ना था लेकिन मील , कांग्रेस के नेता और कांग्रेस के कार्यकर्ता दूसरे कामों में लग गए।
वे काम भी उनको शिखर पर नहीं पहुंचा रहे। - कांग्रेस की छवि को यहां कांग्रेश के नेताओं ने और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने धूमिल कर के रख दिया। इनकी ड्यूटी सरकारी दफ्तरों को नगर पालिका को पंचायत समिति को जलदाय विभाग और विद्युत विभाग को संभालने की थी जिनसे जनता का सीधा संबंध है। उन पर कांग्रेस के किसी भी नेता ने ध्यान नहीं दिया। आश्चर्य यह है कि मील परिवार टिकट की दावेदारी जता रहा है। यह भी दावा जनता में आ रहा है कि मील के अलावा किसी को टिकट नहीं मिलेगी। गंगाजल मील साहब ने पत्रकार वार्ता में कहा कि कांग्रेस पार्टी की ओर से हनुमान मील ही चुनाव लड़ेंगे, तो फिर यह तीसरी हार लेने के लिए भी तैयार रहना चाहिए या दिनरात जागते रहकर जीत के लिए पक्के प्रयास करने चाहिए चाहे उनके लिए सरकारी दफ्तरों और नगरपालिका में सख्त निर्णय लेने पड़ें।
- जो हालात सूरतगढ़ के हैं वह बहुत खराब हो चुके हैं। पिछला चुनाव लड़ चुके हनुमान नील को इस ओर ध्यान देना था लेकिन साडे 4 साल से अधिक समय गुजरने के बावजूद भी उनका ध्यान आम जनता के लिए नहीं रहा। आम जनता का काम नहीं हो और आम जनता से वोट की आशा की जाय। यह सोचा तो जा सकता है लेकिन वोट एक ऐसा अधिकार है जिसे छीना नहीं जा सकता।
** कांग्रेस की इस महान कमजोरी के अंदर केवल मील परिवार ही जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। जिम्मेदारी सामूहिक होती है। यदि कांग्रेस सूरतगढ़ में कमजोर हो रही है तो इसकी जिम्मेदारी पूरे कांग्रेस ग्रुप की है जिसके अंदर ब्लॉक कांग्रेस देहात कांग्रेस और कांग्रेस के नेता जो इस समय टिकट के दावेदार बने हुए हैं,सभी जिम्मेदार हैं। - उनसे सीधा सवाल है कि प्रशासनिक कार्यालयों में स्वायत्तशासी संस्थाओं के कार्यालयों में जब आधिकारी कर्मचारी काम नहीं करते समय पर मौजूद नहीं रहते सुविधा शुल्क के बिना काम नहीं होता तो इन अन्य नेताओं ने टिकटार्थियों ने अपना मुंह क्यों नहीं खोला? वे भी आगे बढ कर जनता के काम कराते।
👍 कांग्रेस सूरतगढ़ की सीट तीसरी बार हारती है। यह लक्षण प्रकट हो रहे हैं लेकिन कांग्रेस के नेताओं का टिकटार्थियों का इस और ध्यान नहीं है। वे अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी टाल रहे हैं। - मील परिवार को टिकट नहीं मिलती है तो भी निश्चित है कि जो कोई टिकट लेकर के आएगा जिसको टिकट मिलेगी वह इस भारी अव्यवस्था का नुकसान उठाएगा। हर हालत में उस नए चेहरे को भी परेशानी मिलेगी। चुनाव लड़ने का मूड मील परिवार का ही नजर आता है।
*कांग्रेस के नेता सारे अभिमान में और लापरवाही में डूबे हुए हैं पूरी जिम्मेदारी बनती है जनता के काम करवाने की लेकिन जनता हर दफ्तर के आगे पीड़ित अवस्था में खड़ी है। सूरतगढ़ शहर जहां पर सारे प्रशासनिक कार्यालय हैं स्वायत्तशासी संस्थाओं के बड़े कार्यालय हैं। उनके आगे 1 दिन खड़ा रह कर देखा जा सकता है कि कितने लोग पीड़ित अवस्था में घूम रहे हैं और अधिकारी अपने घरों में बैठे हैं। जब दफ्तरों के अंदर उनकी हाजिरी नहीं है तब जनता के लिए फिर चाहे मील हो चाहे गेदर हो चाहे कोई अन्य हो, सब एक समान है।