पंजाब के पास किसी अन्य राज्य को देने के लिए एक बूँद भी पानी नहीं : मुख्यमंत्री
- एस.वाई.एल. नहर के निर्माण संबंधी हरियाणा सरकार की माँग सिरे से रद्द
- हरियाणा को पहले ही पंजाब की अपेक्षा अधिक पानी मिल रहा है
- गंगा और यमुना के पानी के वितरण के लिए पंजाब और हरियाणा को प्रधानमंत्री से सम्पर्क करना चाहिए: भगवंत मान
- एस.वाई.एल. नहर कभी भी हकीकत का रूप इख्तियार नहीं करेगी
- पंजाब के अधिकार पर डाले गए डाके के लिए अकाली और कांग्रेसी बराबर जि़म्मेदार
राकेश शाह, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़ :
सतलुज-यमुना लिंक (एस.वाई.एल.) नहर का निर्माण शुरू करने के लिए हरियाणा सरकार के प्रस्ताव को सिरे से नकारते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने आज स्पष्ट कहा कि नहर का काम शुरू करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता, क्योंकि पंजाब के पास हरियाणा को देने के लिए एक बूँद भी पानी नहीं है।
एस.वाई.एल. के मुद्दे पर हरियाणा के मुख्यमंत्री के साथ मीटिंग के बाद यहाँ पंजाब भवन में पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि ‘‘जब इस नहर के लिए समझौता हुआ था, तब पंजाब को 18.56 मिलियन एकड़ फुट (एम.ए.एफ.) पानी मिल रहा था, जो अब कम होकर 12.63 एम.ए.एफ. रह गया है, जिससे साफ़ है कि पंजाब के पास किसी भी राज्य को देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है।’’
मुख्यमंत्री ने कहा कि हरियाणा को सतलुज, यमुना और अन्य नहरों से 14.10 एम.ए.एफ. पानी मिल रहा है, जबकि पंजाब को केवल 12.63 एम.ए.एफ. पानी मिल रहा है। उन्होंने कहा कि हरियाणा के पास कम क्षेत्रफल होने के बावजूद पंजाब की अपेक्षा अधिक पानी मिल रहा है, परन्तु फिर भी वह पंजाब से और पानी की माँग कर रहा है। भगवंत मान ने कहा कि इस तथ्य के प्रकाश में हरियाणा को पानी कैसे दिया जा सकता है, जबकि हमारे पास अपने खेतों के लिए पानी नहीं है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब में 1400 किलोमीटर नदियाँ, नहरें और नाले सूख चुके हैं, जिस कारण भूजल का प्रयोग बढ़ा है। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में पंजाब को कृषि संबंधी ज़रूरतों के लिए केवल 27 प्रतिशत नहरी पानी मिलता है, बाकी 73 प्रतिशत ज़रूरत भूजल से पूरी की जा रही है। भगवंत मान ने कहा कि इसके नतीजे के तौर पर पंजाब में भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है और राज्य के ज़्यादातर ब्लॉक डार्क जोन में आ चुके हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब से पानी मांगने की बजाय हरियाणा को यमुना का पानी पंजाब को देना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद और पुनर्गठन से पहले पंजाब को यमुना का पानी मिलता रहा है। भगवंत मान ने कहा कि पुनर्गठन के बाद में पंजाब को ग़ैर-कानूनी तरीके से इस अधिकार से वंचित किया गया था।
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि यदि हरियाणा को सचमुच पानी की ज़रूरत है तो वह इस मसले के समाधान के लिए अपने हरियाणा के समकक्ष के साथ प्रधानमंत्री के पास जाने के लिए तैयार हैं। हालाँकि, उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि प्रधानमंत्री के पास भी राज्य सरकार अपना रूख साफ़ करेगी कि पंजाब के पास हरियाणा को एक बूंद भी पानी देने के लिए नहीं है। भगवंत मान ने कहा कि पंजाब और हरियाणा को तो बल्कि प्रधानमंत्री के समक्ष गंगा और यमुना केस की ज़ोरदार ढंग से पैरवी करनी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने दुख के साथ कहा कि दुनिया भर के सभी जल समझौतों में यह धारा शामिल होती है कि जलवायु परिवर्तन के मद्देनजऱ 25 सालों के बाद समझौतों का जायज़ा लिया जायेगा। उन्होंने कहा कि एस.वाई.एल. समझौता ही एक ऐसा समझौता है जिसमें इस धारा को शामिल ही नहीं किया गया। भगवंत मान ने कहा कि पंजाब के साथ यह सरासर बेइन्साफ़ी है और इस घृणित पाप के लिए केंद्र और पंजाब की तत्कालीन सरकारें जि़म्मेदार हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कितनी हास्यास्पद बात है कि हरियाणा हमें नहर के निर्माण का काम मुकम्मल करने के लिए कह रहा है। उन्होंने कहा कि जब हमारे पास अतिरिक्त पानी ही नहीं है तो हम नहर का निर्माण कैसे कर सकते हैं। भगवंत मान ने कहा कि समय की ज़रूरत के मुताबिक पंजाब को उसके पानी का पूरा हिस्सा मिलना चाहिए।
कांग्रेस और अकालियों पर निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह दोनों पार्टियाँ पंजाब के साथ हुई बेइन्साफ़ी के लिए जि़म्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि यह दोनों पार्टियाँ पंजाब और पंजाबियों के विरुद्ध साजिश करने के लिए एक-दूसरे के साथ सुर में सुर मिलाती रही हैं। भगवंत मान ने कहा कि अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल ने अपने मित्र और हरियाणा के नेता देवी लाल को खुश करने के लिए नहर के सर्वे का हुक्म दिया था।
इसी तरह मुख्यमंत्री ने कहा कि पटियाला रियासत के वारिस और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह जो उस समय पर संसद मैंबर थे, ने भी इस नहर को काटने के लिए प्रधानमंत्री का स्वागत किया था। उन्होंने कहा कि सर्वे से लेकर अब तक इन नेताओं का हरेक कदम साबित करता है कि इन्होंने पंजाब और पंजाबियों के साथ दगा किया है। भगवंत मान ने कहा कि यह दुख की बात कि इस फ़ैसले का स्वागत करने वाले लोग अब इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने या उनसे सलाह लेने का सुझाव दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इन नेताओं ने ऐसे कदमों के द्वारा पंजाब और पंजाबियों के आगे काँटे बीजे हैं। उन्होंने कहा कि अपने निजी लाभ के लिए इन ख़ुदगजऱ् राजनीतिक नेताओं ने राज्य को संकट में धकेल दिया।
भगवंत मान ने कहा कि इन नेताओं के हाथ इस जुर्म से रंगे हुए हैं और पंजाब की पीठ में छुरा घोपने वालों को इतिहास कभी भी माफ नहीं करेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह विवादपूर्ण समझौता होने के बाद यह पहली बार हुआ कि पंजाब ने अपना पक्ष ज़ोरदार ढंग से पेश किया। भगवंत मान ने कहा कि उन्होंने मीटिंग में जाने के लिए पूरी तैयारी करने के लिए अधिकारियों, माहिरों, सीनियर पत्रकारों और कानूनी माहिरों के साथ गहन विचार-विमर्श किया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर पंजाब और पंजाबियों के हित महफूज़ रखने के लिए दृढ़ है।
इस मौके पर पंजाब के एडवोकेट जनरल विनोद घई, मुख्यमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव ए. वेणु प्रसाद और प्रमुख सचिव जल संसाधन कृष्ण कुमार और अन्य उपस्थित थे।