बृजभूषण सिंह और रेसलर्स के बीच विवाद की इनसाइड स्टोरी

मई 2023 में भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद के चुनाव होने थे जिसमें दीपेंद्र हुड्डा अपने आप को इस चुनाव में भारतीय कुश्ती संघ अध्यक्ष भक्ति गीत के लिए अशोक दिखे क्योंकि नियम के मुताबिक कोई भी अध्यक्ष 3 कार्यकाल से अधिक कार्यकाल तक भारतीय कुश्ती संघ का अध्यक्ष नहीं रह सकता इसके कारण बृजभूषण सिंह उस  चुनाव को लड़ने की स्थिति में नहीं थे लेकर ब्रज भूषण सिंह ने एक चाल चल दी जिसके तहत इस पद के लिए उन्होंने अपने बेटे का नाम आगे कर दिया जिसकी वजह से दीपेंद्र होता एक बार फिर कुर्सी खिसकती नजर आई लेकिन सरकार ने मई 2023 में प्रस्तावित चुनाव को एक अस्थाई कमेटी का गठन कर डाल दिया इसके इसके बाद राजनीतिक द्वन्द शुरु हुआ और भारतीय पहलवानों को मोहरा बनाकर राजनीतिक षड्यंत्र का खेल शुरू हुआ क्योंकि 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं

आरोप सही साबित हुए तो फांसी लगा लूंगा : बृजभूषण सिंह

शक्ति/पाठक, डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, चंडीगढ़ – 06 मई :

आजकल एक बार फिर दिल्ली के जंतर मंतर पर वैसी ही चहल-पहल नजर आ रही है जैसे कि कभी दिल्ली के चारों बॉर्डर पर किसान आंदोलन के समय हुआ करती थी पिछले कुछ दिनों पहले ट्रक दिल्ली के चारों तरफ के बॉर्डर राजनीतिक पर्यटन स्थल बने हुए थे उसी प्रकार इन दिनों जंतर मंतर एक राजनीतिक पर्यटन का केंद्र बना हुआ है इस केंद्र का मुख्य आकर्षण वैसे तो भारतीय पहलवान बजरंग पुनिया विनेश फोगाट और साक्षी मलिक है लेकिन इन्हें पर्यटक उपकरण बनाने वाले जिनको राजनीतिक गिद्ध की संज्ञा दी जा सकती है।  

उन्होंने बनाया है हो सकता है कि भारतीय पहलवानों की कुछ समस्याएं नहीं होंगी लेकिन उनका राजनीतिक दुरुपयोग कर देश के राजनीतिक गीत जंतर मंतर के आसपास इस तरह मंडरा रहे हैं जैसे देश की बहुत बड़ी समस्या का समाधान जंतर-मंतर से ही होगा विवाद भारतीय पहलवानों और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृज भूषण सिंह के बीच का है लेकिन इसके कई पहलू हैं जिनके विस्तार से जानना आवश्यक है।

