हरियाणा को प्यासा मार रहा पंजाब, एसवाईएल की एक.एक बूंद हरियाणा की: सांसद नायब सैनी
- प्यासे हरियाणा को उसके हिस्से का पानी ना पिलाकर खुद ही गटक रहा पंजाब
- एसवाईएल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू ना करना पंजाब की बदनीयती
- एसवाईएल नहर मामलारू हरियाणा के हक पर कुंडली मारकर बैठा है पंजाब
डेमोक्रेटिक फ्रंट समवाददाता, चंडीगढ़ – 15 अक्टूबर :
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद पंजाब सरकार द्वारा एसवाईएल नहर के निर्माण को लेकर सकारात्मक कदम ना उठाना निंदनीय है। ऐसा करके पंजाब हरियाणा के साथ खिलवाड़ कर रहा है। एसवाईएल के पानी पर हरियाणा का पूरा हक है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने अंतिम फैसले में हरियाणा के हक को जायज माना है। ऐसे में यह साफ है कि पंजाब हरियाणा के हक पर कुंडली मारकर बैठा है।
हद तो इस बात की है कि पंजाब पानी नहीं देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी दरकिनार करने से नहीं झिझक रहा। पंजाब के साथ कई दौर की वार्ता भी की जा चुकी है लेकिन पंजाब सरकार और इसके अफसर लगातार ढुलमुल रवैया अपनाए हुए है और मामले को लंबा खींच रहे हैं। पंजाब के अधिकारियों को पता है कि इस मामले में हरियाणा का पक्ष मजबूत हैए इसलिए वे इस मामले में कोई दलील भी नहीं दे पा रहे।
एक ओर तो दिल्ली की आप पार्टी की सरकार हरियाणा से ज्यादा पानी की मांग करती है दूसरी ओर पंजाब की आप पार्टी सरकार हरियाणा को इसके हिस्से का पानी नहीं देती जबकि पंजाब और दिल्ली दोनों की राज्यों में आम आदमी पार्टी की सरकार है। हालांकि इसके बावजूद भी खुद प्यासा रहकर हरियाणा अपने हिस्से से दिल्ली को पानी पिलाता है लेकिन पंजाब पानी की एक भी बूंद नहीं छोड़ रहाए जो हरियाणा के हितों पर सरासर कुठाराघात है। चुनावों से पूर्व पंजाब से एसवाईएल का पानी हरियाणा में लाने का दम भरने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भी सत्ता हासिल करने के बाद अपने वादे से मुकर गए हैं। जो उनकी नियत को दर्शाने के लिए काफी है।
एसवाईएल का पानी नहीं मिलने के कारण हरियाणा को इतना नुकसान हो चुका हैए जिसकी शायद अब भरपाई भी नहीं की जा सकती है। यदि एसवाईएल का यह पानी हरियाणा में आता तो 10.08 लाख एकड़ भूमि सिंचित होतीए प्रदेश की प्यास बुझती और लाखों किसानों को इसका लाभ मिलता। इस पानी के न मिलने से दक्षिणी.हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है। एसवाईएल के न बनने से हरियाणा के किसान महंगे डीजल का प्रयोग करके और बिजली से नलकूप चलाकर सिंचाई करते हैंए जिससे उन्हें हर वर्ष 100 करोड़ रुपये से लेकर 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ता है।
वहीं पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल के न बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित करने के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है। हरियाणा को हर वर्ष 42 लाख टन खाद्यान्नों की भी हानि उठानी पड़ती है। यदि 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल बन जातीए तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे अनाजों का उत्पादन करता। 15 हजार प्रति टन की दर से इस कृषि पैदावार का कुल मूल्य 19,500 करोड़ रुपये बनता है।
अब हरियाणा सरकार को इस मामले में पंजाब के साथ कोई बात नहीं करनी चाहिए और ना ही किसी तरह की बैठक होनी चाहिए। क्योंकि पंजाब के रवैये से साफ हो चुका है कि वह इस मसले का हल नहीं निकालेगा। अब सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार ही इसमें अपनी भूमिका निभा सकती है। हरियाणा अपने हक के पानी के लिए आर.पार की लड़ाई लड़ने को भी तैयार है। हम हरियाणा के हिस्से का एक.एक बूंद पानी लेकर रहेंगे। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट या केंद्र सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि हरियाणा को पर्याप्त पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करे।
मामले में सुप्रीम कोर्ट साल 2002 में हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाया था और पंजाब को एसवाईएल कनाल एक साल के अंदर बनाने का निर्देश दिया था। वहीं साल 2004 में पंजाब की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले को कायम रखा और याचिका खारिज कर दी। इसके बाद पंजाब ने कानून पास करके हरियाणा के साथ एसवाईएल नहर परियोजना के समझौते को रद्द कर दिया। शीर्ष न्यायालय का पूरे मामले पर कहना है कि प्राकृतिक संसाधनों को आपस में साझा किया जाना चाहिए इसलिए दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री आपस में समस्या का समाधान निकालें। कोई भी राज्य या शहर यह नहीं कह सकता कि केवल उसे ही पानी की जरूरत है। बड़ा दृष्टिकोण रखते हुए पानी जैसे प्राकृतिक संसाधन को आपस में साझा करना चाहिए।
बता दें कि पंजाब पुनर्गठन अधिनियमए 1966 के प्रावधान के अंतर्गत भारत सरकार के आदेश दिनांक 24.3.1976 के अनुसार हरियाणा को रावी.ब्यास के फालतू पानी में से 3.5 एमएएफ जल का आबंटन किया गया था। एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न होने की वजह से हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का इस्तेमाल कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का गैर.कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है।