कश्मीर फाइल्स और केरल स्टोरी की तरह अब आ रही है ‘कानपुर फाइल्स’
- 84 के सिख नरसंहार पर ‘कानपुर फाइल्स’ फिल्म बनाने की घोषणा, 31 अक्टूबर को हो सकती है रिलीज
डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, चंडीगढ़ – 30 जून :
जीएम फाउंडेशन के प्रोडक्शन हाउस – ग्लोबल मिडास कैपिटल (जीएमसी) ने “कानपुर फाइल्स” नामक एक फिल्म बनाने की घोषणा की है। चंडीगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में प्रोड्यूसर सरदार इंदर प्रीत सिंह ने आज कहा कि उनकी फिल्म 1984 के सिख नरसंहार की वास्तविक घटनाओं पर आधारित होगी। फिल्म का पूरा नाम ‘द कानपुर फाइल्स- 1984 सिख जेनोसाइड’ है। इस डॉक्यू-ड्रामा फिल्म में 1984 के दौरान उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में सिखों के खिलाफ हुए पूर्व नियोजित हमलों, सामूहिक हत्याओं, लूटपाट और हिंसक घटनाओं को तथ्यों, सबूतों, गवाहों और पीड़ितों के बयानों के साथ पर्दे पर लाया जाएगा।
सरदार इंदर प्रीत सिंह ने कहा कि यह घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण थी, लेकिन अफसोस की बात है कि इतने साल बीतने के बाद भी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई और न ही पीड़ितों को न्याय मिला है। फिल्म ‘कानपुर फाइल्स- 1984 सिख नरसंहार’ की रिलीज डेट 31 अक्टूबर 2023 रहने की संभावना है। सरदार इंदर प्रीत सिंह का कहना है कि उनकी फिल्म लोकतांत्रिक अधिकारों, नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के लिए लड़ने वालों को एक मजबूत आधार प्रदान करेगी। इसके आधार पर, 1984 के सिख नरसंहार के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में भी मामला उठाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि घटना के 35 साल बाद, 5 फरवरी, 2019 को पहली बार, कानपुर में 127 लोगों के सिख नरसंहार में शामिल लोगों को सजा दिलाने और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए लगातार प्रयासों से एसआईटी का गठन संभव हो सका। लेकिन नरसंहार में अपना सब कुछ गंवाने वाले आज भी इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं।
अखिल भारतीय दंगा पीड़ित राहत समिति 1984, के अध्यक्ष, सरदार कुलदीप सिंह भोगल, और सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रसून कुमार ने भी प्रेस वार्ता में अपने विचार रखे। उन्होंने 1984 में कानपुर के सिख नरसंहार के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
इससे पहले, ग्लोबल मिडास कैपिटल (जीएमसी) ने 30 अक्टूबर 2022 को ग्लोबल मिडास फाउंडेशन (जीएमएफ) के सहयोग से निर्मित 3 घंटे की एक विस्तृत डॉक्यूमेंट्री जारी की थी, जिसका शीर्षक था “1984 – सिखों का नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध”। डॉक्यूमेंट्री में 1984 के दिल्ली दंगों के पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साक्षात्कार शामिल हैं, जिसके माध्यम से 31 अक्टूबर 1984 से 7 नवंबर 1984 के बीच दिल्ली, कानपुर और बोकारो में हुई घटनाओं को समझने का प्रयास किया गया है।