डेमोक्रेटिक फ्रंट संवाददाता, चंडीगढ़ – 26 दिसंबर:
श्री ब्राह्मण सभा, चण्डीगढ़ द्वारा भगवान परशुराम भवन सैक्टर 37 में दीप प्रज्वलन और स्वस्तिवाचन तथा सरस्वती वंदना के उपरांत भारत रत्न महामना मदनमोहन मालवीय एवं भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई का जन्म दिवस महोत्सव मनाया गया और तुलसी दिवस पर औषधीय गुणों से युक्त तुलसी के पौधे का पूजन किया गया। गुरु गोबिंद सिंह जी के शहजादों के महान बलिदान को भी सम्मान एवं संवेदनापूर्वक याद किया गया।
इस बड़े दिन को विभिन्न क्षेत्रों से विशेष आमंत्रण पर एकत्रित हुए गणमान्य विद्वानों के अनुभवयुक्त विचारों से पिरोए हुए व्यक्तव्यों द्वारा संचालित किया गया। मध्य प्रदेश के छत्तीसगढ़ क्षेत्र से आई विदुषी निधि वाजपेई ने कहा कि स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई व्यक्ति नहीं, विचार हैं। वे जीवन नहीं, संस्कार हैं। पंजाब विश्वविद्यालय से शिक्षित युवा शिवम जोशी ने अपनी स्वरचित कविता सुनाकर उपस्थित श्रोताओं में एक अद्भुत जोश की लहर उत्पन्न कर दी। गुरुद्वारा श्री सिंह सभा सेक्टर 37से पधारे हेड ग्रंथी ज्ञानी गुरजिंदर सिंह ने जहां बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक तथा सनातन धर्म के सर्व श्रेष्ठ ध्वजा धारक महामना मदनमोहन मालवीय और उच्च आदर्शों एवं मूल्यों पर आधारित शुद्ध राजनीति स्थापित करके भारत का विकास करने वाले सर्वप्रिय अटल बिहारी वाजपेई के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी वहीं उन्होंने गुरुगोबिंद सिंह जी के महान सपूतों शहजादों के बलिदान के बारे में विस्तार पूर्वक ऐतिहासिक जानकारी देते हुए बताया कि कैसे हिंदू धर्म की रक्षा और देश के लिए गुरुतेग बहादुर जी और गुरुगोबिन्द सिंह जी ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उन्होंने ये महाबलिदान अपने परिवार के लिए नहीं बल्कि पूरे देश के लिए किया। ऐसे बलिदानियों को भला कैसे कोई भूल सकता है।
हिंदी और संस्कृत के विद्वान प्रोफेसर डॉ रमा कांत अंगरिश जिन्होंने देश विदेश का भ्रमण करते हुए उचित शिक्षा का प्रचार प्रसार किया तथा विभिन्न पुस्तकें लिख कर समाज को उत्तम दिशा देने का प्रयास किया उनके विचार श्रोताओं ने बड़ी उत्सुकता से सुने। उनके अपने व्यक्तिगत संस्मरण भी ध्यानपूर्वक सुने।
कश्मीर संघर्ष समिति के सदस्य और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक डॉक्टर वेद व्यास कुचरु के विचार भी लोगों को सुनने का अवसर मिला। चंडीगढ़ और पंचकुला में गुरुकुल विद्यालय की उद्देश्य पूर्ण आधारशिला रखने के लिए प्रयत्न रूपेण कार्यरत आचार्य स्वामी प्रसाद जी ने बताया कि वे महामना मालवीय और अटल बिहारी वाजपेई के व्यक्तित्व से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने नौकरी छोड़ कर समाज सेवा में पदार्पण किया और संस्कृति शिक्षा के लिए गुरुकुल चलाने का निर्णय लिया।
पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के हिंदी विभाग से सेवा निवृत्त और संस्कृत तथा हिंदी साहित्य के विद्वान प्रोफेसर डॉ जय प्रकाश को विशेष रूप से सुनने के चंडीगढ़, मोहाली, पंचकुला और पिंजौर से श्रोतागण आए हुए थे। जब मंच का संचालन करते हुए श्री ब्राह्मण सभा चंडीगढ़ के प्रधान यश पाल तिवारी ने प्रोफेसर जय प्रकाश का आदरपूर्वक संक्षिप्त परिचय देते हुए उन्हें उनके उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया तो पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। प्रोफेसर जय प्रकाश ने बताया कि उनके पूज्य पिता जी और महामना मालवीय जी का बहुत निकटतम संबंध रहा। पिता जी के साथ बचपन में वे भी मालवीय जी के पास जाया करते और उनकी ज्ञान वर्धक बातें बड़े ध्यान से सुना करते थे। अध्यापन के क्षेत्र में ही कार्यरत रहकर प्रोफेसर साहब ने अपने जीवन का अधिक काल खंड बिताया और अनेक विद्यार्थियों का मार्ग निर्देशन किया। डॉक्टर जय प्रकाश जी ने अनेक पुस्तकें तथा कविताएं भी लिखीं। पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के हिंदी विभाग में आज भी उनका नाम सम्मानपूर्वक लिया जाता है। संस्कृत में एम ए करने के बाद जब उन्होंने नौकरी करने के लिए सोचा तो उनके एक अत्यंत निकटतम शुभचिंतक ने परामर्श दिया कि नौकरी तो मिल ही जायेगी पहले पीएचडी करो और चंडीगढ़ आ जाओ। इस प्रकार उन्होंने संस्कृत और हिंदी साहित्य की सेवा में समर्पित भाव से अथक कार्य किया। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने जो ऊंचाइयां अर्जित की उन सबका उल्लेख किया जाना संभवतः बहुत कठिन है।
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी और महामना मदनमोहन मालवीय जी का स्वर्णिम इतिहास इस बात का साक्षी है कि दोनों ही उच्च कोटि के विद्वान और भारतीय साहित्य के महान ज्ञाता हुए हैं इसलिए सभी आदरणीय वक्ताओं को अखिल भारतीय गायत्री परिवार के संस्थापक परमपूज्य गुरुदेव पंडित श्री राम शर्मा जी आचार्य द्वारा रचित वांग्मय देकर और गायत्री मंत्र वाले वस्त्र ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।