Sunday, December 22

डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, करणीदानसिंह राजपूत, सूरतगढ़ – 24    जून   :

करणीदानसिंह राजपूत

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का कथन देश को संविधान से चलाते हैं लेकिन भाजपा का संविधान आलमारी में बंद है। राष्ट्रीय स्तर,राज्य स्तर तक के पदों पर मनोनीत पदाधिकारी बिठा दिए जो कार्यकर्ताओं की सुनते नहीं और पत्रों के उत्तर तक नहीं देते। कांग्रेस राज और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा लगाए आपातकाल 1975-77 का विरोध करने जेलों में बंद किए लोकतंत्र सेनानियों के पत्रों के उत्तर ही नहीं दिए जाते।

प्रजातंत्रीय प्रणाली भाजपा में खत्म सी कर दी गई है। संगठन के पदों पर मनोनीत प्रणाली थोप दी गई है। पार्टी का निष्ठावान समर्पित सक्रिय और जानदेने जैसे कार्य वाले कार्यकर्ता को पद नहीं मिल पाता। बड़े नेता बड़े संगठन पदाधिकारी, विधायक आदि की चापलूसी करने वाला मनोनीत होता है। मनोनीत पदाधिकारी बड़े नेता की हाजिरी और हां में हां मिलाने में रहता है। विधायकों को फ्री हैंड रखा गया और उनकी सहमति से पदाधिकारियों का मनोनयन। ऐसे मनोनीत विधायक के खास लेकिन कुछ नहीं करने या अनीति करने वालों से होने वाले नुकसान पर कोई गौर नहीं।

  • बडे़ पद लिखे हैं। जिला, मंडल स्तर,सभी मोर्चों में भी महिला मोर्चा, युवा मोर्चा, अनुसूचित जाति जनजाति मोर्चा, विभिन्न प्रकोष्ठ सभी में मनोनीत पद।
    👍 जब चापलूसी सिफारिश से पदों पर मनोनीत ही नियुक्त होंगे तब संगठनात्मक मेहनत कोई भी क्यों करेगा? यह स्थिति नीचे से ऊपर कहें या ऊपर से नीचे तक बन चुकी है लेकिन उसे ओझल किया जा रहा है।
  • राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा का कार्यकाल बढा दिया गया और उन्होंने स्वीकार कर लिया। प्रजातंत्रात्मक व्यवहार होना चाहिए था। नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाना चाहिए था।
  • इसे प्रजातंत्रीय प्रणाली नहीं कह सकते। इसे मोदी गुट प्रणाली कह सकते हैं। मोदी राजतंत्र कह सकते हैं। इस मनोनीत प्रणाली में जो हावी हैं वे किसी की भी नहीं सुनेंगे।
  • पश्चिम बंगाल दिल्ली, हिमाचल, पंजाब और कर्नाटक भाजपा जीत नहीं पाई। मोदी जी स्वयं हर जगह गए हर तरीका अपनाया लेकिन फिर भी जीत नहीं सके। मोदीजी की समीक्षा कौन करे?
    कर्नाटक हाथ से निकल गया। राजस्थान मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में 2023 के विधानसभा सभा चुनाव में कुछ महीने बाकी हैं और होमवर्क फील्ड वर्क के नाम पर सभी की डायरियां कोरा कागज बनी हुई हैं। खतरा नजर आ रहा है लेकिन फिर भी कार्यकर्ताओं से बेमन का संपर्क हो रहा है। मनोनीत पदाधिकारियों से और विधायकों सांसदों से कोई उम्मीद नहीं है कि वे सद् व्यवहार कर सकें। मंत्रियों सांसदों विधायकों ने कार्यकर्ताओं के कब और कितने काम किए। मनोनीत पदाधिकारियों ने कितना सहयोग किया?सब को अभिमान रहा कि संसार की सबसे बड़ी पार्टी है। लेकिन संसार की बड़ी पार्टी में प्रजातंत्र नहीं है,पार्टी संविधान के अनुसार पार्टी को नहीं चलाया जा रहा।

कर्नाटक हार के बाद संघ के अखबार आर्गनाईजर ने लिखा पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से संपर्क करो तब टिफिन भोजन किया जो केवल दिखावा ही हुआ।

  • यह मनोनयन वाली प्रणाली कांग्रेस ने 35-40 साल पहले शुरू की और खत्म होती चली गई।

** भाजपा ने चोटें खाकर भी मनोनयन प्रणाली नहीं छोड़ी तो खत्म होगी। इसका असर पड़ रहा है लेकिन अभी भी भाजपा के संविधान से चलना नहीं चाहते। भाजपा के सदस्यों को मालुम ही नहीं कि संविधान में क्या लिखा है? सदस्यों को छोड़ें पदाधिकारियों को ही मालुम नहीं है। विधायक और सांसदों से भी पूछ कर देखना कि उन्होंने संविधान देखा पढा है क्या?