करणी दान सिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ 6 दिसंबर :
राजियासर में आज छात्र महापंचायत में पहुंचने का सुनने का और बोलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ग्रामीण क्षेत्र में और वह भी छात्र छात्राओं के बीच में जोश के साथ बोलना बड़ा आनंददायक रहा। ऐसे मौके मिले तो उसका लाभ अवश्य मिलता है और ऐसा लाभ लेने में आगे रहे तो उसका श्रेय भी मिलता है।
छात्र महापंचायत में पहुंचने का लाभ यह हुआ कि मुझे मेरी उम्र के इर्द-गिर्द के अनेक लोग मिले जिनसे यह पुनर्मिलन करीब 20- 22 साल बाद हुआ।
मैं राजियासर इलाके में ग्रामीण क्षेत्र के समाचारों के लिए और अकाल के समाचारों के लिए अकेले,प्रशासन के साथ और विधायकों के साथ भ्रमण करता रहता था। आज ग्रामीण इलाके में जाने का अवसर मिला
छात्र पंचायत के बीच में भाषण देने से मुझे ऐसे लगा कि मैं 50 साल पहले के जीवन में बोल रहा हूं। सूरतगढ़ में राजकीय महाविद्यालय खुलवाने के लिए हमने गुरूशरण छाबड़ा ने और हमारे अनेक साथियों ने दिन-रात अथक प्रयत्न किया आंदोलन भी किया।
आज मुझे वे दिन याद आ गए जब भूख और प्यास हमारे नजदीक नहीं फटकती थी। हम पूरे जोश के साथ सूरतगढ़ में राजकीय महाविद्यालय खुलवाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उस समय रोटी खाई या नहीं खाई इसकी परवाह नहीं होती थी। बस दिल और दिमाग के अंदर एक ही बात थी कि सूरतगढ़ में राजकीय महाविद्यालय खुलवाना है।
हम लोग कामयाब भी हुए 1972 में मांग शुरू की और 1977 में हमारी मांग पूरी हुई।
आज छात्र महापंचायत में जब मैं बोल रहा था तो बड़ा आनंद आ रहा था कि मैं एक आह्वान कर रहा हूं और यह आह्वान सफल होगा तो इलाके में जबरदस्त क्रांति सी आ जाएगी।
मैंने अपने वक्तव्य में एक गीत की कुछ पंक्तियां गाकर वक्तव्य दिया था।जब साक्षरता अभियान में हम लोग काम करते थे,उस समय वह गीत गाया जाता था।साक्षरता अभियान मैं कोई पारिश्रमिक नहीं मिलता था।
अभियान में एक महत्वपूर्ण गीता ‘ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के,अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के।’
मैंने इस गीत की ये पंक्तियां गा करके आव्हान किया कि हम सफल होंगे तो उच्च शिक्षा का केंद्र खोलने से बहुत बड़ा अंधियारा दूर होगा। विकास के नए मार्ग खुल जाएंगे।
मैंने बार-बार वहां कहा कि आज मेरा सौभाग्य है कि मैं इस मंच से बोल रहा हूं। हमने अनेक आंदोलनों में भाग लिया। पत्रकारिता के साथ-साथ आंदोलन चलाए।
आज मुझे बड़ी खुशी हो रही थी।
मैं जब सूरतगढ़ से सुबह घर से रवाना हुआ तो चाय बिस्कुट खाए हुए थे।नरेंद्र घिंटाला के साथ कार में रवाना हुआ।राजियासर पहुंचा वक्तव्य दिए और वक्तव्य में एक बात भी कही कि मुख्यमंत्री जी को मैं पत्र लिखूंगा। महापंचायत और नायब तहसीलदार को ज्ञापन देने के बाद में जब सूरतगढ़ लौटे तब पहला काम तो मुख्यमंत्री अशोक जी गहलोत को पत्र लिखने का किया। उसके बाद फोटो छांटे और समाचार बनाया। करणी प्रेस इंडिया में लगाया। फेसबुक में लिंक लगाया। सोशल मीडिया के अनेक ग्रुपों में लगाया।
इन कार्यों में रात के 8:30 बज चुके थे। इन सब कार्यों को करने के बाद में भोजन किया गया साधारण शब्दों में रोटी खाई। सच्चाई यह है कि सारे दिन रोटी की याद भी नहीं आई।
महापंचायत के बाद में नरेंद्र घिंटाला ने दो-तीन बार मुझे कहा कि भाई साहब आपने भोजन नहीं किया है, यहां राजियासर में बनवा लेते हैं। मैं इनकार कर गया। रात को 8:30 बजे के बाद में भोजन किया रोटी खाई तो उसका आनंद कल्पना से भी परे था।
रोटी के हर कौर में आनंद और हर कौर के साथ राजियासर की महापंचायत और उसके दृश्य अपने आप आंखों के आगे आ रहे थे। राजियासर के छात्र लोग सफल हों। यही कामना है। मैं राजियासर के लोगों के साथ खड़ा हूं।उनके समाचार अधिक से अधिक प्रसारित करने को ताकि यह आंदोलन सफल हो जाए।
मैं हर वक्त समाचार देने के लिए आगे रहूंगा। शुभकामनाएं।