हाटेश्वरी हाटकोटी मंदिर
मां हाटेश्वरी में हिमाचल और उत्तराखंड के लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है। हाटकोटी में पब्बर नदी के किनारे स्थित इस प्राचीन मंदिर में कई ऐसे चमत्कार होते हैं, जिन्हें सुनकर हर कोई दंग रह जाता है। शिमला के हाटकोटी में महिषासुर मर्दनी हाटेश्वरी माता का सदियों पुराना पाषाण शैली में बना मंदिर है।
अजय सिंगला, डेमोकर्तिक फ्रन्ट, 28 मार्च :
हाटकोटी शिमला के पूर्व में 105 किलोमीटर की दूरी परहाट गांव के निकट स्थित एक आकर्षक घाटी है। यह घाटी अपने कई पत्थर के मंदिरों, वस्तुकला और अपने धार्मिक महत्व के लिए पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। हाटकोटी घाटी जुब्बल तहसील में स्थित है और कई शानदार दृश्य प्रदान करती है। हाटकोटी घाटी के लिए मुख्य रूप से शिमला पर्यटक एक दिन की यात्रा के लिए आते हैं। यह घाटी एक लोकप्रिय तीर्थ स्थान है और प्रकृति प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
हाटकोटी के पास पब्बर नदी से दो सहायक नदियाँ बिशकुल्टी और रान्वती मिलती हैं। यह तीन नदियों के संगम स्थान और पत्थर के मंदिरों के एक साथ होने की वजह से यहां कई पर्यटक यात्रा के लिए आते हैं।
हाटेश्वरी हाटकोटी मंदिर हाटकोटी की घाटी का एक मुख्य मंदिर है जो ऐसी बिंदु पर स्थित है जहां से आस-पास के क्षेत्र के साथ-साथ अन्य मंदिरों को भी शानदार दृश्य दिखाई देता है। हाटेश्वरी मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है जबकि इसके ठीक बगल में स्थित एक छोटे मंदिर में भगवान शिव की पूजा की जाती है। धार्मिक कारणों और अनोखी वास्तुकला के कारण से कई लोग इस मंदिर की यात्रा करते हैं। जो गुप्त काल (6 ठी और 9 वीं शताब्दी ईस्वी) का है। इस मंदिर में महिषासुरमर्दिनी की मूर्ति स्वयं 1.2 मीटर की ऊंचाई पर खड़ी है और आठ धातुओं से मिलकर बनी है। इस मूर्ति कांस्य की चमक दिखाई देती है। इस मंदिर की सबसे अजीब बात यह है कि इसके के अंदर रखी गई शिवलिंग चमत्कारी रूप से चौखट से बड़ी लगती है।
मंदिर के द्वार को कलात्मक पत्थरों से सुसज्जित किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में मां लक्ष्मी, विष्णु भगवान, दुर्गा माता और भगवान गणेश की प्रतिमाएं हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर के प्रांगण में अन्य देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियां भी स्थापित हैं। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पहले पांडवों ने किया था। बाद में लोगों की आस्था व श्रद्धा के साथ यह विकसित होता रहा।
मंदिर प्रांगण में बंधा घड़ा, नदी में उफान आने पर बजाता है सीटी हाटेश्वरी माता मंदिर के प्रांगण में एक बड़ा धातु का घड़ा लोहे की जंजीरों के साथ बंधा है। इसे भीम का घड़ा कहा जाता है। कहा जाता है कि यह प्राचीन घड़ा बरसों पहले पब्बर नदी से ही प्रकट हुआ था। पब्बर नदी से दो घड़े मिले थे, जिनमें से एक घड़े में खजाना था और एक खाली था। एक घड़े को वहां के लोगों ने पकड़ लिया था, लेकिन खजाने वाला घड़ा किसी के हाथ न लग सका।
ऐसे में इस खाली घड़े को माता के मंदिर में रख लिया गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि पब्बर नदी में जब-जब उफान आता है तो यह घड़ा चेतावनी के तौर पर सीटी बजाता है।
हाटेश्वरी माता के गुर ओम प्रकाश शर्मा कहते हैं कि हमारी माता के प्रति सच्ची श्रद्धा है। कई वर्ष पहले यहां पर एक व्यक्ति ने चोरी करने का प्रयास किया था। वह जब मंदिर में मूर्ति चुराने लगा तो अंधा हो गया। माता की महिमा थी कि जब वह मंदिर से बाहर निकला तो उसकी आंखें ठीक हो गईं। मंदिर पुजारी के अनुसार यहां पर जो भी चोरी का प्रयास करता है, उसके साथ ऐसा ही होता है।
ऐसे पहुंचें हाटेश्वरी माता के दरबार हाटेश्वरी माता के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए सड़क-रेल व हवाई मार्ग की सुविधा है। दिल्ली व चंडीगढ़ से शिमला के लिए आसानी से फ्लाइट मिल जाती है। कालका से शिमला के लिए नेरोगेज रेलवे भी है। हिमाचल की राजधानी शिमला से हाटकोटी लगभग 90 किलोमीटर दूर है। शिमला से बस, टैक्सी अथवा निजी वाहन द्वारा आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर पब्बर नदी के दाहिने किनारे पर खेतों के बीच माता हाटेश्वरी के प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर के लिए जाना जाता है।