डिंपल अरोड़ा, डेमोक्रेटिक फ्रंट, कालांवाली :
बिना गुरु के ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। एक पूर्ण गुरु ही मानव के घट के भीतर ही दिव्य दृष्टि खोलकर उसे अंदर से प्रभु के प्रकाश रूप का साक्षात्कार करवा सकते है।
यह बात दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की तरफ से शहर के महाजन धर्मशाला में आयोजित पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा के तीसरे दिन आशुतोष महाराज की शिष्य साध्वी जयंती भारती ने उपस्थित श्रद्वालुआंे को संबोधित करते हुए कही। इस दौरान साध्वी जयंती भारती ने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया।
साध्वी जयंती भारती ने श्री कृष्ण जी की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए बताया कि भगवान श्री कृष्ण जी ने जनकल्याण के लिए द्वापर युग में अवतार लिया। प्रभु जब भी कोई कार्य करते हैं तो वह लीला कहलाती है। भगवान श्री कृष्ण जी ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि अर्जुन मेरा जन्म भी दिव्या है और मेरे द्वारा किया गया प्रत्येक कर्म भी दिव्य है। प्रभु द्वारा की गई प्रत्येक लीला में अध्यात्मिक रहस्य छिपे होते हैं लेकिन समय के गर्त में वह धूमिल हो जाते हैं। जिसके कारण मनुष्य सत्य के मार्ग से भटक जाता है। समय-समय पर संत महापुरुष इस धरा पर आकर अन्य रहस्य को उजागर करते हैं। प्रभु जब-जब इस धरा पर आकर लीला करते हैं तो साधारण मानव उन लीलाओ को समझ नहीं पाते क्योंकि वह अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हैं। परंतु प्रभु बुद्धि वैसे ही नहीं है, प्रभु तो ज्ञान का विषय है प्रभु को तत्व से जानने के पश्चात ही प्रभु की लीलाओं के वास्तविक मर्म को समझा जा सकता है।
भगवान श्री कृष्ण ने जब माटी खाई तो यशोदा ने कन्हैया का मुंह खोल कर दिखाने को कहा प्रभु ने जब अपना मुंह खोला तो यशोदा को प्रभु के मुख्य में ब्रह्मांड का दर्शन हुआ। इस लीला के माध्यम से प्रभु ने समझाया कि जो कुछ भी इस ब्रह्मांड में है वह सब घट के भीतर भी है। गुरु के द्वारा प्राप्त ज्ञान से यह बात समझ आती है।