Sunday, December 22

            13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि सजा 2008 में मिली, इसलिए रिहाई के लिए 2014 में गुजरात में बने कठोर नियम लागू नहीं होंगे। 1992 के नियम ही लागू होंगे जिसके तहत  गुजरात सरकार ने 14 साल की सजा काट चुके लोगों को रिहा किया था। अब बिलकिस बानो 13 मई के आदेश पर पुनर्विचार की मांग कर रही हैं। उनका कहना है कि जब मुकदमा महाराष्ट्र में चला, तो नियम भी वहां के लागू होंगे गुजरात के नहीं।

गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों में बिलकिस का गैंगरेप हुआ

अजय सिंगला, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़/ नयी दिल्ली – 30 नवंबर :

            2002 के गुजरात दंगों के दौरान परिवार की हत्या और गैंगरेप के 11 दोषियों को रिहाई मिलने के बाद बिलकिस बानो ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट के मई के उस आदेश को चुनौती देते हुए एक समीक्षा याचिका भी दायर की जिसमें गुजरात सरकार को 1992 की छूट नीति के लिए आवेदन करने की अनुमति दी गई थी।

            पहली याचिका में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती दी गई है और सभी को तुरंत जेल भेजने की मांग की गई है। जबकि दूसरी याचिका सुप्रीम कोर्ट के मई के आदेश पर पुनर्विचार याचिका है। बिलकिस की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई की भी मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश भारत,  डी वाई चंद्रचूड़ ने भरोसा दिया कि मामले में देखेंगे कि कब सुनवाई हो सकती है।

मुख्य न्यायाधीश भारत डी वाई चंद्रचूड़ ने दिया भरोसा

            याचिका में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय उस फैसले पर फिर से विचार करे जिसमें कहा गया था कि दोषियों की रिहाई पर फैसला गुजरात सरकार करेगी। बिलकिस ने कहा है कि इसके लिए उपयुक्त सरकार महाराष्ट्र सरकार है।  क्योंकि केस का ट्रायल महाराष्ट्र में चला था। बिलकिस की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में जल्द सुनवाई की भी मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश भारत डी वाई चंद्रचूड़ ने भरोसा दिया कि मामले में देखेंगे कि कब सुनवाई हो सकती है।

            हादसे के समय बिलकिस की उम्र 21 साल थी और वे गर्भवती थीं। दंगों में उसके परिवार के 6 सदस्य जान बचाकर भागने में कामयाब रहे। गैंगरेप के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था। जनवरी 2008 में CBI की स्पेशल कोर्ट ने 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा दी थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपियों की सजा को बरकरार रखा था। आरोपियों को पहले मुंबई की आर्थर रोड जेल और इसके बाद नासिक जेल में रखा गया था। करीब 9 साल बाद सभी को गोधरा की सबजेल में भेज दिया गया था।

            दोषियों की रिहाई पर बिलकिस के पति याकूब रसूल ने कहा, ‘हमें यकीन ही नहीं हो रहा कि बिलकिस से गैंगरेप करने वाले, मेरी 3 साल की बेटी को पटक-पटककर मार देने वाले, मेरे परिवार के सात लोगों की हत्या करने वालों को सरकार ने कैसे छोड़ दिया। ये सोचकर ही हमें डर लग रहा है। इस फैसले ने बिलकिस को तोड़ दिया है। वो किसी से बात नहीं कर रही हैं। वह कुछ भी कहने की हालत में नही हैं।’

           जेल से रिहा होने के बाद एक आरोपी ने कहा- जब हम जेल से छूटे तो परिवार में खुशी का माहौल था। जेल में रहने के दौरान हमने असहनीय कष्ट और अपमान सहा। अपने कई दोस्तों-रिश्तेदारों को भी खो दिया। हमारे साथ सजा काट रहे जशुकाका की पत्नी की कैंसर से मौत हो गई।


           27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच में भीड़ ने आग लगा दी थी। इसमें अयोध्या से लौट रहे 57 कारसेवकों की मौत के बाद दंगे भड़क गए थे। दंगों में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। इनमें ज्यादातर मुसलमान थे। केंद्र सरकार ने मई 2005 में राज्यसभा में बताया था कि गुजरात दंगों में 254 हिंदू और 750 मुसलमान मारे गए थे।