ऑनलाईन भावना योग सैमिनार का हुआ आयोजन

  • लॉ ऑफ अट्रैक्शन शुद्ध होते है हमारे विचार- मुनि प्रमाण सागर

सुशील पंडित, डेमोक्रेटिक फ्रंटयमुनानगर –  07 अक्तूबर  :

            प्रमाण गुणायतन के सौजन्य से आनलाईन भावना योग सैमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता भावना योग प्रभारी राजेश भईया जी ने की तथा संचालन दीक्षा ने किया।

            श्री मुनि प्रमाण सागर जी महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुये कहा कि तुम किसी प्रकार की चेषटा न करो, कुछ सोचो मत और आत्मा को आत्मा में स्थिर रखो, यदि परमध्यान है। उन्होंने कहा कि शुन्य भाव में पहुँच जाना, विचार शुन्य, विकल्प शुन्य, क्रिया शुन्य, वह परमध्यान है जोकि इष्टाइष्ट पदार्थों में राग-द्वेश-मोह मत करो।। जैन ध्यान में योग कि शुद्धि की जगह उपयोग यानि भावों की शुद्धि को महत्व दिया गया है। साधना, एकर अभ्साय, एक ऐसा योग जिसके बल पर हम अपनी आत्मा का निर्मलिकरण कर सके। वर्तमान में एक सिद्धांत विकसित हुआ ला ऑफ अट्रैक्शन जिससे हमारे विचार साकार होते है।

            उन्होंने आगे बताया कि थॉट बिकम्स थिंग्स, का हमारा पुराना रुपांतरण है। हम जो भावना भाते है वह होता है, पर्माथ चाहिये, परमात्मा चाहिये, त्याग चाहिये, योग चाहिये यदि तुम आत्मा को पाना चाहते हो तो हर पल ध्यान करों कि मैं आत्मा हूँ, मैं शुद्ध आत्मा हूँ, मैं पवित्र आत्मा हूँ, मैं तो केवल एक आत्मा हूँ, शुद्ध आत्मा और पवित्र आत्मा तो तुम्हारा मन बदलदेगी, जीवन बदल देगी। सोह्म वह तत्व रूप है जो संस्कार को प्राप्त कराती है। उन्होंने आगे कहा कि अपने जीवन को विशुद्ध करने के लिये सामाईक, प्रतिक्रमण, स्तुति, वंदना, स्वाध्याय और प्रत्याख्यान है।

            प्रतिक्रमण में दोशों को शोधन है और प्रत्याख्यान में भावी दोशों के प्रति जागरुक्ता है, स्तुति-वंदना में एक प्रार्थना है। प्रतिक्रमण वह सब चीजें बताता है कि मुझे क्या ग्रहण करना है और क्या छोडऩा है। इसमें मुख्य रूप से भावना भाई गई है कि जगत में सब सुखि हों, सबका मंगल हो, सभी पवित्र हों, सभी आनन्द का अभास करें। योग हमारे शारीरिक अंगों को सक्षम बनाता है जिससे शरीर में स्फुर्ति आती है। इस अवसर पर डा. रिचा जैन ने सभी साधकों को योग क्रियाओं का अभ्यास कराया। कार्यक्रम में तनिष्क सिंघई, संदेश जैन, नीलम जैन, सलोनी जैन आदि ने कार्यक्रम का सफल बनाने में अपना सहयोग दिया।