सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा का खास महत्व माना गया है। आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। बारिश के बाद पहली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। बारिश का दौर खत्म होने के कारण हवा साफ होती है यही सबसे बड़ा कारण है। इसके बाद से मौसम में ठंडक आती है और ओस के साथ कोहरा पड़ना शुरू हो जाता है। एसोसिएट प्रोफेसर श्रुद मोरे के मुताबिक, चांद अंधेरे में चमकता है, लेकिन चांद की अपनी कोई चमक नहीं होती। सूर्य की किरणें जब चांद पर पड़ती हैं, तो ये परावर्तित होती हैं और चांद चमकता हुआ नजर आता है। इसकी रोशनी जमीन पर चांदनी के रूप में गिरती है। एस्ट्रोनॉमी विशेषज्ञ प्रो. समीर धुर्डे कहते हैं कि धरती पर इन किरणों की तीव्रता बेहद कम होने के कारण यह किसी तरह से कोई नुकसान नहीं पहुंचातीं। आसान भाषा में समझें तो घर में मौजूद ट्यूबलाइट की रोशनी भी इन किरणों से एक हजार गुना ज्यादा चमकदार होती है। प्राचीनकाल से ही पूर्णिमा का लोगों के जीवन में काफी महत्व रहा है, क्योंकि दूसरी रातों के मुकाबले इस दिन चंद्रमा, आम दिनों की तुलना में ज्यादा चांदनी बिखेरता है। इसलिए पूर्णिमा की चांदनी का विशेष महत्व होता है।
- बारिश के बाद पहली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के पर्व के रूप में मनाया जाता है
- इस दिन खीर का महत्व इसलिए भी है कि यह दूध से बनी होती है और दूध को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है, चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है
- आयुर्वेद विशेषज्ञ के मुताबिक, चांद की रोशनी में कई रोगों का इलाज करने की क्षमता, पित्त को भी कम करती है
डेमोक्रेटिक फ्रंट, धर्म संस्कृति डेस्क :
शरद पूर्णिमा इसीलिए इसे कहा जाता है क्योंकि इस समय सुबह और साँय सर्दी का अहसास होने लगता है। चौमासी यानी भगवान विष्णु जिसमें सो रहे होते हैं वह समय अपने अंतिम चरण में होता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का चांद अपने सभी 16 कलाओं को संपूर्ण होकर अपनी किरणों से रातभर अमृत की वर्षा करता है। जो कोई इस रात्रि को खुले आसमान में खीर बनाकर रखता है वह प्रातः काल उसका सेवन करता है उसके लिए खीर अमृत के समान होती है। मान्यता यह भी है कि चांदनी में रखी यह खीर औषधि का काम भी करती है और कई रोगों को ठीक कर सकती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा इसलिए अधिक महत्व रखती है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। शब्द व जागर के साथ-साथ इस रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। लक्ष्मी की कृपा से भी शरद पूर्णिमा जुड़ी यह मान्यता है कि माता लक्ष्मी इस रात्रि भ्रमण पर होती है और उन्हें जो जागरण करते हुए मिलता है उस पर अपनी कृपा बरसाती है।
शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोपियों संग महारास रचाने से तो जुड़ी है लेकिन इसके महत्व को बताती एक अन्य कथा भी मिलती है जो इस प्रकार है। मान्यता अनुसार बहुत समय पहले एक नगर में एक साहूकार रहता था। दो पुत्रियां थी, दोनों पुत्रियां पूर्णिमा को व्रत रखती लेकिन छोटी पुत्री हमेशा उच्च उपवास को अधूरा रखती और दूसरी हमेशा पूरी लगन और श्रद्धा के साथ पूरे व्रत का पालन करती थी। समय उपरांत दोनों का विवाह हुआ, विवाह के पश्चात बड़ी जो कि पूरी आस्था से उपवास रखती थी ने बहुत ही सुंदर और स्वास्थ्य संतान को जन्म दिया जबकि छोटी पुत्री के संतान की बात या तो सीधे नहीं चढ़ती या फिर संतान जन्मी तो वह जीवित नहीं रहती। काफी परेशान रहने लगी। उसके पति भी परेशान रहते। उन्होंने ब्राह्मणों को बुलाकर उसकी कुंडली दिखाइ और जानना चाहा कि आखिर उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
