आधुनिक संदर्भों से टकराकर निकली अमिट छाप छोड़ती रचनाएं
- मोटी खाल बनाइए कलयुग के संसार में…..
डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, पंचकुला – 03 अप्रैल :
शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी बसे मनसा देवी कॉम्प्लेक्स में धीरा खंडेलवाल की मेज़बानी में अभिव्यक्ति की अप्रैल माह की सफल गोष्ठी का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का संयोजन और संचालन साहित्यकार ओर रंगकर्मी विजय कपूर ने किया। दो सत्रों में बंटे इस कार्यक्रम में ट्राइसिटी के जाने माने 25 साहित्यकारों ने शिरकत की।
पहला सत्र कवियों के नाम रहा जिसमें. बबिता कपूर ने खबरों के बहाने से, मोनिका कटारिया ने तुम्हारे शहर में, धीरा खंडेलवाल ने कुंडलियां, मोटी खाल बनाइए कलयुग के संसार में और अम्मा का बक्सा, खुली खुली रह गई आंख, विजय कपूर ने रहस्यलोक के द्वार, ज़हरीली और घातक, डॉक्टर सत्यभामा ने बेआवाज़ टूटन, वीना सेठी ने अंतर्मन की आवाज़, डॉक्टर निर्मल सूद ने, पल दो पल, राजिंदर सराओ ने अनकही, सुरेंद्र बंसल ने घर से निकले थे, गणेश दत्त ने आया नव वर्ष, डॉक्टर कैलाश आहलूवालिया ने वक्त से छीनी हुईं तीन लघु कविताएं, अमरजीत अमर ने टप्पे.. इक सांस चुराई है/ उसको बचाने में/ सारी उम्र बिताई है, डॉक्टर सपना मल्होत्रा ने व्यक्तिगत आजादी
डॉक्टर प्रसून प्रसाद ने अनुभूतियां नहीं घटनाएं लौटती हैं, दीक्षित ने शायद वक्त सीखा देगा, डॉक्टर सुनीत मदान ने उमड़ते हैं इनसे कितने,रीना मदान ने सब यहीं रह जाना है,अन्नूरानी शर्मा ने गुरुवर, अनुभूति ब्यौहार शर्मा ने रफ्तार और एक घर था और डॉक्टर विमल कालिया ने तलाश और मां नाम की विभिन्न रंगों से ओत प्रोत कविताओं का पाठ किया।
दूसरा सत्र कहानीकारों के नाम रहा जिसमें…विजय कपूर ने कुमुदिनी, डॉक्टर विमल कालिया ने प्रवासी,डॉक्टर अशोक वढेरा ने क्या मैं भी रिटायर हो जाऊंगा, सारिका धूपड़ ने बड़ा सवाल,रेखा मित्तल ने सौदा नाम की सुंदर कहानियों कहानियों का पाठ किया।
इन गोष्ठियों में हर बार साहित्यकार नए दृष्टिकोण को लेकर रचनाएं प्रस्तुत करते हैं। आधुनिक संदर्भों से टकराकर निकली यह रचनाएं अपनी अमिट छाप छोड़ने में पूर्णतय सक्षम हैं।