राजनीति के पीएचडी कहलाने वाले भजन के गढ़ में चली सीएम मनोहर लाल की विशेष रणनीति
- परिणाम : भजन का गढ़ सुरक्षित रहा, भाजपा को आदमुपर में कमल खिलाने का सौभाग्य मिला
पवन सैनी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, हिसार :
राजनीति के पीएचडी कहलाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के गढ़ में हुए उपचुनाव में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की रणनीति चली। उपचुनाव में मुख्यमंत्री की रणनीति इसलिए मानी जा रही है कि एक तो सीएम मनोहर लाल ने अपनी पार्टी के जिले से बाहर के ऐसे चेहरों पर ज्यादा फोकस रखा जो उनके विश्वास पर खरा उतरते हुए आदमपुर के वोटरों पर सीधा प्रभाव डाल सके। दूसरा खुद का ऐसे वक्त पर चुनाव प्रचार पर उतरकर सभी चेहरों को जनता के सामने एक मंच पर दिखाना, जब विपक्ष के सामने भाजपा को घेरने का समय भी नहीं बचा था। भजन परिवार के समक्ष जहां अपना अभेद दुर्ग बचाने की कड़ी चुनौती थी, वहीं भाजपा उपचुनाव में हार की हैट्रिक नहीं देखना चाहती थी। इस उपचुनाव में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सीधी और सटी रणनीति भाजपा प्रत्याशी भव्य बिश्नोई को जीत तक ले गई। भव्य की जीत से यह हो गया कि पोते ने अपने दादा भजनलाल का गढ़ सुरक्षित रख लिया, वहीं भाजपा को पहली बार आदमपुर में कमल खिलाने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। हां इस उपचुनाव के नतीजों ने यह तो साबित कर दिया कि अकेले भजन परिवार या अकेले भाजपा के लिए जीत की राह आसान नहीं थी।
सीएम ने जिले से बाहर के चेहरों पर किया ज्यादा विश्वास
राजनीतिक पंडितों की माने तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने उपचुनाव की घोषणा के समय से लेकर मतदान तक बिल्कुल हल्के में नहीं लिया हुआ था। उनके पास पल-पल की अपडेट थी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने एक विशेष रणनीति के तहत चुनाव लडऩे का फार्मूला बनाया हुआ था। सूत्र बताते हैं कि सीएम के पास यह भी रिपोर्ट थी कि कुलदीप बिश्नोई को भाजपा में शामिल करने से जिले के कुछ नेताओं में अंदरखाते ठीक नहीं चल रहा है। ऐसे में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपनी जिले की टीम के साथ प्रदेश स्तरीय अपने विश्वासपात्र चेहरों को प्रचार में उतार दिया। सीएम की यह रणनीति दो तरह से काम आई। एक तो जिलास्तरीय उन चेहरों को मजबूरीवश खुलकर पार्टी प्रत्याशी के पक्ष मत प्रचार करना पड़ा जिनकी अंदरखाते मंशा कुछ और थी क्योंकि उन्हें यह डर सता रहा था कि कहीं बाहर से आए नेता सीएम के समक्ष उनकी नेगेटिव रिपोर्ट न भेज दे।
वहीं दूसरा इन नेताओं ने प्रचार के दौरान वोटरों के बीच सरकार की उपलब्धियों को न केवल खुलकर रखा बल्कि उनकी सरकार के प्रति नाराजगी को भी दूर करने की भरपूर कोशिश की। सूत्र बताते हैं कि प्रदेश से आए सीएम के विश्वासपात्रों के समक्ष प्रचार के दौरान लोगों की नाराजगी सरकार के प्रति कम बल्कि जिला स्तरीय नेताओं से ज्यादा सामने आई। ऐसे में सीएम के विश्वासपात्र चेहरों ने नाराज वोटरों से न केवल सीधा संवाद किया बल्कि कुछ नाराज वोटरों की तो सीएम से भी सीधी बात करवाई गई थी। इसका परिणाम उपचुनाव की मतगणना में उस समय सामने आया जब भाजपा प्रत्याशी के कई गांवों में उम्मीद से ज्यादा वोट निकले। सूत्र तो यह भी बताते हैं कि सीएम मनोहर लाल के पास पार्टी के जिला स्तर के बड़े चेहरों की यह भी रिपोर्ट है कि उपचुनाव में किस नेता ने कितने मन से मेहनत की थी और किस नेता ने केवल औपचारिकता पूरी की थी।
खुद ऐन मौके पर चुनावी प्रचार में उतरे
सीएम मनोहर लाल की दूसरी रणनीति ऐन मौके पर खुद का चुनाव प्रचार में उतरना रहा। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री मनोहर लाल का प्रचार बंद होने के मात्र कुछ घंटे पहले ही चुनाव प्रचार में उतरना भाजपा प्रत्याशी के लिए संजीवनी बूटी का काम किया। सूत्र बताते हैं कि सीएम के प्रचार में आने से पहले राजनीतिक गलियारों में भाजपा और कांग्रेस में कड़ी टक्कर की चर्चा जोरों पर चल रही थी। कहीं-कहीं से कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में उपचुनाव की भी आवाज गूंजने लगी थी लेकिन ऐन मौके पर सीएम ने आदमपुर में एक बड़ी रैली की।
रैली के माध्यम से मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने उन सभी चेहरों को जनता के सामने एक मंच पर दिखा दिया जिनके बारे में तरह-तरह की चर्चाएं चल रही थी। एक मंच पर सभी नेताओं का दिखना, जनता में एक अलग प्रभाव छोड़ गया, वहीं मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने 32 मिनट के नपे-तुले भाषण में आदमपुर को आगे रखा। मतदान के ऐन मौके पर सीएम की रैली कार्यकर्ताओं में एक नया जोश भर गई, वहीं विपक्ष के पास जनता के समक्ष भाजपा को कटघरे में खड़ा करने का समय ही नहीं बचा था क्योंकि उसी दिन प्रचार के अंतिम दिन के चलते शाम को प्रचार बंद हो गया था।