विद्वान पंडितों ने बताया कि इसने पूर्णिमा के अधूरे व्रत किए हैं इसीलिए इसके साथ ऐसा हो रहा है। ब्राह्मणों ने उसे व्रत की विधि बताइ। अश्विन मास के पूर्णिमा का उपवास रखने का सुझाव दिया। उन्होंने विधिपूर्वक व्रत रखा लेकिन ईश्वर संतान के पश्चात कुछ दिनों तक ही जीवित रही। उसने मृत शिशु को पटड़े पर लेटा कर उस पर कपड़ा रखती है। अपनी बहन को बुला लाई बैठने के लिए वही पटड़ा दे दिया। बहन पटड़े पर बैठने ही वाली थी कि पटड़े को छूते ही बच्चे के रोने की आवाज आने लगी। बड़ी बहन को बहुत आश्चर्य हुआ और कहा कि तू अपनी संतान को मारने हैं का दोष मुझ पर लगाना चाहती थी। अगर उसे कुछ हो जाता। तब छोटी ने कहा कि वह पहले से मरा हुआ था। आपके प्रताप से ही यह जीवित हुआ है। बस फिर क्या था पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व पूरे नगर में फैल गया और नगर में विधि विधान से हर कोई या उपवास रखें इसकी राजकीय घोषणा करवाई गई।
शरद पूर्णिमा की शुरुआत ही वर्षा ऋतु के अंत में होती है। इस दिन चांद धरती के सबसे करीब होता है, रोशनी सबसे ज्यादा होने के कारण इनका असर भी अधिक होता है। इस दौरान चांद की किरणें जब खीर पर पड़ती हैं तो उस पर भी इसका असर होता है। रातभर चांदनी में रखी हुई खीर शरीर और मन को ठंडा रखती है। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी को शांत करती और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। यह पेट को ठंडक पहुंचाती है। श्वांस के रोगियों को इससे फायदा होता है साथ ही आंखों रोशनी भी बेहतर होती है। डॉ. गुप्ता यह भी कहती हैं कि चांद की रोशनी में कई रोगों का इलाज करने की खासियत होती है। चंद्रमा की रोशनी इंसान के पित्त दोष को कम करती है। एक्जिमा, गुस्सा, हाई बीपी, सूजन और शरीर से दुर्गंध जैसी समस्या होने पर चांद की रोशनी का सकारात्मक असर होता है। सुबह की सूरज की किरणें और चांद की रोशनी शरीर पर सकरात्मक असर छोड़ती हैं।
- शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूरा होकर अमृत की वर्षा करता है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार चंद्रमा को औषधि का देवता माना जाता है।
- चांद की रोशनी स्वास्थ के लिए बहुत लाभकारी मानी गई हैं, इसलिए शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान के नीचे चावल और दूध से बनी खीर रखी जाती हैं जिससे चंद्रमा की किरणें खीर पर पड़ती है और इसका सेवन करने से औषधीय गुण प्राप्त होते हैं।
- शरद पूर्णिमा पर चांदी के बर्तन में खीर रखकर फिर उसका सेवन करने से रोगप्रतिरोधक क्षमता दोगुनी हो जाती हैं और समस्त रोगों का नाश होता है। चांदी के बर्तन में सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। रिसर्च के अनुसार चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, जिससे विषाणु दूर रहते हैं। यह खीर अमृत के समान मानी जाती है।
- मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की खीर सेवन करने से पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती है। शरद पूर्णिणा पर रात में 10-12 बजे के बीच चंद्रमा का प्रभाव अधिक रहता है। इस समय चंद्र दर्शन जरूर करना चाहिए। कहते हैं इस समय जिस पर चंद्रमा की किरणें पड़ती हैं उसकी नेत्र संबंधित समस्या, दमा रोग जैसी बीमारियां खत्म हो जाती है
- कोजागरी पूर्णिमा पर खीर खाना इस बात का प्रतीक है कि अब शीत ऋतु का आगमन हो चुका है। ऐसे में गर्म पदार्थ का सेवन करने से स्वास्थ लाभ मिलेगा। मौसम में ठंडक घुलने के बाद गर्म चीजों का सेवन करने से शरीर में ऊर्जा बनी रहती है।
चंद्रमा की 16 कलायेँ
- अमृत
- मनदा (विचार)
- पूर्ण (पूर्णता अर्थात कर्मशीलता)
- शाशनी (तेज)
- ध्रुति (विद्या)
- चंद्रिका (शांति)
- ज्योत्सना (प्रकाश)
- कांति (कीर्ति)
- पुष्टि (स्वस्थता)
- तुष्टि(इच्छापूर्ति)
- पूर्णामृत (सुख)
- प्रीति (प्रेम)
- पुष्प (सौंदर्य)
- ज्योत्सना (प्रकाश)
- श्री (धन)
- अंगदा (स्थायित्व)