- पारस अस्पताल पहला ऐसा एकमात्र अस्पताल जहां एलोजेनिक व आटोलॉगस बोन मैरो ट्रांस्प्लांट उपलब्ध: डा. राजन साहू
- थैलेसीमिया, अप्लास्टिक, एनीमिया, एक्यूट ल्यूकेमिया के रोगियों के लिए भी बीएमटी बनी सहायक: डा. राजेश्वर सिंह
डेमोक्रेटिक फ्रंट संवाददाता, चंडीगढ़ – 12 अक्तूबर :
बल्ड कैंसर के ऐसे मरीज जिनको कि कीमोथेरेपी दवाईओं से आराम नहीं मिलता, उनके लिए बोन मैरो ट्रांस्प्लांट (बीएमटी) ही एकमात्र उपचार है जिसके परिणामस्वरूप ऐसे मरीजों को लंबे समय तक बचाव रहता है। इसके अलावा, थैलेसीमिया के मरीज भारत में बीएमटी प्रक्रिया को भी पहल देते हैं, जहां हर वर्ष 10,000 लोग इस बीमारी से पीडि़त होते हैं। यह बात पारस अस्पताल के डॉक्टरों की एक टीम ने ‘ब्लड कैंसर एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट’ पर जागरूकता अभियान के दौरान कही।
उत्तरी भारत में ब्लड कैंसर तथा बोन-मैरो ट्रांस्प्लांट द्वारा इलाज के लिए जागरूकता पैदा करने के लिए पारस अस्पताल पंचकूला के डाक्टरों की टीम ने पत्रकारों के साथ बातचीत की। इस अवसर पर हैमोटोलॉजी के प्रमुख तथा डायरेक्टर डा. (बिग्रेडियर) डा. अजय शर्मा, मेडीकल ऑनकोलॉजी के डायरेक्टर डा. (बिग्रेडियर) राजेश्वर सिंह, न्यूकलियर मेडीसन के एसोसिएट डायरेक्टर डा. अनुपम गाबा, मेडीकल ऑनकोलॉजी के सीनियर कंस्लटेंट डा. चितरेश अग्रवाल, सर्जिकल ऑनकोलॉजी के सीनियर कंस्लटेंट शुभ महिन्द्रू व डा. राजन साहू तथा रेडिशियन आन्कोलॉजी के कंस्लटेंट डा. परनीत सिंह व आर्र्थो ऑनकोलॉजी के डा. जगनदीप विर्क ने पत्रकारों को संबोधन किया।
बोन-मैरो ट्रांस्प्लांट के बारे जानकारी देते हुए डा. अजय शर्मा ने कहा कि यह बिना आप्रेशन किया जाना वाला इलाज है, जिसमें नकारा स्टैम सैलों को तंदरूस्त स्टैम सैलों के साथ तबदील कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि इस इलाज की सुविधा देश के कुल चुनिंदा अस्पतालों में ही है। उन्होंने बताया कि अमरीका तथा चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा बड़ा देश है, जहां हर वर्ष ब्लड कैंसर के 1.17 लाख नए केस सामने आते हैं।
डा. अजय शर्मा ने बताया कि कुछ खास किस्म के कैंसर तथा अन्य बीमारियों में बोन मैरो ट्रांस्पलांट के साथ इलाज किया जाता है। उन्होंने बताया कि अमरीका जैसे देश के बड़े शहरों में भी 2-3 स्वास्थ्य केंद्र हैं, जहां यह सुविधा है। इसकी तुलना में भारत जहां 5 गुणा से भी अधिक आबादी है, वाले देश में चुनिंदा अस्पताल हैं, जहां बोन-मैरो ट्रांस्प्लांट की सुविधा है। 125 करोड़ की आबादी के लिए बी.एस.टी. माहिरों की गिनती और भी कम है।
मेडिकल ऑन्कोलॉजी के निदेशक डॉ (ब्रिगेड) राजेश्वर सिंह ने कहा कि बीएमटी प्रक्रिया में रोगग्रस्त या क्षतिग्रस्त बोन मैरो (हड्डियों की कैविटी में मौजूद एक नरम स्पंजी रक्त बनाने वाला टिशू) को स्वस्थ बोन मैरो से बदल दिया जाता है, जो ज्यादातर पीडि़त के भाई / बहन और माता-पिता जैसे रक्त संबंधों से ट्रांस्प्लांट होता है। इस प्रक्रिया की सलाह ज्यादातर थैलेसीमिया, अप्लास्टिक एनीमिया, एक्यूट ल्यूकेमिया, सिकल सेल एनीमिया, लिम्फोमा, मल्टीपल मायलोमा और मायलोइड्सप्लास्टिक सिंड्रोम वाले रोगियों को दी जाती है।
इस बीच मेडिकल ऑन्कोलॉजी के सीनियर कंस्लटेंट डॉ राजन साहू ने कहा कि पारस अस्पताल पंचकूला एलोजेनिक के साथ-साथ ऑटोलॉगस बोन मैरो ट्रांसप्लांट प्रदान कर रहा है। साथ ही, केंद्र असंबंधित और अगुणित मिलान वाले बीएमटी का संचालन कर रहा है। अन्य व्यक्ति से ट्रांस्प्लांट की आवश्यकता तब होती है जब परिवार में एक मिलान दाता उपलब्ध नहीं होता है।
डाक्टरों ने आगे कहा कि बोन मैरो ट्रांस्पलांट का प्रयोग गैर कार्यशील बोन मैरो को सेहतमंद काम करने वाले बोन मैरो के साथ बदलने के लिए की जाती है। यह आमतौर पर ल्यूकेमिया, अप्लास्टिक एनीमिया, थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी स्थितियों में किया जाता है। जब कीमोथैरेपी या रेडिशयन की मात्रा किसी खतरनाक बीमारी के इलाज के लिए की जाती है तो बोन मैरो बदल दिया जाता है तथा बाद में इसको पुन: काम करने के लिए बहाल किया जाता है। यह प्रक्रिया लिम्फोमा, न्यूरोब्लास्टोमा और छाती के कैंसर जैसी बीमारियों के लिए प्रयोग में लाई जा सकती है।
पारस अस्पताल के फैसिल्टी डायरेक्टर डा. जतिन्द्र अरोड़ा ने बताया कि अस्पताल में ऑटोलोगस तथा एलोजिनक ट्रांस्प्लांट सहित बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सभी सुविधा हैं, जहां एक ही जगह मरीजों का कामयाबी के साथ इलाज किया जाता है।