 घटनाक्रम 2011 से जब भारतीय कुश्ती संघ का चुनाव जम्मू-कश्मीर के दुषयंत शर्मा जीते हैं धन्यवाद नहीं से शुरू होता है हरियाणा कुश्ती संघ व कांग्रेसी नेता दीपेंद्र हुड्डा को यह बात हजम‌ न होने पर विवाद दिल्ली उच्च न्यायालय तक जाता है और न्यायालय के आदेश पर बनाया जाता है जिसमें दीपेंद्र हुड्डा राष्ट्रीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बनना चाहते थे लेकिन उस समय समाजवादी पार्टी मैं थे तथा मुलायम सिंह यादव ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर दीपेंद्र हुड्डा को चुनाव नहीं लड़ने दिया और ब्रज भूषण सिंह राष्ट्रीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बने बृजभूषण समाजवादी पार्टी के सांसद थे तथा केंद्र में समाजवादी पार्टी समर्थित कांग्रेस की सरकार थी उसके कारण दीपेंद्र हुड्डा को अपना नामांकन वापस लेना पड़ा और बृजभूषण सिंह भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बने उसके बाद लगातार तीनों कार्यकाल 2012 2015 और 2019 में जीते रहे वर्ष 2014 में वापस भाजपा में आ गए क्योंकि घर भूषण सिंह राम मंदिर आंदोलन से जुड़े हुए थे पूर्व में भी भाजपा के सभी सदस्य थे 2014 के बाद ब्रज भूषण सिंह को भाजपा के सत्ता पर काबिज होने के बाद सत्ता का समर्थन मिलता रहा तस्वीर दीपेंद्र हुड्डा हरियाणा कुश्ती संघ के अध्यक्ष बनते रहे ब्रज भूषण सिंह का कार्यकाल भारतीय कुश्ती संघ में सबसे सफलतम कार्यकाल कहा जाता है क्योंकि इन्हीं के कार्यकाल में ओलंपिक गेम राष्ट्रमंडल खेल इत्यादि में भारतीय खिलाड़ी पदक प्राप्त करते रहे।

पहलवानों के प्रदर्शन ने लिया राजनीतिक रंग

भारतीय खेलों में खिलाड़ियों के चयन को लेकर पहले भी विवाद होते रहे हैं सन 2016 में ऐसा ही व्यवहार सुशील कुमार और नरसिंह यादव के बीच रहा जोकि न्यायालय तक गया इस विवाद को भी हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच का विवाद बना लिया गया था क्योंकि सुशील कुमार हरियाणा के से और नरसिंह यादव उत्तर प्रदेश के थे कमोवेश यही स्थिति आज है आज विवाद प्रदेशों पर जातिगत हो गया है और हाल में चल रहे विवाद को जातिगत देते हुए जाट राजपूत के बीच का विवाद बना दिया।

विवाद तब बढ़ गया जब WFI ने नवंबर 2021 में नए नियमों के साथ कहां की सभी खिलाड़ियों को नेशनल खेलना और ट्रायल देना जरूरी है चाहे वह ओलंपिक और इंटरनेशनल टूर्नामेंट में मेंडल ही क्यों ना कि जीते हो तथा सभी राज्यों के लिए एक कोटा भी नहीं धारित कर दिया इसके कारण राष्ट्रीय कुश्ती संघ और हरियाणा कुश्ती संघ मैं टकराव होने लगा हरियाणा कुश्ती संघ के विरोध के बावजूद राष्ट्रीय कुश्ती संघ ने नियमों में कोई शिथिलता नहीं दी इसके कारण विवाद को बढ़ते हुए देखकर हरियाणा कुश्ती संघ को भंग कर दीपेंद्र हुड्डा को हरियाणा कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद से हटा दिया तथा रोहतास इनको अध्यक्ष बना लिया नए नियमों के विरोध में बजरंग पूनिया नीलेश होगा और साक्षी मलिक जैसे पहलवानों ने गुजरात में आयोजित नेशनल के और नई दिल्ली में हुए ट्रायल्स में हिस्सा नहीं लिया दिसंबर 2022 में wi-fi ने घोषणा की जिन खिलाड़ियों ने सिलेक्शन ट्रायल में हिस्सा लिया है केवल उन्हें ही एशियाई गेम में हिस्सा लेने की अनुमति मिलेगी जिसके बाद बजरंग पूनिया विनेश फोगाट साक्षी मलिक का एशियन गेम में जाना मुश्किल हो गय

हाली का जो विवाद जंतर मंतर पर प्रदर्शित हो रहा है उसकी शुरुआत इस निर्णय के बाद जनवरी 2023 मैं पहलवानों ने अध्यक्ष बृजभूषण उनके खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगाकर जंतर मंतर पर धरना दिया पहले उन्होंने ब्रजभूषण सिंह की कार्यशैली पर आरोप लगाए जिसका प्रभाव पड़ता ना देख आरोपों को यौन उत्पीड़न की तरफ मोड़ दिया विवाद बढता देख  केंद्र सरकार ने आवश्यक कदम उठाते हुए एक कमेटी का गठन किया जो कि इन आरोपों की जांच करेगी के पश्चात कोई कार्यवाही की जाती है उसके बाद पहलवानों ने अपना अपना धरना खत्म कर दिया।

