सिर्फ विश्व पर्यावरण दिवस पर काग़ज़ों में बढ़ते पेड़ों की संख्या देखकर तस्सली न करलें , हकीकत कुछ और ही है – प्रेम गर्ग

पेडों का सरंक्षण प्रशासन और नगर निगम से वापिस लेकर बन विभाग को दिया जाए

डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, चंडीगढ़  – 05      जून   :

देश में वैसे भी पेड़-पौधों की संख्या घटती जा रही है। देश में अगर हर साल 15 करोड़ पेड़ कटते हैं तो वापिस पाँच करोड़ पेड़ ही लगते हैं। चंडीगढ़ में सरकारी आँकड़ों में चाहे ग्रीन एरिया बढ़ रहा है , लेकिन धरातल पर भी सच्चाई कुछ और ही है। भारत में जंगल खत्म हो रहे हैं व चंडीगढ़ की पैरिफरी  में जिस तरह पेड़ों की कटाई होकर निर्माण हो रहा उससे चंडीगढ़ कैसे बचेगा । इससे जलस्तर लगातार कम हो रहा है। प्रदूषण बढ़ने के कारण ही नहीं बल्कि पेड़ कटने से भी ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा खतरा मंडरा रहा है। ये पूरे देश के लिए चिंता का विषय है, लेकिन इसके प्रति प्रशासन  गंभीर नहीं है। यहां तो सिर्फ खानापूर्ति वाला रवैया अपनाया जा रहा है। पिछले साल जिन पौधों को बड़े जोर-शोर से शहर की मेन रोड के किनारों में   रोपा गया, उतनी जिम्मेदारी से उनकी देखभाल नहीं हुई। नतीजतन अधिकतर पौधे नष्ट हो गए, हालांकि सिंचाई व्यवस्था के लिए ट्रेक्टर ब्रिगेड भी लगी , लेकिन लाभ नहीं हुआ व जनता के  करोड़ों रुपये भी बह गए । आज जितनी आवश्यकता पेड़ लगाने की है उतनी ही  आवश्यकता उनकी लंबे समय तक देख रेख की  है।

छोटे से शहर चंडीगढ़ में प्रशासन, नगर निगम और वन विभाग पर अलग अलग तरीक़े से पेड़ों और पर्यावरण संभलने की ज़िम्मेवारी है, जो सरासर संसाधनों का दुरुपयोग है और तीनों विभागों को विभागों में आपसी कोई तालमेल भी नहीं है। इसीलिए मेरा यह सुझाव है के पेड़ और पर्यावरण का सारा काम बन विभाग के पास होना चाहिए।पर्यावरण भवन के नाम से पूरी अलग बिल्डिंग है पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर है। जिसका सदुपयोग किया जा सकता है। नगर निगम और प्रशासन से हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट का सारा स्टाफ बन विभाग में ट्रांसफर किया जा सकता है ताकि एक ही जगह से सारा पर्यावरण सिस्टम कंट्रोल हो सके। 

गर्ग का ये भी कहना है कि जो पेड़ 10 साल से ऊपर हैं, उनको चण्डीगढ़ की जनता को गोद लेना चाहिए। हर एक इंसान चंडीगढ़ में कम से कम एक पेड़ गोद ले और उसकी देख रेख का ज़िम्मा ले। चंडीगढ़ में समृति वन नाम से जगह जगह ऐसी व्यवस्था की जाए जहां पर लोग घर में बच्चे के जन्म पर, शादी पर या अपने प्रियजनों की मृत्यु पर पेड़ लगा सकें और उनकी देख रेख कर सके इससे लोगों का पेडों के प्रति आकर्षण और बढ़ेगा।

दस वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक पेड़ को सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। बहुत सारे सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं, जिसके माध्यम से प्रत्येक पेड़ का विवरण उसके सटीक जीपीएस स्थान के साथ दर्ज किया जा सकता है। शहर में कोई भी पेड़ कभी नहीं काटा जाना चाहिए, केवल पेड़ को उसकी वर्तमान ऊंचाई का आधा या एक तिहाई से काट देना चाहिए। ताकि यह दो या तीन दशकों तक फिर जीवित रह सके। इस तरह करने से पेडों की संख्या कभी भी कम नहीं होगी इस प्रोसेस को पोलार्डिंग कहते हैं। 

शहर के हर पार्क में कम से कम दस फलों के पेड़ ज़रूर होने चाहिए ताकि बच्चों को फलों के पेड़ों के बारे में जानकारी मिले।