Wednesday, December 25

करणीदानसिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट,  सूरतगढ़  –  12 अक्टूबर

              सूरतगढ़ का स्थापना दिवस पहली बार 14 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा। 235 वर्ष पूर्ण होने पर यह समारोह होगा।

             इस दिवस पर गढ़ के भीतरी क्षेत्र में सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा और उसमें गढ़ का इतिहास भी बताया जाएगा। यह कार्यक्रम शाम  5:30 बजे शुरू होगा। इससे एक दिन पहले शाम 5:30 बजे बिश्नोई मंदिर से वाहन रैली निकाली जाएगी जो विभिन्न मार्गों से होती हुई इंदिरा सर्कल पर सम्पन्न होगी। गढ धरोहर संरक्षण समिति की संयोजिका अधिवक्ता श्रीमती पूनम शर्मा के निर्देशन में यह दिवस मनाया जाएगा। पूनम शर्मा करीब दो वर्षों से यह प्रयास कर रही थी कि सूरतगढ़ का स्थापना दिवस मनाना शुरु किया जाए। पूनम शर्मा का यह प्रयास सफल हुआ है और पहली बार सूरतगढ़ स्थापना दिवस मनाया जाएगा।

              महाराजा सूरत सिंह द्वारा इस स्थान पर  अधिकार करने के बाद गढ का निर्माण कराया गया और  सूरतगढ़ नाम दिया गया।  सरकारी रिकॉर्ड में सन् 1787- 1799 ईसवी में यह अधिकार बताया गया है जिसकी व्यापकरूप से देखना आवश्यक है।

              गढ विध्वंस स्थिति में है। इसकी देखरेख नहीं हो पाई।धरोहर संरक्षण समिति के अंतर्गत पिछले करीब 30 सालों से इस पर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर उत्साहित नागरिकों की ओर से राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता रहा है। 

              गढ़ का संरक्षण किया जाने की आवाज लगातार उठती रही है ताकि सूरतगढ़ नाम बना रह सके। गढ पूरा ध्वस्त हो जाने के बाद हमारे पास विरासत में कुछ भी नहीं रहेगा।

              गढ़ के आसपास प्राचीन मंदिर हैं प्राचीन तालाब है यह सभी सरंक्षण के कारण ही बच सकते हैं। गढ़ के अंदर प्राचीन रघुनाथ जी का मंदिर है जो भी क्षतिग्रस्त हालत में ही है। यह मंदिर भी महत्वपूर्ण है। मंदिर के नाम की रियासत के समय से ही माफी की कृषि भूमि भी है जो पुजारी की देखरेख में है और जीवनयापन का आधार है।

             गढ़ के पास में प्राचीन तालाब है जिसका नाम है सूरत सागर उस पर भी अतिक्रमण हो गए उसमें कचरा डाल दिया गया अब थोड़ा सा हिस्सा उसका बाकी है जिसकी मांग उठती रही है कि इस तालाब को पुराने स्वरूप में कायम किया जाए।कानून भी यह कहता है कि तालाब आदि पर कोई अन्य निर्माण नहीं किए जा सकते। तालाब तालाब ही रहेगा। इस तालाब के पास ही तीज त्योहार मनाए जाते रहे हैं। गणगौर का मेला भी भरता रहा है। तालाब का पानी लोग पीते थे।

                       तालाब में प्राचीन गणेश मंदिर है जिसे नया रूप दे दिया गया है।

             गढ़ के सामने महादेव का प्राचीन मंदिर सूरतेश्वर महादेव है जिसको अब नया रूप दे दिया गया है। प्राचीन गणेश मंदिर है। पास में हनुमान जी का मंदिर भी है अन्य देवी देवताओं के भी मंदिर हैं। जनता जागे तो सूरतगढ़ का यह गढ़ प्रतीक रूप में भी जिंदा रह सकता है।

                 पहले गढ़ से इस क्षेत्र का प्रशासनिक कार्य संचालित होता रहा है गढ़ के अंदर तहसील थी पुलिस थाना था और कारागृह भी था। उसके बाद में जब यह सभी अन्य स्थानों पर नए भवनों में स्थानांतरित कर दिए गए। उसके बाद में गढ़ की स्थिति लावारिस हो गई।सरकारी रिकॉर्ड में यह नजूल संपत्ति के रूप में दर्ज हुआ।जिसका कोई मालिक नहीं उसका मालिक सरकार। किसी ने इसकी तरफ गौर नहीं कियाइसलिए वर्षों पहले इसके आगे का क्षेत्र भूखंड बनाकर नीलाम कर दिया गया।जब कुछ नीलामी हो गई उसके बाद में उत्साहित लोगों ने सरकार की नीलामी का विरोध किया और उसके बाद जो बचा खुचा स्वरूप है वह हम सभी के सामने है।

              बार-बार आवाज उठती रही की जो गढ़ की दीवारें हैं उनका पुनर्निर्माण हो। प्रतीक रूप में तो यह माना जा सके। बार-बार यह भी कहा गया मांग रखी गई कि नगरपालिका इस क्षेत्र को विकसित करे लेकिन अनदेखी होती रही।

             अब स्थापना दिवस मनाने के समारोह हर साल होंगे तो विकास की ओर भी गतिविधियां बढेगी।