मई 2023 में भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद के चुनाव होने थे जिसमें दीपेंद्र हुड्डा अपने आप को इस चुनाव में भारतीय कुश्ती संघ अध्यक्ष भक्ति गीत के लिए अशोक दिखे क्योंकि नियम के मुताबिक कोई भी अध्यक्ष 3 कार्यकाल से अधिक कार्यकाल तक भारतीय कुश्ती संघ का अध्यक्ष नहीं रह सकता इसके कारण बृजभूषण सिंह उस  चुनाव को लड़ने की स्थिति में नहीं थे लेकर ब्रज भूषण सिंह ने एक चाल चल दी जिसके तहत इस पद के लिए उन्होंने अपने बेटे का नाम आगे कर दिया जिसकी वजह से दीपेंद्र होता एक बार फिर कुर्सी खिसकती नजर आई लेकिन सरकार ने मई 2023 में प्रस्तावित चुनाव को एक अस्थाई कमेटी का गठन कर डाल दिया इसके इसके बाद राजनीतिक द्वन्द शुरु हुआ और भारतीय पहलवानों को मोहरा बनाकर राजनीतिक षड्यंत्र का खेल शुरू हुआ क्योंकि 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं लता राजस्थान और हरियाणा में विधानसभा के चुनाव होना है यूपी राजस्थान और हरियाणा में जाट जाति की संख्या बहुलता में है तथा जगत चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जातिगत समीकरणों को तोड़ते हुए हिंदुत्व का आधार बनाकर सभी जातियों के वोट लिए और सत्ता पर काबिज हुए क्योंकि विपक्षी दल 2024 में भी मोदी पर पार पाने में अपने आप को असहाय महसूस कर रहे हैं जिसके कारण भारतीय पहलवानों को मोहरा बनाकर जाट राजपूत का विवाद खड़ा कर जातियों में विभाजित कर वोट बटोरने की फिराक में है जिसके कारण जंतर मंतर पर चलने वाले धरने पर राजनीतिक पर्यटन देखा जा सकता है जिसमें सबसे आगे कांग्रेसी नेता प्रियंका गांधी दिखाई देती है जो कि नारा देती है लड़की हूं लड सकती हूं जंतर मंतर पर राजनीतिक पर्यटन करने के लिए सबसे आगे रहे लेकिन अपनी ही पार्टी की युवा शाखा के अध्यक्ष पर अपनी ही पार्टी की कार्यकर्ता द्वारा लगाए गए यौन शोषण के आरोपों पर चुप रहती है दूसरी तरफ कुछ किसान नेता जिन्होंने मासूम किसानों के साथ खेल कर नए कानूनों को वापस करवा दिया तथा किसान आज पहले जैसी स्थिति में आ गए हैं  ये किसान नेता उन मासूम किसानो को जो अपनी फसल का उचित दाम न मिलने के कारण फसल को रोड पर फेंक रहे हैउनको यह समझाने मे असमर्थ है कि किसान बिल वापिस हसंस्था ने से उन्हे क्या फायदा हुआ  किसान नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में मशगूल है वह भी जंतर मंतर पर राजनीतिक पर्यटन का प्रदर्शन करने आ रहे हैं आजकल दिल्ली के जंतर मंतर पर राजनीतिक गिध्दो को अपनी पंख फडफडाते हुए देखा जा सकता है यह राजनीतिक गिध्द आगामी चुनावों के लिए जातिगत आधार पर समाज को छोड़कर अपना वोट बैंक बोलना चाह रहे हैं और उसका लाभ चुनावों में उठाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं